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अब ‘पानीपत’ में नहीं ‘पेशावर’ में होगी जंग

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Now there will be War in Peshawar not in Panipat

विगत दिनों जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आत्मघाती हमले में 40 से ज्यादा सुरक्षाकर्मियों की शहादत से पूरा देश सदमे में आ गया था। अब भी उससे नहीं उबरा है। चारों ओर से एक ही आवाज गूंज रही थी बदला.. बदला...और सिर्फ बदला।

देशवासियों का यह गुस्सा इसलिए भी जायज था कि इस हमले की जिम्मेदारी कुख्यात आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी और उसका सरगना मसूद अजहर आज भी पाकिस्तान की छत्रछाया में सांस ले रहा है। पाकिस्तान के समर्थन से हुई इस घटना के तेरहवें दिन ही आधी रात के बाद भारत के लड़ाकू मिराज विमानों ने उड़ान भरी और सीमापार 80 किलोमीटर भीतर तक घुसकर जैश के ठिकानों को तबाह कर दिया। यह पहला अवसर था जब भारतीय वायुसेना ने सीमा पार कर कार्रवाई को अंजाम दिया, अन्यथा इससे पहले हमने जवाबी हमला ही किया है। कभी आगे बढकर आक्रमण नहीं किया।

इतिहास साक्षी है कि भारत ने कभी भी आगे बढ़कर आक्रमण नहीं किया है। यही कारण है कि जितने भी बड़े युद्ध लड़े गए वे सभी भारतीय सीमा के भीतर लड़े गए। मोहम्मद गौरी का हमने तराइन तक आने का इंतजार किया। 1191 में पृथ्वीराज चौहान ने उसे बुरी तरह हराया, लेकिन उसे जीवनदान देकर जाने दिया। इसका नकारात्मक पहलू यह रहा कि 1192 में गौरी ने पृथ्वीराज को हराकर खत्म कर दिया तथा भारत में विदेशी ताकतों के पांव मजबूत हुए और शुरू हुई हिन्दुओं की गुलामी की शुरूआत। पानीपत के युद्ध भी हमने भारत की सीमा में ही लड़े और नुकसान उठाया। सिकंदर की सेना के पांव इसलिए उखड़े क्योंकि राजा पोरस ने सीमा पर ही उसका कड़ा प्रतिकार किया। आगे उसका सामना करने के लिए आचार्य चाणक्य जैसे कूटनीतिज्ञ और चन्द्रगुप्त जैसे योद्धा मौजूद थे। उसके सैनिकों का मनोबल टूट गया और उसने वापस जाने में ही भलाई समझी। कहने का तात्पर्य यही है कि अब हमें उस मानसिकता को भी बदलना होगा कि हम आगे बढ़कर शत्रु पर प्रहार नहीं करेंगे। यदि देशहित में पहले वार करना जरूरी है तो हमें वह भी करना चाहिए। भारत के आक्रामक रुख का ही परिणाम था कि पाकिस्तान ने बंदी बनाए हमारे विंग कमांडर अभिनन्दन को तत्काल रिहा करने का फैसला लिया। इस पूरे घटनाक्रम में एक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू भी सामने आया, जिसमें देश के एक बड़े वर्ग ने वायुसेना की कार्रवाई पर सवाल उठाया। इस वर्ग में देश के राजनीतिक दल भी शामिल थे।

उन्होंने यह पूछने में कोई शर्म महसूस नहीं की कि क्या सबूत हैं कि 200 या 300 आतंकवादी मारे गए। संभवत: सवाल पूछते समय इन लोगों की मंशा रही होगी कि वायुसेना के पायलट हमले के बाद शत्रु देश की सीमा में रुककर आतंकवादियों को गिनते या हमले का वीडियो बनाते और खुद को साबित करने लिए इन्हें साक्ष्य बताते कि किस तरह उन्होंने इस मुश्किल कार्रवाई को अंजाम दिया।

इस पूरे घटनाक्रम का एक और शर्मनाक पहलू सामने आया, जब कुछ लोगों ने विंग कमांडर अभिनन्दन की रिहाई का श्रेय पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान की सदाशयता को दिया। वास्तव में इसके पीछे न सिर्फ भारत का आक्रामक रुख था बल्कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का पाक पर दबाव भी था। इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि अभिनन्दन की रिहाई से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि शाम तक अच्छी खबर आएगी। वह खबर अभिनन्दन की रिहाई ही थी। इस पूरे मामले से एक सबक तो यह जरूर सीखा जा सकता है कि देश की सुरक्षा से जुड़े मामलों में हमें राजनीतिक दल, विचारधारा और धर्म से ऊपर उठकर एक साथ खड़ा होना चाहिए। साथ ही सत्ता पक्ष को भी इस तरह के मामलों में अनावश्यक श्रेय लेने से बचना चाहिए। क्योंकि देश सुरक्षित है तो ही राजनीतिक दल और विचारधाराएं भी सुरक्षित हैं। - सम्पादकीय (दिव्ययुग- अप्रैल 2019)

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