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सत्य जिन्दा है आज भी

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Satya Truthसत्य जिन्दा है, यह बात सबको असत्य और बेतुकी लगने लगी है। हर सुबह अखबार में लूट, हत्या, भ्रष्टाचार, डकैती, बेईमानी आदि से सम्बन्धित छपी हुई खबरें पढ़ते-पढ़ते आम आदमी के मन में यह विश्‍वास बैठ गया है कि सत्य अब जिन्दा नहीं है। सत्य मर चुका है। आम आदमी, राजनेता, अध्यापक, चिकित्सक, मालिक, कर्मचारी किसी न किसी रूप में सत्य का गला घोंटता नजर आता है। कुर्सी पानी हो या नौकरी, कारोबार बढ़ाना हो या धन कमाना, अस्पताल में रोगी की चिकित्सा करानी हो या स्कूल में बच्चों की भर्ती व शिक्षा, अदालत में मुकदमा जीतना हो या बैंक से ऋण लेना, रेलवे रिजर्वेशन लेना हो या कोई परमिट हासिल करना हो, हर काम में सत्य की अवहेलना और झूठ तथा गलत रीति का सहारा लेना मनुष्य का स्वभाव बन गया है। और तो और श्मशान में मृतक दाह के लिए भी इसी की आवश्यकता पड़ती है। आलीशान कोठियाँ, कीमती गाड़ियाँ, शान-शौकत और ऐशो-आराम के सामान, बड़े-बड़े होटलों में पार्टियाँ, धन की चमक-दमक, फिजूलखर्ची और भोग विलास की ढेर सारी सामग्री देखकर साधारण आदमी का मन खिन्न हो जाता है, मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है और वह सोचने लगता है कि क्या सत्य जिन्दा है? उसका प्रश्‍न निराधार नहीं होता। उसकी कुण्ठा, निराशा और हीनभावना भले ही विश्‍वास दिलाये कि सत्य जिन्दा नहीं, किन्तु सच्चाई यह है कि सत्य जिन्दा है, मरा नहीं है। कभी मरेगा भी नहीं।

असत्य की राख की ढेर में सत्य छुपा बैठा है। बेईमानी करने वाला मालिक मन से कभी नहीं चाहता कि उसका नौकर बेईमानी करे। शराबी बाप कभी नहीं चाहता कि उसका बेटा शराबी बने। मिलावट करने वाला, कम तौलने वाला, घूसखोर, डकैत, चोर कभी भी अपने समान पेशे वाले की प्रशंसा नहीं करता, निन्दा ही करता है।

आज तक किसी भी सत्य पर असत्य की विजय का वर्णन करके मनुष्य को पतन की ओर ले जाने की चेष्टा नहीं की गई। सत्य का गुणगान प्राचीन काल से अब तक अबाधगति से चल रहा है। राम, कृष्ण, हरिश्‍चन्द्र, युधिष्ठिर, बुद्ध, महावीर, गुरु नानक, महर्षि दयानन्द आदि सभी महान पुरुषों की पूजा सत्य के महान प्रतिष्ठाता और मार्गदर्शक के रूप में आज भी होती है। ध्रुव सत्य है यह। आज तक सिर्फ अपने लिए धन-शक्ति-ज्ञान संग्रह करने वालों को इतिहास के पृष्ठों पर स्थान नहीं मिला, समाज में प्रतिष्ठा नहीं मिली।

आये दिन दिवाला निकलने की घटनाओं के बावजूद उधार लेने-देने का धन्धा बन्द नहीं हुआ। माल के उधार की रकम डूब जाने पर भी उधारी व्यवसाय में बराबर वृद्धि हो रही है। क्या ये तथ्य सत्य के विजयी होने का प्रमाण नहीं देते?

साधु-महात्माओं के प्रवचनों, तीर्थों, पूजा-स्थलों, धार्मिक मेलों में उमड़ती हुई भीड़ आखिर किसलिए दिखाई पड़ती है? सच्चाई यह है कि असत्य से ऊबे और त्रस्त लोग सत्य की खोज में उन सभी स्थानों में भटकते फिर रहे हैं, जहाँ उसके मिलने की आशा है। हमारे धार्मिक व राष्ट्रीय पर्व-त्यौहार सत्य की प्रतिष्ठा के ही द्योतक हैं।

सिकन्दर महान, सम्राट अशोक व अन्य अनेक उदाहरण हैं, जिन सभी को अन्त में सत्य की विजय स्वीकार करनी पड़ी।

मानव शरीर पाँच तत्वों मिट्टी, जल, अग्नि, आकाश और हवा से बना है। ये पाँच तत्व सत्य के प्रतीक हैं। मिट्टी असत्य को ग्रहण कर उसे सत्य का रूप देती है। बीज में नये अंकुर के रूप में नया जीवन उत्पन्न करती है। जल सारी गन्दगी को आत्मसात् करके उसे प्राण तत्व के रूप में परिवर्तित करता है। अग्नि अशुद्ध तत्वों को ग्रहण करके उन्हें शुद्ध बना देती है। आकाश अपनी समस्त ऊर्जा सबको प्रदान करता है और हवा निरन्तर प्राण तत्व का पोषण करती रहती है। हम सत्य से ही बने हैं, सत्य हमारा जनक है। अतः सत्य हमारे स्वरूप में जीवित है। सत्य की मृत्यु का अर्थ है, हमारे जगत् की मृत्यु। सत्य को मृत मान बैठना, पराजित समझ लेना अथवा असत्य का दास कहना सर्वथा अनुचित है।

असत्य कुछ क्षणों के लिए भले ही सत्य का स्वामी बनने का नाटक करे, किन्तु वास्तव में वह सत्य के चरणों में ही रहेगा। ‘सत्यमेव जयते’ यह आदिमकाल से केवल हमारे राष्ट्र की आत्मा का प्रतीक ही नहीं, बल्कि सारे विश्‍व में हर प्राणी के लिए भारत का शाश्‍वत सन्देश भी है। सत्य कल भी जिन्दा था, आज भी जिन्दा है और कल भी जिन्दा रहेगा।

राणा प्रताप के नाम से स्थापित एक विद्यालय के छात्रों को अध्यापक ने सत्य के महत्व को समझाते हुए कहा- “यदि सफलता ही जीवन की कसौटी है तो इस विद्यालय का नाम राणाप्रताप की जगह मानसिंह विद्यालय क्यों न रखा जाए? सफलता को असत्य का आचरण करने वाले को भी मिलती है, किन्तु सदा याद रखो, सत्य सफलता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है और अन्त में वही विजयी होता है।’’ - पुष्करलाल केड़िया

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