हम वर्तमान ढांचे के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्रों में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने के पक्ष में हैं। हम वर्तमान समाज को पूरी तरह से एक नए सुसंगठित समाज में बदलना चाहते हैं और इस प्रकार मनुष्य के हाथों मनुष्य का शोषण असम्भव बनाकर सभी के लिए सभी क्षेत्रों में पूर्ण स्वतन्त्रता के हम पक्षधर हैं। हमारा विश्वास है कि साम्राज्यवाद एक बड़ी डाकेजनी की साजिश के अलावा कुछ नहीं है। साम्राज्यवाद मनुष्य के हाथों मनुष्य और राष्ट्र के द्वारा राष्ट्र के शोषण के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। ये विचार हैं अमर क्रान्तिकारी शहीद भगतसिंह के, जिन्होंने 23 मार्च, 1931 को दो क्रान्तिकारी साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ हंसते-हंसते अपने प्राण माँ भारती के चरणों में न्योछावर कर दिए थे। शहीद भगतसिंह के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। क्योंकि भारत देश स्वतन्त्र तो हो गया है, लेकिन समाज पूरी तरह शोषणमुक्त हो गया है, यह कहना उचित नहीं होगा। भगतसिंह ने शोषणमुक्त समाज की कल्पना की थी । लेकिन आज भी जब हम समाज में देखते हैं तो अमीरी और गरीबी की खाई दिखाई देती है, ऊंच-नीच, जाति-पाति, सम्प्रदाय आदि की दीवारें साफ दिखाई देती हैं। सरकारें और हमारे नेता लाख दावे करें, लेकिन हकीकत इससे बहुत ज्यादा अलग नहीं है।
शहादत को भी इस देश में कितना सम्मान दिया जाता है यह किसी से छुपा नहीं है। अभी जनवरी माह के अन्त में आतंकवादियों से लड़ते हुए सेना के कर्नल एम.एन. राय और एक पुलिसकर्मी संजीवसिंह शहीद हुए थे। उस समय दो आतंकवादी भी मारे गए थे, लेकिन उन आतंकियों को कश्मीर घाटी में शहीदों जैसा सम्मान दिया गया। उनके अन्तिम संस्कार में हजारों लोग एकत्रित हुए। एक अलगाववादी गिलानी ने सार्वजनिक तौर पर उन आतंकवादियों को शहीद करार दिया। यह खुले तौर पर आतंकवाद को समर्थन नहीं तो और क्या है, जबकि कश्मीर बाढ़ के दौरान सेना ने ही अन्य लोगों के साथ गिलानी को भी बचाया था। दूसरी ओर हमारे देश के किसी भी धर्मनिरपेक्षवादी के मुंह से गिलानी की निन्दा करने के लिए एक शब्द भी नहीं निकला। क्या यही देश प्रेम है? सम्भवत: राजनीतिक हित के लिए देशहित गौण होता है। दूसरी तरफ शहीद कर्नल राय के देशभक्त पिता को बहुत साधुवाद, जो कहते हैं कि वे एम.एन. राय की दोनों बेटियों और बेटे को सेना में ही भेजेंगे ताकि वे अपने पिता का काम पूरा कर सकें। धन्य हैं शहीद एम.एन. राय और धन्य हैं उनके पिता।
जब बात देशप्रेम की आती है तो प्रेम और सद्भाव के पर्व होली को कैसे भुलाया जा सकता है ! मार्च में शहीद भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु का बलिदान दिवस है तो रंगों का पर्व होली भी है। यूं तो वसन्त के आगमन के साथ ही प्रकृति भी रंग-बिरंगा शृंगार करती है, तो लोग भी एक दूसरे को होली के रंगों में सराबोर कर देते हैं। मगर मानव जीवन में इन भौतिक रंगों से ज्यादा जरूरी है प्रेम का रंग, आपसी भाईचारे का रंग, सद्भाव का रंग और इन सबसे भी महत्वपूर्ण रंग है देशप्रेम का रंग। 21 मार्च से विक्रम संवत् 2072 का प्रारम्भ हो रहा है, जो सम्राट विक्रमादित्य के न्याय और शौर्य की याद दिलाता है। 28 मार्च को मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जयन्ती भी भारतवंशी पूरे संसार में मनाएंगे। बलिदानियों और महापुरुषों के जीवनादर्शो को अपने जीवन में अपनाएंगे तो ही भारत पुन: जगद्गुरु के पद पर प्रतिष्ठित हो सकता है तथा अपने प्राचीन गौरवशाली स्वरूप को प्राप्त कर सकता है। आइए, संकल्प लें कि हम अपने तन और मन को देशभक्ति के रंग से सराबोर करेंगे और अमर बलिदानियों को सच्ची श्रद्धांजलि देंगे। - वृजेन्द्रसिंह झाला (दिव्ययुग- मार्च 2015)
Salute to the Immortal Sacrifices | Social, Economic and Political | Well Organized Society | Exploitation of the Nation | India Country Independent | Support Terrorism | Patriotism | Justice and Gallantry | Proud Appearance | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Melamaiyur - Tirur - Chohal | दिव्ययुग | दिव्य युग |