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शेरे-हिन्द : नेताजी सुभाषचन्द्र बोस

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Shere Hindi Netaji Subhash Chandra Bose 00

यह मुल्क अपने बेशकीमती साहस और वीरता से भरी उस विरासत के पन्नों को पढऩे जा रहा है, जिन्हें अभी तक की सभी सरकारों ने लोगों की नजर से छिपाकर रखते हुए उन्हें सच से बेखबर रखा। मैं प. बंगाल की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी के समक्ष पूरी तरह नतमस्तक होकर उनका शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ कि आखिरकार उन्होंने उस भ्रम को तोड़ डाला जो नेताजी के बारे में अभी तक की कांग्रेस सरकारों ने बड़े यत्न से बनाकर रखा हुआ था। भारत की हकीकत यही रहेगी कि इस देश में अभी तक केवल एक ही नेता हुआ है और उसका नाम नेताजी सुभाषचन्द्र बोस था। भारत की आजादी की लड़ाई को जो लोग केवल सत्याग्रहों और अहिंसा के अस्त्र से उपजी सौगात मानकर लोगों को बहलाते रहे हैं, उनका यह भ्रम स्वयं इस देश को आजादी देने वाले ब्रिटेन के उस प्रधानमन्त्री क्लीमेंट एटली ने तोड़ दिया था, जब उन्होंने 1956 में भारत आकर प. बंगाल के दौरे में तत्कालीन राज्यपाल से बातचीत में कहा था कि हमने आजादी कांग्रेस के आन्दोलन की वजह से नहीं, बल्कि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की 'आजाद हिन्द फौज' के डर से दी थी।

संयोग देखिये कि श्री एटली की भारत यात्रा से पूर्व स्वतन्त्र भारत का संविधान लिखने वाले स्व. बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने बीबीसी को दिये गये एक साक्षात्कार में ठीक यही राय व्यक्त की थी जो एटली साहब की थी। बाबा साहेब ने कहा था कि अंग्रेजों का शासन भारत में इस वजह से पुख्ता था, क्योंकि उन्हें यकीन था कि इस देश की फौजों की वफादारी ब्रिटेन की शाही सरकार के लिए विवाद से परे है। मगर आजाद हिन्द फौज के प्रभावशाली रूप से अंग्रेजों के खिलाफ द्वितीय विश्‍व युद्ध में भाग लेने से भारतीय फौज में पुन: 1857 जैसी बगावत होने के लक्षण पैदा होने लगे थे।

1945 के आते-आते आजाद हिन्द फौज के प्रति भारतीय सैनिकों की सहानुभूति चरम पर पहुंचने लगी थी। यह ऐसी हकीकत थी जिसे डा. अम्बेडकर ने पूरी दुनिया के समक्ष अपनी मृत्यु से केवल दो महीने पहले उजागर कर दिया था। एटली ने उनके बाद ही इस सत्य को भारत में आकर स्वीकार किया। मगर देखिये इस भारत के लोगों के साथ किये गये कुचक्र को कि जब नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को 1938 में कांग्रेस पार्टी का पुन: अध्यक्ष चुने जाने पर इसे महात्मा गान्धी ने अपनी व्यक्तिगत हार के रूप में लिया, क्योंकि उनके प्रतिनिधि पट्टाभि सीतारमैया परास्त हो गये थे। तब नेताजी ने द्वितीय विश्‍व युद्ध के शुरू होने पर कहा था कि भारत की सम्पूर्ण आजादी का यही स्वर्ण अवसर है और हमें अंग्रेजों को भारत से बाहर कर देना चाहिए। क्योंकि अंग्रेज भारत की फौजों का इस्तेमाल हमें ही गुलाम बनाने के लिए कर रहे हैं। मगर महात्मा गांधी ने इस बात को स्वीकार नहीं किया और जब नेताजी भेष बदलकर भारत से विदेश चले गये और उन्होंने आजाद हिन्द फौज की कमान संभाल ली और जापान व जर्मनी के साथ मिलकर अंग्रेजों व अमरीका के खिलाफ युद्ध में भागीदारी शुरू कर दी तो एक तरफ महात्मा गान्धी के नेतृत्व में भारत की फौजों को अंग्रेजों की तरफ से लडऩे का आह्वान किया गया और दूसरी तरफ 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू कर दिया। यह अहिंसक आन्दोलन अंग्रेजों ने उस समय केवल तीन सप्ताहों में ही दबाकर कांग्रेस के नेताओं को जेल में डाल दिया और विश्‍व युद्ध की लगभग समाप्ति होने तक प्रमुख नेताओं को जेल में ही रखा।

दूसरी तरफ अंग्रेजों से आजाद हिन्द फौज लोहा लेती रही और उसने अण्डमान निकोबार द्वीप समूह को अपने कब्जे में लेकर वहाँ से आजाद हिन्द सरकार का कामकाज करना शुरू कर दिया। नेताजी की इस सरकार को लगभग 46 देशों ने मान्यता प्रदान कर दी थी। मगर 18 अगस्त, 1945 को ताइवान के ताइपे शहर में हुई एक विमान दुर्घटना को अंग्रेजों ने इम्फाल में नेताजी की फौजों की पराजय होने के स्वर्ण अवसर में बदल डाला और इसमें उनकी मृत्यु होने की खबर उड़वा दी गई। अब भारत में कैबिनेट मिशन प्लान की तैयारी कर ली गई और उसकी मार्फत इस मुल्क को कांग्रेस व मुस्लिम लीग के नेताओं के हाथ में सौंपने की योजना बना दी गई। बाद में इसे भारत और पाकिस्तान में बांटने का अन्तिम रास्ता बनाया गया। उधर नेताजी के बारे में 1945 में ही ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री एटली को एक खत लिखकर पं. नेहरू ने सूचित किया कि उनका युद्ध अपराधी सुभाषचन्द्र बोस रूस में शरण लिये हुए हैं। रूस का यह कार्य विश्‍वासघात या दगाबाजी की श्रेणी में आता है, क्योंकि वह विश्‍व युद्ध में अंग्रेजों व अमरीका के साथ है। यह खत पं. नेहरू ने दिसम्बर 1945 में लिखा था जिसके बारे में पं. नेहरू के ही विश्‍वासपात्र रहे स्टेनोग्राफर श्याम लाल जैन ने नेताजी की मृत्यु की जांच करने वाले खोसला आयोग के समक्ष 1955 में बताया था। उस समय पं. नेहरू इस देश के प्रधानमन्त्री थे। मगर अब आशंकाओं का बाजार खत्म होने जा रहा है। प. बंगाल सरकार के पास नेताजी से सम्बन्धित जितनी कुल 64 फाइलें थीं उन्हें सार्वजनिक कर दिया गया है।

मुझे उम्मीद है कि केन्द्र की मोदी सरकार भी सभी 160 के लगभग फाइलों को जल्दी ही सार्वजनिक करेगी। मगर कांग्रेस के बारे में एक तथ्य और है कि यह बंगाल के मनीषियों से हमेशा ही थरथराती रही है, जबकि इस पार्टी के पहले अध्यक्ष श्री व्योमेश चन्द्र बैनर्जी ही थे। गौर से देखें तो कांग्रेस की स्थापना कोलकाता विश्‍वविद्यालय से निकले कुछ बुद्धिजीवियों ने ही की थी। मगर इस पार्टी ने अपनी ही छाया से भागना बन्द नहीं किया। लेकिन देखिये ममता बनर्जी को जिन्होंने एक ही दांव में 2012 के राष्ट्रपति चुनाव की कांग्रेसी चालों को किस तरह बेनकाब किया था और पूछा था कि जब राष्ट्रपति का पद एक है तो कांग्रेसी किस तरकीब से दो प्रत्याशियों के नाम सुझा रहे हैं? (श्री प्रणव मुखर्जी और हामिद अंसारी) इतना ही नहीं स्वयं ममता दी ने ही 1996 में कोलकाता में हुए कांग्रेस अधिवेशन में पूरी पार्टी को दिन में तारे दिखाते हुए कहा था कि लोगों से कटी-फटी कांग्रेस का क्या मतलब। असली कांग्रेस तो ’तृणमूल कांग्रेस’ ही बनेगी और ऐसा उन्होंने करके दिखा भी दिया। अब उन्होंने फिर से सिद्ध किया है कि आजादी की लड़ाई के असली महानायकों को बाहर लाना ही होगा और इस तरह लाना होगा जैसे नेताजी की फौज के सिपाही गाया करते थे। इसके बाद कांग्रेस को बंगाल की खाड़ी में ही फैंकने के अलावा भारत के लोग कुछ और नहीं कर सकते।
कदम-कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा।
ये जिन्दगी है कौम की, तू कौम पर लुटाये जा।
वो शेरे-हिन्द आ गये, वो सुभाष आ गये ॥ - अश्‍विनी कुमार (दिव्ययुग- नवम्बर 2015)

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