निवात कवचों से रावण का युद्ध एक वर्ष तक होता रहा, कोई विजयी नहीं हुआ। निवात कवच और कालकेय दोनों दानव कहलाते थे। ये दानव कश्यप पत्नी दनु की संतान थे। अरब साहित्य में दानवों का वर्णन आया है। विकराल शरीर वाले को अरबी भाषा में दाना कहते हैं। अरब के अशिक्षित लोगों की अपेक्षा भारत के दानव पढ़े-लिखे विद्वान थे। इस कारण अरब साहित्य में विद्वान को दानिशमंद कहते हैं। सिन्ध और बलूचिस्तान अरब देश के अत्यंत निकट हैं। सौ किलोमीटर ओमन की खाड़ी के बाद अरब देश (मस्कत) पहुंचा जा सकता है।
निवात कवचों से मैत्री संधि कर रावण एक वर्ष वहाँ रहा, फिर कालकेय यवनों (बलूच) पर उसने आक्रमण कर दिया। यहाँ युद्ध में रावण के हाथों उसका बहनोई विद्युतजीव्ह (शूर्पणखा का पति) मारा गया।
बलोचिस्तान के दक्षिण के 4-5 गांवों के लोग आज भी स्वयं को रावण का वंशज कहते हैं। यह प्रमाण है कि रामायण में वर्णित कालकेय और निवात कवच दानव यहीं निवास करते थे। रावण की सेना यहाँ दो-तीन वर्ष रही। इस अवधि में उनके संबंध स्थानीय महिलाओें से रहे होंगे। रावण की सेना में सोमालिया के सवा छः फुट ऊंचे हब्शी बड़ी संख्या में थे। मकरान (बलूच) से लेकर दक्षिण सिन्ध, कच्छ तक के निवासी श्याम वर्ण व छः फुट ऊंचे शरीर के हैं। उत्तरी बलूचिस्तान, मध्य उत्तरी सिन्ध के लोग गौरवर्णी हैं।
कालकेयों को जीतकर रावण ने वरुण पर आक्रमण कर दिया। वरुण जल के देवता कहे जाते हैं। कराची के निकट द्वीपों का जाल फैला है, यहाँ के द्वीपों पर भवनों और मंदिरों की भरमार है। आज यह स्थान पाकिस्तानी जल सेना का अड्डा है। (वाल्मीकि रामायण उत्तरकाण्ड 23वां सर्ग) यही वरुण स्थान है।
रामायण में वर्णित रावण की विजय यात्रा के सभी देश-स्थान कल्पित नहीं हैं। वाल्मीकि ने रावण की विजय यात्रा और पथ का सत्य वर्णन किया है और बलूचिस्तान के ग्रामीण उसकी पुष्टि करते हैं।
रावण का अन्तिम आक्रमण माहिष्मती (महेश्वर) के राजा सहस्त्रार्जुन पर हुआ। इसमें रावण परास्त हुआ और बन्दी बना लिया गया। तब रावण के दादा पुलस्त्य जी ने सहस्त्रार्जुन से प्रार्थना कर रावण को बन्धन मुक्त कराया। (वाल्मीकि रामायण उत्तरकांड 32वां सर्ग श्लोक 65 से 73 एवं 33वां सर्ग श्लोक 16-17)
सहस्त्रार्जुन पर आक्रमण के समय रावण ने नर्मदा के दक्षिणी तट पर बड़वानी के समीप अपनी छावनी डाली थी। क्योंकि नर्मदा के उत्तरी तट पर माहिष्मती नगरी तथा सहस्त्रार्जुन की सेना थी। जैन ग्रन्थों में भी बड़वानी के समीप विशाल पर्वत पर रावण, कुम्भवर्ण, मेघनाथ के हजारों राक्षसों के साथ तप करके मोक्ष जाने का वर्णन है। जैन ग्रन्थ भी रावण की उपस्थिति का वर्णन करते हैं। याने वाल्मीकि द्वारा लिखी रावण-सहस्त्रार्जुन संघर्ष की कथा सत्य ऐतिहासिक है। पश्चिम के विद्वानों की परम्परा, जो अभी पांच हजार वर्ष पूर्व ही सभ्य हुए हैं, उनके द्वारा जैन ग्रन्थों को भी नकारना उनके अज्ञान को ही दर्शाता है।
वानर जाति- वाल्मीकि ने रामायण में वानर जाति का वर्णन किया है। लेखक का कथन है कि ये वानर, जंगलों में रहने वाले बन्दर नहीं थे। ये तो देवताओं (कश्मीर), गंधर्वों (पेशावर), नागों (पंजाब) यक्षों (तिब्बत) और किन्नरों (हिमालय प्रदेश) की संतान थे। इनके माता-पिता ने इन्हें युद्ध की शिक्षा देकर (कमांडो) वानर बनाया था। यह सेना रावण से युद्ध के लिये बनाई गई थी। कारण यह था कि देवताओं, गंधर्वों, नागों, दानवों, यक्षों और किन्नरों को रावण युद्ध में परास्त कर संधि कर चुका था। अब ये जातियाँ प्रत्यक्ष रावण पर आक्रमण नहीं कर सकती थीं। इस कारण सभी जातियों ने चुपचाप अपनी संतानें वानर (कमांडो) रूप में प्रशिक्षित कर एक सेना का निर्माण किया था।
देवराज इन्द्र ने अपना पुत्र बाली, सूर्य ने अपना पुत्र सुग्रीव, बृहस्पति ने अपना तार (हनुमान के ताऊ), कुबेर ने अपना पुत्र गन्धमादन, विश्वकर्मा ने अपना पुत्र नल, अग्नि देव ने अपना पुत्र नील, अश्विनी कुमारों के पुत्र मैन्द और द्विविद, वरुण ने अपना पुत्र सुषेण, परजन्य ने अपना पुत्र शरभ, केशरी (बृहस्पतिपुत्र) ने अपना पुत्र हनुमान, वानर सेना में सम्मिलित किये। (वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड 17वां सर्ग श्लोक 1 से 16)
वाल्मीकि कहते हैं कि ये वानर जंगली कन्दमूल खाते थे। साहस में सिंह, बल में बाघ के समान थे। पत्थर और चट्टानों से प्रहार करते थे। नख और दांतों से भी शस्त्र का काम लेते थे। इन्हें सभी प्रकार के अस्त्र (फेंककर मारने वाले) और शस्त्रों (हाथ में पकड़ कर लड़ने वाले) को चलाने का ज्ञान था। ये इच्छानुसार रूप धर लेते थे। (वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड श्लोक 17 से 26) किन्तु ये वानर प्राकृत वानरों से भिन्न थे, याने बन्दर या लंगूर नहीं, मनुष्य थे। (वा.रा. बालकांड 17वां सर्ग श्लोक 31) ये लक्षण तो वर्तमान भारतीय सेना में तैयार किये जा रहे कमाण्डो सैनिकों के हैं।
ये वानर कश्मीर, गांधार, हिमाचल, तिब्बत आदि ठण्डे पर्वतीय प्रदेशों के थे। इस कारण इन्होंने दक्षिण के गर्म स्थानों में से पांच हजार फीट ऊंचे पर्वतीय ठंडे प्रदेशों और पम्पा सरोवर तथा तुंगभद्रा नदी तटवर्ती किष्किन्धा को अपना निवास बनाया। सारे दक्षिण में काले व श्यामवर्णी मानव निवास करते हैं, किन्तु कुर्ग कबीले के लोग आज भी गौरवर्णी हैं। यहाँ से भारतीय सेना के दो प्रधान सेनापति जनरल थिम्मैया और जनरल करिअप्पा निकले हैं। करिअप्पा अत्यंत गौरवर्णी थे। यहाँ से कई रूपसी अभिनेत्रियाँ निकली हैं, जो बालीवुड की शोभा बढ़ा रही हैं। ये ऊटी, कुर्ग और किष्किन्धा के मानव गौवरर्णी हैं या मिश्रण हो जाने के कारण गेहुंए वर्ण के हो गये हैं। कुछ इतिहासकार इनकी भूरी आंखें, ऊंचा शरीर व गौरवर्ण देख इन्हें अरब से आये यहूदी मानते हैं। किन्तु यहूदियों की आंखें भूरी नहीं कंजी होती हैं। अफगानों, पंजाबियों, कश्मीरियों की आंखें ही भूरी होती हैं। ये सारे यहूदी नहीं, हिन्दू हैं।
कश्मीर की भांति यह सारा प्रदेश ठण्डा, पहाड़ी व छोटे-बड़े नदी-नालों का है। ठंडा होने के कारण इनका रंग नहीं बदला, अपितु यह तो इनके कश्मीरी, गंधर्व, किन्नर नस्ल का होने के कारण है। भूमध्य रेखा पर कांगों के बर्फीले पहाड़ों पर रहने वाले काले हब्शियों का रंग क्यों नहीं बदला? न्यूजीलैंड के ठण्डे प्रदेश में रहने वाले आदिवासी माबरी जनजाति के लोग काले क्यों हैं, गोरे क्यों नहीं हुए? ये तो लाखों वर्षों से वहीं निवास करते हैं।
इन्हें यहूदी बताने बताने वाले बताएं कि ये किस समय भारत आये और किस समय इन्होंने अपना धर्म बदला और हिन्दू बने। इसका कोई लिखित या जनश्रुति का प्रमाण है क्या? हम तो वाल्मीकि रामायण के आधार पर कहते हैं कि गंधर्व, नाग, किन्नरों की वानर सन्तानें हैं, जो यहीं बस गये थे। शासन इनका रक्त परीक्षण करवाकर निर्णय ले सकता है।
रावण उड़ीसा में- रावण सारा भारत विजय करना चाहता था। उसने अयोध्या तो जीत लिया था किन्तु उसके आगे मिथिला, बंगाल, प्राग्जोतिषपुर (आसाम) बाकी थे। दक्षिण से बढ़ती रावण सेना को अगस्त्य ने रोक दिया था। उसके दो सेनापति वातापि व इल्विल अगस्त्य के हाथों मारे जा चुके थे। (वाल्मीकि रामायण अरण्यकाण्ड 11वां सर्ग श्लोक 64 से 66)
इन्हीं अगस्त्य ने ताटका पति सुन्द को भी मार डाला था। वह भी राक्षस सेनापति था। सुन्द और ताटका से एक पुत्र हुआ था, उसका नाम मारीच था। ताटका ने पति का बदला लेने के लिए बहुत प्रयत्न किया, परन्तु हारकर भाग गई।
गोदावरी तट पर राक्षस सेना रुक गई थी, तब रावण ने पूर्वी भारत जीतने के लिए उड़ीसा के मार्ग से भारत में प्रवेश किया। जहाजों द्वारा उसके सैनिक उड़ीसा तट पर उतरे और महाकौशल तक फैले महाराज गाधि (विश्वामित्र के पिता) के राज्य को उजाड़ डाला।
इस राक्षस सेना का नेतृत्व स्वयं ताटका, उसका पुत्र मारीच और ताटका के देवर उपसुन्द का पुत्र सुबाहु कर रहे थे। (वाल्मीकि रश्र होकर गोदावरी के दक्षिण तट पर पड़ी रावण सेना से जा मिला। (वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड 26वां सर्ग एवं 30वां सर्ग श्लोक 18 एवं 22-23)
रावण की सेना उड़ीसा और महाकौशल में कई वर्षों तक रही। इस काल में राक्षसों के स्थानीय महिलाओं से विवाह सम्बन्ध हुए और संतानें हुई। इस क्षेत्र के कई आदिवासी कबीले स्वयं को रावण के वंशज कहते हैं। इसी आधार पर कई विद्वान रावण की लंका महाकौशल में ढूंढने का प्रयत्न करते हैं। यह भी एक प्रमाण है रामायण के सत्य ग्रन्थ होने का और रावण के ऐतिहासिक व्यक्ति होने का। जब रावण का प्रमाण स्थानीय जनता दे रही है, तब राम तो स्वतः प्रमाणित हो जाते हैं।
Like Kashmir, this entire region is of cold, mountainous and small rivers and streams. Their color did not change due to the cold, but it is because of their Kashmiri, Gandharva, Kinnar breed. Why didn't the color of the black Habshis living on the snowy mountains of the Congo on the equator change?
Ram Ramayan and Ram Sethu Kalpana No. 6 | Vijay trips of Ravana | The Story of Ravan Sahastrarjun Struggle | True Historical | Proof of Birth | Descendants of Raavan | Description of Salvation | Ramayana Aranyakand | Leaders of the Demon Army | Defeat in War | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Lohian Khas - Khaniyadhana - Hathin Palwal | News Portal - Divyayug News Paper, Current Articles & Magazine Lohta - Wajegaon - Hodal Palwal | दिव्ययुग | दिव्य युग