ओ3म् मा भेर्मा संविक्था ऊर्जं धत्स्व धिषणे वीड्वीसती।
वीडयेथामूर्ज दधाथाम् । पाप्मा हतो न सोम: ॥ (यजुर्वेद 6.35)
शब्दार्थ- (मा भे:) हे मानव । डर मत (मा संविक्था) कम्पायमान मत हो, मत घबडा । (ऊर्जम् धत्स्व) बल, साहस, पराक्रम धारण कर । (धिषणे) वाणी और विद्या का आश्रय लेकर और इन दोनों के आश्रय से (वीड्वीसती) बलवान् होकर (वीडयेथाम्) पुरूषार्थ करो (ऊर्जम् दधाथाम्) पराक्रम करो, जौहर दिखाओ । (पाप्मा:) पाप करनेवाला शत्रु, पापी (हत:) मारा जाए, नष्ट हो जाए (न सोम:) सौम्यगुणयुक्त, सदाचारी पुरूषों का नाश न हो ।
भावार्थ- यदि संसार में पाप, अनाचार, भ्रष्टाचार, पाखण्ड, दम्भ, अधर्म बढ़ गया है, यदि दस्युओं, अनार्यों, अधर्मात्माओं और पाखण्डियों ने संसार के लोगों को आतंकित कर रक्खा है तो डरो मत, भयभीत मत होओ, घबराओ मत । उठो, खडे हो जाओ और पराक्रम करो ।
विद्याबल से अपने को विभूषित करो, वाणी का बल सम्पादन करो । विद्या और वाणी का आश्रय लेकर इन दोनों से बलवान् बनकर दानवता को दग्ध करने के लिए, मानवता का त्राण करने के लिए संसार में कूद पडो, जौहर कर दो । ऐसा पराक्रम करो कि जितने भी पापी, अत्याचारी, अनाचारी और पाखण्डी हैं उनमें से एक भी जीवित न रह पाए । पापियों को नष्ट-भ्रष्ट कर दो ।
जो सौम्य हैं, पुण्यात्मा हैं, सदाचारी और श्रेष्ठ पुरुष हैं उनकी रक्षा करो। - स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती (दिव्ययुग - अगस्त 2013)
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