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श्रीराम का प्रेरक स्वरूप (2)

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shri ram ka prerak swarup

भरत द्वारा राम की पादुकाएं राजसिंहासन गर रखकर सेवक की तरह कार्य करना राजनीतिज्ञों को आदर्श शिक्षा दे रहा है कि स्वार्थ व व्यक्तिगत द्वेषों से ऊपर उठें और जीवन में त्याग की भावना लाएं। तभी व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र का निर्माण हो सकता है। लोभ एवं स्वार्थ से ऊपर उठकर ही सच्ची सेवा हो सकती है।

इसके पश्‍चात् राम, सीता और लक्ष्मण का तपस्वी वेष में, तृण कुटिया बनाकर चित्रकूट में निवास करना वर्णित है। इसी अवसर पर रावण की बहिन शूर्पणखा का श्रीरामचन्द्र जी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखने, श्रीराम द्वारा मना करने, अधिक हठ करने और सीता को मारने तक का उद्योग करने पर लक्ष्मण द्वारा उसकी नाक काट लेना आदि का वर्णन है।

उक्त घटना से प्रेरणा मिलती है कि जैसा राम अपनी पत्नी सीता से ही सन्तुष्ट और पत्नीव्रत थे, ऐसे ही यदि हम सुखी रहना चाहते हैं तो हमें भी पत्नीव्रत बनना चाहिए। राम परस्त्रीगमन को अत्यधिक निकृष्ट और कुमार्गगामी मानते थे। वे एक स्त्री से अधिक से विवाह करना, पाप, अधर्म, मर्यादाहीनता और समाज को दूषित मानते थे।

आज के मानव-समाज में भोग-वासना की विकृतियाँ तेजी से फैल रही है। परिणाम सामने हैं। जब तक व्यक्ति नियम, संयम, मर्यादा, नैतिक मूल्य, धार्मिकता आदि नहीं अपनाएंगे तब तक सुधार नहीं होगा।

आगे सीता-अपहरण का प्रसंग है। मायावी मृग की माया में आसक्त सीता का रावण द्वारा हरण की घटना से हमें सीख लेनी चाहिए कि किसी के बाह्य स्वरूप पर तुरन्त विश्‍वास नहीं कर लेना चाहिए। पहले सोच-विचार करके और प्रसंग समझकर ही आगे बात करें। आज हमारे समाज में बहुत लोग ढोंगी, पाखण्डी तथा दिखावटी साधु बन रहे हैं। कदम-कदम पर धोखा, छल, असत्य, प्रपंच हो रहा है। ऊपर से साधु नजर आते हैं। अन्दर से पूरे स्वादु हैं। स्त्रियों में श्रद्धा-सेवा की भावना अधिक होती है, वे जल्दी ही बहकावे में आ जाती हैं। रामायण कह रही है कि नकली, ढोंगी, पाखण्डी, कामी और लालची गुरुओं तथा महन्तों से बचो। आज का आदमी अन्दर से पूरा छली, प्रपंची, ढोंगी, दिखावटी तथा स्वार्थी है। ऊपर से बड़ा सौम्य, सरल, धर्मात्मा सज्जन बन रहा है। रामायण यह कहती है कि दुनिया में आंखें खोलकर चलो। बुद्धि और विवेक से काम लो। दिखावटी, चमकीली, भड़कीली चीजों से दूर रहो।

सीताहरण प्रसंग से प्रेरणा और संकल्प लें कि हम अपने अन्दर आसुरी प्रवृत्ति को नहीं बढ़ने देंगे। हर साल हम कागज के रावण को जला देते हैं, परन्तु हमारे अन्दर की रावणप्रवृत्तियाँ बढ़ती जा रही हैं। पहले एक रावण था, आज अनेकों हैं। रामायण के पढ़ने वालो! सोचो, विचारो और अपने को बदलो। रावण की लीला को छोड़ दो। अपने मन से पापमयी वृत्तियों को निकाल दो। शुद्ध राम बन जाओ। कल्याण हो जाएगा। राक्षस से देव बन जाओ। यही तो वेद भी कहता है- उद्यानं ते पुरुष नावयानम्। हे परमात्मा की श्रेष्ठ सन्तान मानव! तेरा धर्म ऊपर उठना है। नीचे मत गिरो, राक्षस मत बनो।

जटायु एक तपस्वी साधु था, पक्षी नहीं। आज यह भ्रान्त धारणा फैली हुई है कि जटायु पक्षी था। रावण ने उसके पंख काट दिये थे। जटायु के चरित्र में सच्चे मित्र के गुण थे। मित्रता की खातिर उसने अपने प्राणों की बाजी लगा दी और कर्त्तव्य तथा मित्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। आज मित्रता स्वार्थपूर्ण हो रही है। सच्चा निःस्वार्थ मित्र मिलना दुर्लभ हो रहा है। सच्चा मित्र संकट में साथ देता है।

राम एक आदर्श महापुरुष थे। उनके कर्म, चरित्र और आदर्श इतने उच्च और महान् थे कि श्रद्धा-भक्ति तथा आदर में हम उन्हें भगवान् कहते हैं। किसी को भगवान् शब्द से सम्बोधित करना सबसे बड़ा तथा उच्च सम्मान देना है।

किष्किन्धा में सीता अपने आभूषणों को पहचान के लिए फेंकती गई, जिससे रामचन्द्र जी को उसे खोजने में प्रमाण मिल जाए। रामसीता के आभूषणों को हाथ में लेकर लक्ष्मण से पूछने लगे- ‘‘ये आभूषण तुम्हारी भाभी के ही हैं न?’’ इस पर लक्ष्मण ने बड़ी नम्रतापूर्वक उत्तर दिया- ‘‘ऊपर के अंगों में पहने जाने वाले आभूषणों के बारे में मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ। केवल पैरों के पायजेबों के सम्बन्ध में कह सकता हूँ कि ये माता सीता के ही हैं। क्योंकि प्रातः चरण-वन्दना करने के कारण इनकी मुझे पहचान है।’’

रामायण का यह प्रसंग आज के मनचले, कामी तथा वासनाओं में फंसे युवकों को पुकार-पुकार कर कह रहा है कि रामायण और रामलीला से कुछ सीखना है तो चरित्र निर्माण और विचारों की उच्चता, दिव्यता एवं पवित्रता सीखो।

रावण सीता को लंका की ओेर ले जा रहा था। सीता रथ से कूदने लगी। तब रावण बोला- ’’थोड़ी देर में लंका पहुंच जाओगी। वहाँ ऐसे सुख-ऐश्‍वर्य मिलेंगे कि वन के जीवन को भूल जाओगी। कुटी के बदले आसमान को चूमता महल मिलेगा, जिसका फर्श चाँदी का है और दीवारें सोने की हैं तथा जहाँ गुलाब और कस्तूरी की सुगन्ध आठों पहर उठा करती है। एक भिखारी पति के बदले तुम्हें ऐसा पति मिलेगा जिसकी उपमा इस धरती पर नहीं है।’’ सीता बोली- ‘‘छली-कपटी! जबान सम्भाल कर बोल। सती के साथ ऐसा व्यवहार तेरे काल का कारण बनेगा। तू अपने धन-ऐश्‍वर्य से मुझे नहीं लुभा सकता है। मैं पतिव्रता हूँ। मेरे आराध्य राम ही हैं।’’

आज अपने को आधुनिक कहलाने वाली, भोग-विलास, शृंगार और ऐशो-आराम ही जिनके जीवन का लक्ष्य है, ऐसी नारियों को सीता का यह आदर्श चरित्र, त्याग तथा पतिव्रता धर्म नया जीवन दे सकता है। आज नारी अपनी भोगी, विलासी और शृंगारी प्रवृत्ति के कारण ही दासता की बेड़ियों में जकड़ती जा रही है। उसके जीवन से तप, त्याग और सेवा के आदर्श हटते जा रहे हैं। सीता में एक आदर्श नारी के सभी गुण विद्यमान थे। वह पत्नी, भाभी, माँ आदि सभी भूमिकाओं की कसौटी पर पूरी उतरी।

इसके उपरान्त हनुमान का सीता की खोज में लंका पहुंचना वर्णित है। हनुमान जी ने अनेक संकटों एवं कठिनाइयों को पार करके अशोक-वाटिका में सीता को रामनाम अंकित अंगूठी दी। हनुमान जी एक कुशल सेनापति थे। उन्हें इच्छानुसार रूप बदलने और हल्का-भारी हो जाने की सिद्धि प्राप्त थी। श्रीराम ने लक्ष्मण से हनुमान के बारे में कहा था- ‘‘अवश्य ही यह व्यक्ति वेदशास्त्रज्ञाता, व्याकरणवेत्ता, उच्चकोटि का विद्वान और कुशाग्रबुद्धि है।’’ वस्तुतः हनुमान जी बली, योद्धा और पूर्ण ब्रह्मचारी थे। उनके चरित्र में सच्चे मित्र और सेवक के गुण थे। उन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगाकर मित्रता का मोल चुकाया। इसीलिए वे आज संसार में पूजित, सम्मानित एवं वन्दनीय हैं। उन्हें बन्दर के रूप में दिखाना भी उनसे अन्याय करना है। आज पुस्तकों में तथा लोक में हनुमान जी का जो स्वरूप मिलता है, वास्तव में वह विकृत एवं अमानवीय है।

राम-रावण के घमासान युद्ध में भयंकर नर-संहार में रावण का समूल कुल नष्ट हो जाता है। राम लंका का राज्य विभीषण को सौंपकर दलबल सहित अयोध्या लौट आते हैं। रावण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र था। शिव का परम भक्त था। वेदों और शास्त्रों का ज्ञाता था। किन्तु मांस-मदिरा और परस्त्रीगमन से उसकी पदवी राक्षस हो गई थी। रावण आचार-विचार से पतित होकर सर्वनाश को प्राप्त हुआ। - डॉ. महेश विद्यालंकार (दिव्ययुग- अक्टूबर 2012)

Inspiring form of Shriram | Ideal education | Feeling of sacrifice | Building Society and Nation | Sense of Service | Intelligence and Wisdom | Inspiration and Determination | Character Building | Height of Thoughts | Divinity and Purity | Life Goal | Respected and Venerable | Mutilated and Inhumane | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Mon Town - Junagadh - Khanna | दिव्ययुग | दिव्य युग |