ओ3म् ऊर्ध्व नुनुद्रेऽवतं त ओजसा दादृहाणं चिद्विभिदुर्वि पर्वतम्।
धमन्तो वाणं मरुत: सुदानवो मदे सोमस्य रण्यानि चक्रिरे॥ ऋग्वेद 1.85.10॥
शब्दार्थ- (ते मरुत:) वे सैनिक लोग (ओजसा) अपने पराक्रम से (अवतम्) कुएँ को (ऊर्ध्वम् नुनुद्रे) ऊपर धकेल देते हैं और (दादृहाणम्) दृढ (पर्वतम्) पर्वत को (चित्) भी (वि बिभिदु:) विविध उपायों से तोड़-फोड़ डालते हैं (सुदानव:) शत्रु-सेना का संहार करने में कुशल वे सैनिक (वाणं धमन्त:) सैनिक बैण्ड बजाते हुए (सोमस्य मदे) ऐश्वर्य एवं विजय-प्राप्ति के हर्ष में (रण्यानि) संग्रामोचित नाना कार्यों को (चक्रिरे) किया करते हैं।
भावार्थ- सैनिक लोग विजय की कामना से कैसे कार्य कर डालते हैं, उनका इस मन्त्र में वर्णन है। सैनिक लोग अपने पराक्रम और शक्ति से कुएँ को ऊपर धकेल देते हैं। वेद के ‘ऊर्ध्वं नुनुद्रेऽवतं त ओजसा‘ से यह ध्वनि निकलती है कि वे हैडपम्प जैसा कोई यन्त्र लगाकर कुएँ को, कुएँ की जलराशि को ऊपर उठा देते हैं। यह हमारी कल्पना नहीं है। अगले ही मन्त्र में वेद ने इसे स्पष्ट किया है- जिह्मं नुनुद्रेऽवतं तया दिशासिञ्चन्नुत्सं गोतमाय तृष्णजे। अर्थात् वे सैनिक लोग प्यासे (गोतमाय) बुद्धिमान के लिए गमनशील, शक्तिशाली अथवा ब्राह्मणों के लिए कुएँ को टेढा करके उसे ऊपर की ओर प्रेरित करते हैं और फव्वारे से जल बरसा देते हैं अथवा जल को खींच लेते हैं।
सैनिक लोगों के पास इस प्रकार के यन्त्र होते हैं कि वे पर्वत को भी तोड़-फोड़ डालते हैं। रामायण में वानर-सेना के पास इस प्रकार के यन्त्रों के होने का उल्लेख मिलता है। - स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती (दिव्ययुग- जनवरी 2015)
Hand Pump | Veda-Saurabh | Enemy Kill | Glory and Victory | Wish for Victory | Might and Power | Our Imagination | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Mhow Cantt - Tiptur - Fatehgarh Churian | दिव्ययुग | दिव्य युग |