सभी जानते हैं भारत में अगर हिन्दू धर्म की कोई सबसे बड़ी पहचान है तो वह हैं इसके त्यौहार। और सिर्फ हिन्दू ही क्यूं भारत में तो हर जाति और धर्म के त्यौहारों का अनूठा संगम देखने को मिलता है। हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है राखी या रक्षाबन्धन।
रक्षाबन्धन भाई और बहन के रिश्ते की पहचान माना जाता है। राखी का धागा बान्ध बहन अपने भाई से अपनी रक्षा का प्रण लेती है। यूं तो भारत में भाई-बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं है, पर रक्षाबन्धन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है।
भारत चाहे आज कितना भी विकसित क्यूं ना हो जाए, यहाँ धर्म हर चीज पर भारी पड़ता है। रक्षाबन्धन के सन्दर्भ में भी कहा जाता है कि अगर इस पर्व का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व नहीं होता तो शायद यह पर्व अब तक अस्तित्व में रहता ही नहीं। तो चलिए जानते हैं आखिर क्या है रक्षाबन्धन का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व!
रक्षाबन्धन का धार्मिक महत्व- पौराणिक मान्यता के अनुसार यह पर्व देवासुर संग्राम से जुडा है। जब देवों और दानवों के बीच युद्ध चल रहा था और दानव विजय की ओर अग्रसर थे तो यह देखकर राजा इन्द्र बेहद परेशान थे। दिन-रात उन्हें परेशान देखकर उनकी पत्नी इन्द्राणी (जिन्हें शशिकला भी कहा जाता है) ने भगवान की आराधना की। उनकी पूजा से प्रसन्न हो भगवान ने उन्हें एक मन्त्रसिद्ध धागा दिया । इस धागे को इन्द्राणी ने इन्द्र की कलाई पर बाँध दिया। इस प्रकार इन्द्राणी ने पति को विजयी कराने में मदद की। इस धागे को रक्षासूत्र का नाम दिया गया और बाद में यही रक्षा सूत्र रक्षाबन्धन हो गया।
वामनावतार में रक्षाबन्धन- वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। कथा है कि राजा बलि ने यज्ञ सम्पन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया, तो देवराज इन्द्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए । गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिन्तित हो गई । नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बान्धकर उसे अपना भाई बना लिया। बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
महाभारत में रक्षाबन्धन- महाभारत में भी रक्षाबन्धन के पर्व का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूँ? तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्यौहार मनाने की सलाह दी थी। शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी। यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था।
हुमायूं ने निभाई राखी की लाज- चित्तौड़ की विधवा महारानी कर्मवती ने जब अपने राज्य पर संकट के बादल मंडराते देखे तो उन्होंने गुजरात के बहादुर शाह के खिलाफ मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेज मदद की गुहार लगाई और उस धागे का मान रखते हुए हुमायूं ने तुरन्त अपनी सेना चित्तौड़ रवाना कर दी। इस धागे की मूल भावना को मुगल सम्राट ने न केवल समझा बल्कि उसका मान भी रखा।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने दिया नया नजरिया- गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने राखी के पर्व को एकदम नया अर्थ दे दिया। उनका मानना था कि राखी केवल भाई-बहन के सम्बन्धों का पर्व नहीं, बल्कि यह इन्सानियत का पर्व है। विश्वकवि रवीन्द्रनाथ जी ने इस पर्व पर बंग भंग के विरोध में जनजागरण किया था और इस पर्व को एकता और भाईचारे का प्रतीक बनाया था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जन जागरण के लिए भी इस पर्व का सहारा लिया गया।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि रिश्तों से ऊपर उठकर रक्षाबन्धन की भावना ने हर समय और जरूरत पर अपना रूप बदला है। जब जैसी जरूरत रही वैसा अस्तित्व उसने अपना बनाया। जरूरत होने पर हिन्दू स्त्री ने मुसलमान भाई की कलाई पर इसे बान्धा तो सीमा पर हर स्त्री ने सैनिकों को राखी बान्धकर उन्हें भाई बनाया। राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बान्धी जाने लगी है । इस नजरिये से देखें तो एक अर्थ में यह हमारा राष्ट्रीय पर्व बन गया है। प्रस्तुति- श्रीमती रेखा देव (दिव्ययुग - अगस्त 2014)
The story of Rakshabandhan is found in the legend called Vamnavatar. There is a story that after King Bali sacrificed a yagna and tried to gain authority over heaven, Devraj Indra prayed to Lord Vishnu. Vishnu became a Vamana Brahmin and went to King Bali to beg for alms.
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