छत्रपति शिवाजी के पुरन्दर का किला जीत लेने के बाद उनके सिपाही गाँव में घूमने गए। वहाँ पर उनमें से एक सिपाही एक घर में घुस गया तथा महिलाओं से परिहास करने लगा। घर के एक नवयुवक गोपाल काले ने इसका विरोध किया। इस पर सैनिक ने उसे मार डालने की धमकी दी तथा पुनः अश्लील मजाक करने लगा। काले के रक्त में भी उबाल आ गया। उसने सैनिक की कमर पकड़कर ऊपर उठा लिया तथा घर से बाहर लाकर नीचे फेंक दिया।
दूसरे दिन प्रातःकाल सैनिकों की परेड के समय वह सैनिक वहाँ न था। खोज करने पर उसका गर्दन टूटा मृत शरीर गढ़े में पड़ा मिला। कारण किसी की समझ में नहीं आया। शिवाजी को सूचना मिली तो उनके क्रोध की सीमा न रही। उन्होंने उस गाँव के प्रत्येक व्यक्ति को बाहर निकल आने की आज्ञा दी। शीघ्र ही सारा गाँव शिवाजी के शिविर के सामने इकट्ठा हो गया। शिवाजी ने क्रोध में गरजते हुए गाँव वालों से उस सिपाही के हत्यारे को उपस्थित करने को कहा। सबके सब मौन हो शिवाजी की तरफ याचनापूर्ण दृष्टि से ताक रहे थे। गोपाल काले से यह नहीं देखा गया। वह फौरन भीड़ से बाहर निकल आया तथा सारी घटना वर्णन करके कहने लगा, “मैं अपने सामने महिलाओं का अपमान सहन नहीं कर सका । लेकिन अब अपने स्वाभिमान की रक्षा के बदले आपसे दण्ड पाने के लिए तैयार हूँ।’’ साथ ही उसने शिवाजी से अपनी पवित्र सेना को कलंकित करने वाले ऐसे सैनिकों से बचाए रखने की प्रार्थना भी की।
शिवाजी को उसके सत्य एवं निर्भय वचनों से बड़ा हर्ष हुआ। उन्होंने मञ्च से उतरकर उस युवक को अपने हृदय से लगा लिया और बोले, “मुझे तुम जैसे शुद्ध हृदय वीर पुरुष ही सबसे अधिक प्रिय हैं। क्या तुम मेरी सेना में नायक का पद सम्भालने के लिए तैयार हो?’‘ गोपाल काले ने उस महापुरुष को धन्यवाद दिया और हाथ जोड़ते हुए अपनी स्वीकृति दे दी।
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