यहाँ महर्षि दयानन्द और उनके प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सत्यार्थप्रकाश‘ के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों द्वारा समय-समय पर प्रकट की गई सम्मतियों का संकलन किया गया है, जिससे उनकी महत्ता का दिग्दर्शन-मात्र हो सकता है-
* मेरा सादर प्रणाम हो उस महान् गुरु दयानन्द को, जिसकी दृष्टि ने भारत के आध्यात्मिक इतिहास में सत्य और एकता को देखा और जिसके मन ने भारतीय जीवन के सब अंगों को प्रदीप्त कर दिया। जिस गुरु का उद्देश्य भारतवर्ष को अविद्या, आलस्य और प्राचीन ऐतिहासिक तत्त्व के अज्ञान से मुक्त कर सत्य और पवित्रता की जागृति में लाना था, उसे मेरा बारम्बार प्रणाम है। ... मैं आधुनिक भारत के मार्गदर्शक उस दयानन्द को आदरपूर्वक श्रद्धांजलि देता हूँ, जिसने देश की पतितावस्था में सीधे व सच्चे मार्ग का दिग्दर्शन कराया। डॉ. रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* वह दिव्य ज्ञान का सच्चा सैनिक, विश्व को प्रभु की शरण में लानेवाला योद्धा और मनुष्यों व संस्थाओं का शिल्पी तथा प्रकृति द्वारा आत्मा के मार्ग में उपस्थित की जाने वाली बाधाओं का वीर विजेता था और इस प्रकार मेरे समक्ष आध्यात्मिक क्रियात्मकता की एक शक्ति-सम्पन्न मूर्ति उपस्थित होती है। इन दो शब्दों का, जो कि हमारी भावनाओं के अनुसार एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं, मिश्रण ही दयानन्द की उपयुक्त परिभाषा प्रतीत होती है। उसके व्यक्तित्व की व्याख्या की जा सकती है- एक मनुष्य, जिसकी आत्मा में परमात्मा है, चर्म-चक्षुओं में दिव्य तेज है और हाथों में इतनी शक्ति है कि जीवन-तत्त्व से अभीष्ट स्वरूपवाली मूर्ति घड़ सके तथा कल्पना को क्रिया में परिणत कर सके। वह स्वयं दृढ चट्टान थे। उनमें दृढ शक्ति थी कि चट्टान पर घन चलाकर पदार्थों को सुदृढ व सुडौल बना सकें। प्राचीन सभ्यता में विज्ञान के गुप्त भेद विद्यमान हैं, जिनमें से कुछ को अर्वाचीन विद्याओं ने ढूंढ लिया है, उनका परिवर्तन किया है और उन्हें अधिक समृद्ध व स्पष्ट कर दिया है, किन्तु दूसरे अभी तक निगूढ ही बने हुए हैं। इसलिए दयानन्द की इस धारणा में कोई अवास्तविकता नहीं है कि वेदों में विज्ञान-सम्मत तथा धार्मिक सत्य निहित हैं।
वेदों का भाष्य करने के बारे में मेरा विश्वास है कि चाहे अन्तिम पूर्ण अभिप्राय कुछ भी हो, किन्तु इस बात का श्रेय दयानन्द को ही प्राप्त होगा कि उसने सर्वप्रथम वेदों की व्याख्या के लिए निर्दोष मार्ग का आविष्कार किया था। चिरकालीन अव्यवस्था और अज्ञान-परम्परा के अन्धकार में से सूक्ष्म और मर्म-भेदी दृष्टि से उसी ने सत्य को खोज निकाला था। जंगली लोगों की रचना कही जाने वाली पुस्तक के भीतर उसके धर्म-पुस्तक होने का वास्तविक अनुभव उन्होंने ही किया था। ऋषि दयानन्द ने उन द्वारों की कुंजी प्राप्त की है, जो युगों से बन्द थे और उसने पटे हुए झरनों का मुख खोल दिया। ... ऋषि दयानन्द के नियम-बद्ध कार्य ही उनके आत्मिक शरीर के पुत्र हैं, जो सुन्दर, सुदृढ और सजीव हैं तथा अपने कर्त्ता की प्रत्याकृति हैं। वह एक ऐसे पुरुष थे जिन्होंने स्पष्ट और पूर्ण रीति से जान लिया था कि उन्हें किस कार्य के लिए भेजा गया है। श्री अरविन्द घोष
* दयानन्द का चरित्र मेरे लिए ईर्ष्या और दुःख का विषय है।.... महर्षि दयानन्द हिन्दुस्तान के आधुनिक ऋषियों में, सुधारकों में और श्रेष्ठ पुरुषों में एक थे। उनके जीवन का प्रभाव हिन्दुस्तान पर बहुत अधिक पड़ा है। महात्मा गान्धी
* ऋषि दयानन्द ने भारत के शक्ति-शून्य शरीर में अपनी दुर्द्धर्ष शक्ति, अविचलता तथा सिंह-पराक्रम फूंक दिए हैं। स्वामी दयानन्द सरस्वती उच्चतम व्यक्तित्व के पुरुष थे। यह पुरुषसिंह उनमें से एक था जिन्हें यूरोप प्रायः उस समय भुला देता है जबकि वह भारत के सम्बन्ध में अपनी धारणा बनाता है। किन्तु एक दिन यूरोप को अपनी भूल मानकर उसे याद करने के लिए बाधित होना पड़ेगा। क्योंकि उसके अन्दर कर्मयोगी, विचारक और नेता के उपयुक्त प्रतिभा का दुर्लभ सम्मिश्रण था।
दयानन्द ने अस्पृश्यता व अछूतपन के अन्याय को सहन नहीं किया और उससे अधिक उनके अपहृत अधिकारों का उत्साही समर्थक दूसरा कोई नहीं हुआ। भारत की स्त्रियों की शोचनीय दशा को सुधारने में भी दयानन्द ने बड़ी उदारता व साहस से काम लिया। वास्तव में राष्ट्रीय भावना और जन-जागृति के विचार को क्रियात्मक रूप देने में सबसे अधिक प्रबल शक्ति उसी की थी। वह पुनर्निर्माण और राष्ट्र-संगठन के अत्यन्त उत्साही पैगम्बरों में से था। फ्रेंच लेखक रोम्यां रोलां
* हमें वेदों के अध्ययन को प्रोत्साहन देने और यह सिद्ध करने में कि मूर्तिपूजा वेदसम्मत नहीं है, स्वामी दयानन्द के महान् उपकार को अवश्य स्वीकार करना चाहिए। आर्यसमाज के प्रवर्तक वर्तमान जाति-भेद की मूर्खता और उसकी हानियों के विरुद्ध अपने अनुयायियों को तैयार करने के अतिरिक्त यदि और कुछ भी न करते, तो भी वह वर्तमान भारत के बड़े नेता के रूप में अवश्य सम्मान पा जाते। जर्मन प्रोफेसर डॉ. विण्टरनीज
* मेरे निर्बल शब्द ऋषि की महत्ता का वर्णन करने में अशक्त हैं। ऋषि के अप्रतिम ब्रह्मचर्य, सत्य-संग्राम और घोर तपश्चर्या के लिए अपने हृदय के पूज्य भावों से प्रेरित होकर मैं उनकी वन्दना करता हूँ। मैं ऋषि को शक्ति-सुत अर्थात् कर्मवीर योद्धा समझकर उनका आदर करता हूँ। उनका जीवन राष्ट्र-निर्माण के लिए स्फूर्तिदायक, बलदायक और माननीय है। दयानन्द उत्कट देशभक्त थे, अतः मैं राष्ट्रवीर समझकर उनकी वन्दना करता हूँ। साधु टी.एल. वास्वानी
* स्वामी दयानन्द निःसन्देह एक ऋषि थे। उन्होंने अपने विरोधियों द्वारा फेंके गए ईंट-पत्थरों को शान्तिपूर्वक सहन कर लिया। उन्होंने अपने में महान् भूत और महान् भविष्य को मिला दिया। वह मरकर भी अमर हैं। ऋषि का प्रादुर्भाव लोगों को कारागार से मुक्त करने और जाति-बन्धन तोड़ने के लिए हुआ था। ऋषि का आदेश है- आर्यावर्त, उठ जाग ! समय आ गया है, नए युग में प्रवेश कर, आगे बढ ! पाल रिचर्ड (प्रसिद्ध फ्रेंच लेखक)
* स्वामी दयानन्द सरस्वती ने हिन्दू-धर्म के सुधार का बड़ा कार्य किया और जहाँ तक समाज-सुधार का सम्बन्ध है, वह बड़े उदार हृदय थे। वे अपने विचारों को वेदों पर आधारित और उन्हें ऋषियों के ज्ञान पर अवलम्बित मानते थे। उन्होंने वेदों पर बड़े-बड़े भाष्य किये, जिससे मालूम होता है कि वे पूर्ण विज्ञ थे। उनका स्वाध्याय बड़ा व्यापक था। प्रो. एफ. मैक्समूलर
* स्वामी दयानन्द के सिद्धान्त उनके सत्यार्थप्रकाश में निहित हैं। यही सिद्धान्त वेदभाष्य-भूमिका में हैं। स्वामी दयानन्द एक धार्मिक सुधारक थे। उन्होंने मूर्तिपूजा से अविराम युद्ध किया। सर वेलण्टाइन चिरौल
* आर्यसमाज समस्त संसार को वेदानुयायी बनाने का स्वप्न देखता है। स्वामी दयानन्द ने इसे जीवन और सिद्धान्त दिया। उनका विश्वास था कि आर्य जाति चुनी हुई जाति, भारत चुना हुआ देश और वेद चुनी हुई धार्मिक पुस्तक है..। ब्रिटेन के (स्व.) प्रधानमन्त्री रेम्जे मैकडॉनल्ड
* स्वामी दयानन्द सरस्वती के अनुयायी उन्हें देवता-तुल्य जानते थे, और वह निस्सन्देह इसी योग्य थे। वह इतने विद्वान् और अच्छे आदमी थे कि प्रत्येक धर्म के अनुयायियों के लिए सम्मान-पात्र थे। उनके समान व्यक्ति समूचे भारत में इस समय कोई नहीं मिल सकता। अतः प्रत्येक व्यक्ति का उनकी मृत्यु पर शोक करना स्वाभाविक है। सर सैयद अहमद खां
* मेरी सम्मति में स्वामी दयानन्द एक सच्चे जगत्-गुरु और सुधारक थे। मि.फॉक्स पिट् (जनरल सेके्रटरीमॉरल एजूकेशन लीग लन्दन)
* स्वामी दयानन्द सरस्वती उन महापुरुषों में से थे, जिन्होंने आधुनिक भारत का निर्माण किया और जो उसके आचार-सम्बन्धी पुनरुत्थान तथा धार्मिक पुनरुद्धार के उत्तरदाता हैं। हिन्दू समाज का उद्धार करने में आर्यसमाज का बहुत बड़ा हाथ है। रामकृष्ण मिशन ने बंगाल में जो कुछ किया, उससे कहीं अधिक आर्यसमाज ने पंजाब और संयुक्त प्रान्त में किया। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण न होगा कि पंजाब का प्रत्येक नेता आर्यसमाजी है। स्वामी दयानन्द को मैं एक धार्मिक और समाज-सुधारक तथा कर्मयोगी मानता हूँ। संगठन-कार्यों के सामर्थ्य और प्रयास की दृष्टि से आर्यसमाज अनुपम संस्था है। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस
* उनकी मृत्यु से भारत-माता ने अपने योग्यतम पुत्रों में से एक को खो दिया। कर्नल अल्कॉट (थियोसॉफिकल सोसायटी के प्रेसीडेण्ट)
* स्वामी दयानन्द सरस्वती राष्ट्रीय, सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से भारत का एकीकरण चाहते थे। भारतवासियों को राष्ट्रीयता के सूत्र में ग्रथित करने के लिए उन्होंने देश को विदेशी दासता से मुक्त करना आवश्यक समझा था। श्री रामानन्द चटर्जी (सम्पादक ‘मॉडर्न रिव्यू‘)
* जब भारत के उत्थान का इतिहास लिखा जाएगा तो नंगे फकीर दयानन्द सरस्वती को उच्चासन पर बिठाया जाएगा। सर यदुनाथ सरकार
* स्वामी दयानन्द मेरे गुरु हैं। मैंने संसार में केवल उन्हीं को गुरु माना है। वह मेरे धर्म के पिता हैं और आर्यसमाज मेरी धर्म की माता है। इन दोनों की गोद में मैं पला। मुझे इस बात का गर्व है कि मेरे गुरु ने मुझे स्वतन्त्रतापूर्वक विचार करना, बोलना और कर्त्तव्य-पालन करना सिखाया तथा मेरी माता ने मुझे एक संस्था में बद्ध होकर नियमानुवर्तिता का पाठ दिया। पंजाब-केसरी लाला लाजपतराय
* स्वामी दयानन्द के उच्च व्यक्तित्व और चरित्र के विषय में निस्सन्देह सर्वत्र प्रशंसा की जा सकती है। वे सर्वथा पवित्र तथा अपने सिद्धान्तों के अनुसार आचरण करनेवाले महानुभाव थे। वह सत्य के अत्यधिक प्रेमी थे। रेवरेण्ड सी.एफ. एण्ड्रयूज
* इसका श्रेय केवल स्वामी दयानन्द को ही है कि हिन्दू लोग आधी शताब्दी में ही रूढिवाद और पौराणिक देवी-देवताओं की पूजा छोड़कर एक अत्यन्त शुद्ध ईश्वरवाद को मानने लगे हैं। प्रिंसिपल एस.के.रुर्द
* महर्षि दयानन्द ने भारत और संसार-मात्र की जो सेवा की है, उसे मैं भली-भांति जानता हूँ। वह भारतवर्ष के सर्वोत्तम महापुरुषों में से थे। स्वामी जी ने मातृभूमि की सबसे बड़ी सेवा यह की है कि उसमें जातीय शिक्षा का विचार पैदा कर दिया है। श्री जी.एस.अरुण्डेल
* ऋषि दयानन्द ने हिन्दू-समाज के पुनरुत्थान में इतना अधिक हाथ बटाया कि उन्हें 19वीं शताब्दी का प्रमुखतम हिन्दू समझा जाएगा। श्री तारकनाथ दास, एम.ए, पी-एच.डी. (म्यूनिख)
* स्वामी दयानन्द भारतवर्ष के उन धार्मिक महापुरुषों में से एक हैं, जिनका गुणानुवाद करने में ही जीवन समाप्त हो सकता है। उन्होंने मन, वचन और कर्म की स्वतन्त्रता का सन्देश दिया तथा मानव-मात्र को समानता का उपदेश दिया। वह अपने जीवन और मृत्यु में महान् ही रहे। श्रीमती सरलादेवी चौधरानी
* महर्षि दयानन्द भारत-माता के उन प्रसिद्ध और उच्च आत्माओं में से थे, जिनका नाम संसार के इतिहास में सदैव चमकते हुए सितारों की तरह प्रकाशित रहेगा। वह भारत-माता के उन सपूतों में से हैं, जिनके व्यक्तित्व पर जितना भी अभिमान किया जाए थोड़ा है। नैपोलियन और सिकन्दर जैसे अनेक सम्राट एवं विजेता संसार में हो चुके हैं, परन्तु स्वामी जी उन सबसे बढकर थे। खदीजा बेगम एम.ए.
* ईसाइयत और पश्चिमी सभ्यता के मुख्य हमले से हिन्दुस्तानियों को सावधान करने का सेहरा यदि किसी व्यक्ति के सिर बांधने का सौभाग्य प्राप्त हो तो स्वामी दयानन्द जी की ओर इशारा किया जा सकता है। 19 वीं सदी में स्वामी दयानन्द जी ने भारत के लिए जो अमूल्य काम किया है, उससे हिन्दू जाति के साथ-साथ मुसलमानों तथा दूसरे धर्मावलम्बियों को भी बहुत लाभ पहुँचा है। पीर मुहम्मद यूनिस
* स्वामी दयानन्द ही पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने ‘हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों के लिए‘ का नारा लगाया था। .... आर्यसमाज के लिए मेरे हृदय में शुभ इच्छाएं हैं और उस महान् पुरुष के लिए, जिनका आप आर्य आदर करते हैं, मेरे हृदय में सच्ची पूजा की भावना है। श्रीमती ऐनी बैसेण्ट
* स्वामी दयानन्द जी पर संकीर्णता का दोष लगाना भ्रमात्मक और मिथ्या है। ... उनकी शिक्षाओं का प्रमुख लक्ष्य एकता रहा और इस्लाम का आतंक हिन्दुओं को जाति-भेद की उपेक्षा करके संगठित होने में बहुत सहायक सिद्ध हुआ। उनके प्रयत्नों से आर्य या हिन्दू एक जाति और वेदों का आदर्श ‘पारस्परिक एकसूत्रता‘ के साधन बन गए। श्री नृसिंह चिन्तामणि केलकर | - इन्द्र विद्यावाचस्पति (दिव्ययुग- नवम्बर 2015)
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