आजकल संसार में इतनी अशान्ति है कि न तो कोई शान्ति से बैठ सकता है और नाही दूसरों को शान्ति से बैठने ही देता है । उसका यही कारण है कि पाश्चात्य राष्ट्र आध्यात्मिकता शून्य कोरे भौतिकवाद में लिप्त हैं और यह सब विनाश मैं अर्थात अहंभाव के कारण है । इसके परिणामस्वरूप संसार में आसुरी सम्पदा जाग उठी है । यह ललकार रही है, सबको कि आओ तो सही मेरे सामने कोई । सब कोई इस आसुरी सम्पदा से घबरा उठे हैं।
आजकल संसार में जो मत्स्य न्याय चल पड़ा है, वह भी आसुरी वृत्ति का खेल है । जैसे एक बड़ी मछली अपने से छोटी मछली को निगल डालती है और दूसरी एक बड़ी मछली उन दोनों को निगल जाती है, इसी प्रकार रजोगुणी आसुरी वृत्ति में बन्धे हुए राष्ट्र अपनी स्वार्थी गुटबन्दी से किसी को स्वतन्त्र नहीं रहने देना चाहते । रहो तो हमारे साथ रहो । नहीं तो हमारे साथ न रहने से पिस जाओगे । यही उनका सन्देश है छोटे-छोटे राज्यों को । इस प्रकार संसार का समस्त राष्ट्र समुदाय गुटबन्दी में फंसता जा रहा है ।
फिर भी संसार अब समझने लग गया है कि केवल विज्ञान के नये -नये आविष्कारों के बल पर सर्वशक्तिमान नहीं बना जा सकेगा । संसार में सबसे बड़ी शक्ति है, वह अदृश्य शक्ति जो क्षणार्द्ध में समस्त अस्त्र-शस्त्रों के आविष्कारों को छिन्न भिन्न कर सकती है । विज्ञान द्वारा आविष्कृत महामारक अस्त्र स्वयं विज्ञानियों का ही विनाश कर देंगे । इसलिये सच्ची शान्ति का उपाय है - आत्मवत् सर्वभूतेषु पश्यति स पश्यति ।
यदि भारत सम्भल जाये और अपनी विद्या, संस्कृति, सभ्यता से काम लेने लगे तो उसमें संसार को शान्ति धाम बनाने की शक्ति है । सारा संसार मुंह ऊपर उठाये हुये भारत की ओर देख रहा है कि भारत पाश्चात्य भौतिकवाद का अपनी आध्यात्मिकता के साथ कैसे मेल बैठाता है । यदि भारत भौतिकता में आध्यात्मिकता का प्रवेश करा सका, तो संसार पुन: भारत को गुरु मानकर उसके पीछे चलने को तैयार हो जायेगा । और यदि भारत स्वयं ही अपनी आध्यात्मिकता को छोड़कर अथवा भूलकर केवल पाश्चात्य भौतिकवाद के कीचड़ में फंस जाएगा, तो संसार के लिये यह बड़ी दुर्घटना बन जाएगी, जैसी कि आज बन गई है । क्योंकि संसार के सभी राष्ट्रों में सच्ची शान्ति का उपासक भारत के अतिरिक्त और कोई नहीं है तथा नाही कोई और हो सकता है । इसीलिए हम वेद के शान्ति सूक्त के शब्दों में कहना चाहते हैं कि सा मा शान्ति रेधि। हे प्रभो ! संसार के कल्याण के लिए वह शान्ति मुझको मिले, बढे, मेरी रक्षा करे और संसार को भी अशान्ति से बचाये रखे ।
महायुद्धों से बचने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ बना हुआ है । पर वह भी अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो रहा । अभी यहाँ वर्ण भेद नहीं मिटा । अभी यहाँ काला-गोरा भाव नहीं मिटा । इस प्रकार प्रबल राष्ट्रों की सदैव के लिए प्रबल बने रहने की लालसा और अपने राष्ट्र के स्वार्थों के कारण अशान्ति मची हुई है ।
सब राष्ट्र की शान्ति की बातें करते हैं और सभी अशान्ति के बीज बोते जाते हैं। संहारक अथवा मारक अस्त्र-शस्त्रों के घटाने की घोषणा करते हैं और साथ-साथ इनका निर्माण भी करते जाते हैं। तब शान्ति कैसे हो? तो समाधान क्या? जब तक संसार में वैदिक धर्म प्रतिपादित सच्ची शान्ति का प्रचार न किया जायेगा, तब तक संसार सुख-शान्ति से बिल्कुल नहीं बैठ सकेगा?
महाभारत के शान्ति पर्व में जिस धर्म का वर्णन आया है, वह है- आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्। जिस बात को हम स्वयं प्रतिकूल समझते हैं, उस प्रकार का प्रतिकूल व्यवहार हम दूसरों के साथ भी न करें।
यदि मनुष्य परस्पर व्यवहार में इस बात का ध्यान रखें और जाति, समूह, वर्ग, राष्ट्र भी सामुदायिक रूप से इस बात का ध्यान रखें, तो फिर संसार में अशान्ति नहीं रह सकती। पर यह होने के लिए आत्मतुल्यता का भाव रखना होगा, तभी यह सम्भव है। और एक महत्वपूर्ण बात कही गई है वह यह कि- यदन्यैषां हितं न स्यात् आत्मनः कर्म पौरुषम्।
अर्थात अपना कोई कर्म अथवा पुरुषार्थ दूसरों के हित में ठिक नहीं बैठता, तो उस कर्म और पुरुषार्थ को प्रयत्नपूर्वक छोड़ दें। सारांश यह कि केवल व्यक्ति का ही धर्म नहीं हे, अपितु समाज धर्म भी है, राष्ट्र धर्म भी है। वर्तमान में संसार के सभी राष्ट्रों में संकुचित राष्ट्रीयता समा गई है। इसीलिए संकुचित दृष्टि से काम हो रहा है। यह जो संकुचित राष्ट्रवाद है, वह भी अशान्ति का मुख्य कारण है।
कोरा भौतिकवाद (अध्यात्मशून्य) राष्ट्रवाद न जाने उन राष्ट्रों को किस गढे में ले जा रहा है? वैदिक अध्यात्मवाद के बिना यह अज्ञान कभी दूर न हो सकेगा और नाही संसार में शान्ति प्रसारित होगी। इसलिए पुनः वेद के शब्दों में हम कामना करते हैं कि वही शान्ति हमें मिले, हममें रहे, हममें बढे और हममें पले। वेद मंथन, लेखक - प्रा. भद्रसेन वेदाचार्य एवं संपादक - आचार्य डॉ. संजय देव (Ved Manthan, Writer- Professor Bhadrasen Vedacharya & Editor - Acharya Dr. Sanjay Dev) Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev | वेद कथा - 2 | Explanation of Vedas & Dharma | Ved Pravachan | मरने के बाद धर्म ही साथ जाता है - 2