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लघु कहानियाँ

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घमण्ड

1. एक मूंग को लगा कि मैं बहुत बड़ा हो गया हूँ। वह फूले नहीं समा रहा था। परन्तु जब वह घूमा तो उसे पता चला कि सभी मूंग उसके समान ही बड़े थे। वह मन ही मन बोल उठा- ‘मूंग से मूंग बड़ा नहीं होता’। उस दिन से उसका घमंड जाता रहा।
2. गुलाब को छुओ तो पहले कांटे सामने आते हैं। शहद को पाने के लिए पहले मधुमक्खियों से निपटना पड़ता है। पहले कठिनाइयाँ उठा लो। आगे तो आपके जीवन में शहद ही शहद मिलेगा।
3. एक बार फूलों को अपने रूप-सौंदर्य पर घमण्ड हो गया। उन्होंने कांटों से कहा- “तुम दूर हो जाओ। तुम्हारे कारण हमारा रूप-कमल भद्दा हो उठता है।“ कांटे फूलों से दूर चले गए। उधर मनुष्यों ने फूलों को नौंच डाला। उनकी एक-एक पंखुड़ी नष्ट कर डाली। फूल बहुत पछताए। उनका समूल नाश नजदीक था। उन्होंने कांटों से पुनः अपना स्थान ले लेने का निवेदन किया। अब फूलों के कष्ट कम हो गए।
4. उन्होंने अपने जीवन में कोई कठिनाई कभी भी महसूस नहीं की। क्योंकि कठिनाइयों का सामना करके ही वे आगे जो बढ़े थे।

भूल सुधार

विद्यालय से आते ही अनिल ने अपने बस्ते में से चमचमाता हुआ कीमती स्टील का नल निकाला और दादा जी को दिखाते हुए कहा- “देखिये दादा जी मैं यह स्कूल के वाटर रूप में से लाया हूँ।’‘
अनिल ने सोचा दादाजी उसे देखकर खुश होंगे। परन्तु वे बोले- “आजकल पानी का वैसे ही संकट है, तुम इसे ले आये, वह टोंटी बहेगी और पानी का भरपूर नुकसान भी होगा और क्या तुम इसे अच्छा काम कहते हो?“ उसी समय दादा जी मोहल्ले के एक नल सुधारने वाले को लाये। उन्होंने साईकिल पर अनिल को बैठने को कहा। दोनों विद्यालय गये और जहाँ से वह नल निकाला गया था, उसे वहीं लगाकर आये।
दादा जी संतुष्ट थे। अनिल भी कम सुख महसूस नहीं कर रहा था। उसे कुछ अच्छा करने और अपनी भूल का सुधार करने का अहसास जो हो रहा था।

विनम्रता

1. ‘मिट्टी ‘कड़क‘ थी। उसमें पानी आ मिला, वह ‘नरम’ हो गयी। कहते हैं “महापुरुषों के मेल से बुरे (कड़क) भी विनम्र (नरम) बन जाते हैं।’‘
2. मोती बड़ा या धागा? सोचा है कभी आपने? मोती बेशकीमती होते हैं। बेहद चमकीले होते हैं। अद्वितीय उज्जवल होते हैं, परन्तु चिकने होते हैं। फिसलने और बिखरने का गुण वे रखते हैं। धागे का क्या मूल्य? परन्तु धागा ही एक ऐसी छोटी तुच्छ वस्तु है, जो बेशकीमती मोतियों को बांधे रखता है, एक रखता है। इस अर्थ में धागा बड़ा है, न कि मोती। क्योंकि जो बांधता है, ‘एकसूत्रता’ देता है, धारण करता है, वही धागा होता है। धागे का यह अद्वितीय गुण अन्यत्र दुर्लभ है। यह मोतियों से भी ज्यादा बेशकीमती है।

बैर का परिणाम

कभी चन्दन और पलाश जंगल में साथ-साथ रहते थे। चन्दन महकता था। पलाश दहकता था। मित्र के रूप में वे दोनों खुश थे।
किसी बात पर एक बार दोनों में गहरी अनबन हो गई। एक दिन जब एक लकड़हारा वहाँ आया और उसने सुगन्धित लकड़ी की चाह की, तो पलाश बोला चन्दन की लकड़ी काट लो ना। सलाह सही थी। लकड़हारे ने चन्दन को ऐसे काटा कि वह लहूलुहान हो गया। उसके अंग-अंग काट दिये गए। वह कहीं का न रहा।
एक दिन लकड़हारा फिर वहीं आया, बोला ऐसी कूची बनाना है, जो अच्छी तरह पुताई कर सके। उस समय पलाश वहाँ नहीं था। चन्दन वहाँ था, जो पहले से ही बौखलाया हुआ था। उसने सुझाव दिया कि भैया, इस काम के लिये पलाश की जड़ों से अच्छा कुछ नहीं। लकड़हारे को बात भा गई। उसने पलाश की जड़ें खोद डाली। जड़े क्या खुदीं, पलाश तो अधमरा हो गया।
छोटी सी दुश्मनी आज तक दोनों के दुःख का कारण है।

स्वभाव

झगड़ालु कौआ लम्बी उड़ान पर जा रहा था। कोयल ने भांप लिया- “भैया कहाँ जा रहे हो?’’
“विदेश...........’’
“परन्तु भैया, कांव कांव कां, कां ...... करना छोड़ा क्या ?’’
“यह तो मेरा स्वभाव है। कैसे छोडूंगा?“
“तो भैया, कहीं भी जाओ फर्क नहीं पड़ेगा। प्यार नहीं मिलेगा। प्यार तो तभी मिलेगा, जब अपना स्वभाव छोड़ोगे। भैया, सुनो तो! स्थान भर बदलने से समस्या का समाधान नहीं होगा..........’’
अब दोनों विभिन्न दिशाओं में उड़ गये। - ललित नारायण उपाध्याय

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