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रक्षाबन्धन का इतिहास एवं महत्व

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Rakshabandhan ka Itihas avam Mahatrav

रक्षाबन्धन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। महाराष्ट्र राज्य में नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से यह त्यौहार विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं।

रक्षाबन्धन के सम्बन्ध में एक अन्य पौराणिक कथा भी प्रसिद्ध है। देवों और दानवों के युद्ध में जब देवता हारने लगे, तब वे देवराज इन्द्र के पास गए। देवताओं को भयभीत देखकर इन्द्राणी ने उनके हाथों में रक्षासूत्र बाँध दिया। इससे देवताओं का आत्मविश्‍वास बढ़ा और उन्होंने दानवों पर विजय प्राप्त की। तभी से राखी बाँधने की प्रथा शुरू हुई।

पुराण कथाओं के अनुसार महाभारत में युधिष्ठिर की पत्नी द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की कलाई से बहते खून को रोकने के लिए अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर बान्धा जिससे उनका खून बहना बन्द हो गया। तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। वर्षों बाद जब युधिष्ठिर द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।

एक अन्य उदहारण के अनुसार चित्तौड़ की राजमाता कर्मवती ने मुग़ल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर अपना भाई बनाया था और वह भी संकट के समय बहन कर्मवती की रक्षा के लिए चित्तौड़ आ पहुँचा था।

प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के उपदेश की पूर्णाहुति इसी दिन होती थी। वे राजाओं के हाथों में रक्षासूत्र बाँधते थे। इसलिए आज भी इस दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को राखी बाँधते हैं।

रक्षाबन्धन का त्यौहार भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई को प्यार से राखी बाँधती है और उसके लिए अनेक शुभकामनाएँ करती है। भाई अपनी बहन को यथाशक्ति उपहार देता है। बीते हुए बचपन की झूमती हुई याद भाई-बहन की आँखों के सामने नाचने लगती है। सचमुच, रक्षाबन्धन का त्योहार हर भाई को बहन के प्रति अपने कर्तव्य की याद दिलाता है।

आजकल तो बहन भाई को राखी बाँध देती है और भाई बहन को कुछ उपहार देकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेता है। लोग इस बात को भूल गए हैं कि राखी के धागों का सम्बन्ध मन की पवित्र भावनाओं से हैं।

यह जीवन की प्रगति और मैत्री की ओर ले जाने वाला एकता का एक बड़ा पवित्र पर्व है।

आप सभी को दिव्ययुग परिवार की ओर से रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ !• - प्रस्तुति : कु.भावना पहल (दिव्ययुग- अगस्त 2015)

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