अलौकिकं प्रेम तयोर्विचिन्त्य चिमाजि-चित्ते तु भयं निगूढ़म्।
मस्तानि-पुत्रः कुलसम्पदाया दायाधिकारी तु भविष्यतीति॥171॥
मस्तानि-निर्देशमवाप्य तत्र सुखासनं प्राप्य जगाद देवीम्।
किमत्र पुण्ये कुशलं भवत्या? भृत्यादिसेवाकरणे त्रुटिर्वा? ॥172॥
श्री बाजिरावो मम पितृतुल्यः स भारते वीरवरोऽस्ति नूनम्।
स्वराज्य-हेतोः स करोति यत्नं कुर्वन्तु सर्वे सहयोगमस्य ॥173॥
न स्मर्यते किं निजजन्मभूमिर्? नात्र स्वभाषा न च बान्धवास्ते।
जनाः प्रसन्ना न भवादृशीभिः प्रियोऽपि रावः परकीय एव॥174॥
भोगाय दास्यं न च ते प्रशस्तम् यद् यौवनं ते क्षणभंगुर तत्।
रावोपकाराय भवद्वियोगः कन्दर्पदर्पो न सुखाय चान्ते॥175॥
कुलाङ्गनाधिष्टितवैभवं तु न रक्षिताभिः परिभोगयोग्यम्।
स्वक्षेत्रवासोऽस्तु भवत्सुखाय लताः स्वभूमौ विकसन्ति नूनम्॥176॥
श्रुत्वा तदीयं वचनं विषाक्तम् मस्तानि-वाक्यं सहसागतं तत्
‘धनं महारावपदे स्थितं मे लता हि रम्या निजपादपेन’ ॥177॥
उवाच साग्रे-‘कुल-विग्रहोऽयम्! लता स्ववृक्षेण विकासमेति।
मत्तो गजो वृक्षलतावनानाम् उत्पाटयन्नार्हति दण्डमेव? ॥178॥
सौजन्य-संस्कार-समन्वयैश्च प्रेमावयोः पुष्टमलौकिकं तत्।
कार्यं महद् ये गुणिनां विदुर्न ते तु प्रबुद्धा अपि बुद्धिहीनाः’॥179॥
श्रुत्वा च देवीवचनं गभीरं प्रोवाच देवीं चतुरश्चिमाजिः।
‘राज्ये तु राज्ञः खलु राजनीतिः प्रजानुरागः प्रथमश्च कल्पः’॥180॥
हिन्दी-भावार्थ
बन्धु बाजीराव और मस्तानी के असाधारण प्रेम को देखकर चिमाजी के मन में यह भय छुपा हुआ था कि आगे मस्तानी का पुत्र कहीं पेशवा कुल की सम्पत्ति का वारिस के रूप में हकदार न बन जाए। (धर्मशास्त्र के अनुसार विवाहिता पत्नी का पुत्र पिता की सम्पत्ति का अधिकारी होता है।)॥171॥
मस्तानी देवी द्वारा बैठने के लिए संकेत दिये जाने पर श्री चिमाजी आप्पा (देवर) आरामदेह आसन पर बैठ गए और उन्होंने पूछा, इस पुण्यपुरी में आपका कुशल तो है ना? सेवक लोग आपकी सेवा में कोई उपेक्षा करने की गलती तो नहीं करते हैं? (यह पुण्यनगरी है।)॥172॥
बड़े भाई श्री बाजीराव मेरे पिता के समान (आदरणीय) हैं और निश्चित रूप से (आज) भारत में सबसे श्रेष्ठ वीर पुरुष वे हैं। वे भारत में स्वराज्य के लिए प्रयत्नशील हैं। इसीलिए उनकी सहायता करना हम सब लोगों का कर्त्तव्य है। (आप भी सहायक बन सकती हैं।)॥173॥
राजनीति का अवलम्बन कर चिमाजी कहते हैं, क्या आपको अपनी जन्मभूमि बुन्देलखण्ड की याद नहीं आती? इस पुणे में भाषा भिन्न है तथा आपके सम्बन्धी भी नहीं हैं। यहाँ के लोग भी आप जैसी (यवन स्त्रियों) को पसंद नहीं करते हैं। बाजीराव आपको प्यारे लगते हैं, फिर भी वे पराये ही हैं। (उनका प्रेम चिरकाल तक नहीं रहेगा।)॥174॥
भोग-विलास के लिए (राव की) दासी होकर रहना आपके लिए समीचीन नहीं है। आपका जो यौवन है वह क्षणभंगुर है। यदि आप वियोग अपनाओ तो वह राव के लिए उपकार होगा। कामदेव का गर्व जीवन के अन्त में सुखदायक नहीं होता है। (आप जैसी भोगदासियों का क्या महत्व है?)॥175॥
और अच्छे कुल की महिलाओं के योग्य सुख-सम्पत्ति का उपभोग भोग-दासियों के द्वारा होना समीचीन नहीं है। आपको तो अपना क्षेत्र बुन्देलखण्ड ही रहने के लिए योग्य है। लताएं अपनी भूमि में ही विकसित होती हैं। (अर्थात् आपका भला यहाँ नहीं होगा। अपने देश में ही होगा।) ॥176॥
चिमाजी आप्पा का विषैला भाषण सुनकर मस्तानी के मुख से सहसा वाक्य निकले- “मेरा धन श्री बाजीराव के चरणों में है। कोई भी लता अपने वृक्ष के साथ सुन्दर दिखती है। अर्थात् धन की लालच से मैं यहाँ नहीं हूँ। राव के साथ यहाँ मैं सुखी हूँ॥’’177॥
मस्तानी ने चिमाजी से आगे कहा- “यह तो गृह-कलह है। तुम कहते हो लता अपनी भूमि में ही विकसित होती है, किन्तु यह जान लो कि लता अपने वृक्ष के साथ पनपती है, अकेले नहीं। वास्तव में वृक्षों, लताओं और वन को उजाड़ने वाले किसी पागल हाथी को क्या दण्डित नहीं करना चाहिए? (मुझे यहाँ से निकालकर मुझे तबाह करने वाले आपको ही दण्ड मिलना चाहिए।)“॥178॥
“सौजन्य, संस्कार तथा समन्वय के गुणों के कारण हम दोनों का प्रेम समृद्ध और असाधारण हो गया है। जो लोग महान् व्यक्तियों के महत्वपूर्ण कार्य को नहीं जानते, वे प्रबुद्ध होने पर भी बुद्धिहीन ही होते हैं। दुःख की बात है कि आप राव के महत्वपूर्ण कार्य को नहीं जान पाये॥’’179॥
मस्तानी देवी के गंभीर वचन सुनकर चतुर चिमाजी ने उसे कहा- “राज्य में तो राजा के लिए राजनीति होती है। प्रजा का प्रेम सम्पादन करना राजा का प्रथम कर्त्तव्य होता है॥’‘180॥ - डॉ. प्रभाकर नारायण कवठेकर (दिव्ययुग - अगस्त - 2009)
The love of both of us has become rich and extraordinary due to the qualities of rites and ordination. Those who do not know the important work of great people, even when they are enlightened, are unintelligent.
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