विश्व पुरुष राम के प्रति श्रद्धा-भक्ति अत्यन्त प्राचीन काल से रही है। कोई समय था जब सुदूर पश्चिम तक उनका प्रभाव व्याप्त था। मिश्र के रामसीम या रामशेण नामक प्रतापी सम्राट, बाइबिल में ईसा के एक पूर्वज का ‘राम’ नाम, पश्चिमी एशिया के रामअल्लाह तथा राम था (रामस्थल) जैसे नगर, राम (रोम) जैसा विश्वविश्रुत शाश्वत नगर इत्यादि अनेक प्रमाण आज भी विवेच्य हैं। इटली तो आर्य और भारतीय प्रभाव से आपूर्ण देश कहा जा सकता है जहाँ ‘राम’ (रामा) नगर है, ‘सीता’ (सेत) पहाड़ी है, ‘रावण’ (रावना) नगर है और जहाँ का इतिहास ‘अगस्त्य’ (आगसृस) जैसे प्रतापी सम्राट के स्वर्ण युग पर गर्व करता है। इटली का राष्ट्रीय महाकाव्य और लैटिन साहित्य का गौरव ग्रन्थ ‘ऐविड’ (ऐनियड) भारत के उल्लेखों से सम्पन्न है और दोनों राष्ट्रों के प्राचीनतम सम्बन्ध का प्रमाण है। इधर दक्षिण-पूर्व एशिया में लंका, थाईलैण्ड, इण्डोनेशिया इत्यादि में रामकथा, रामप्रतिमा, रामलीला इत्यादि का प्रचलन आज भी विद्यमान है। चीनी और थाई इत्यादि भाषाओं में रामायण प्राप्त हैं।
जहाँ तक भारत का सम्बन्ध है, राम का प्रभाव अन्यतम है। उन्होंने जनकपुर (नेपाल) मिथिलांचल (बिहार) से लेकर श्रीलंका तक और हिमालय के अंचल से सागर पाट तक एक विराट राष्ट्र की नींव रखी। इसलिए आदिकवि वाल्मीकि ने समुद्र इव गाम्भीर्ये, धैर्येण हिमवान् इव कहकर मानो आसेतु हिमालय समग्र भारत को राम की विराट मूर्ति ही सिद्ध कर दिया है। उन्होंने ऋषि अगस्त्य एवं पुलस्त्य के कार्यों को पूर्णता प्रदान की। वनवासी जातियों को शेष समाज से एकाकार किया। केवटादि से नैकट्य स्थापित किया। राम की समता करने वाला मानवतावादी नेता एवं राष्ट्रनिर्माता विश्व के इतिहास में कोई नहीं हुआ। अयोध्या, सीतामढ़ी, प्रयाग, चित्रकूट, पंचवटी, ऋष्यमूक, रामेश्वरम् आदि तीर्थ राम से सम्बद्ध हैं। रामनवमी, विजयादशमी, दीपावली और होली के पर्व राममय हैं। संस्कृत में वाल्मीकि, व्यास, कालिदास और भवभूतिएवं हिन्दी में तुलसीदास, केशवदास, हरिऔध और मैथिलीशरणव तमिल में कम्बन, बंगला में कृत्तिवाम तथा रामावतार (काव्य) के रचनाकार गुरु गोविन्दसिंह इत्यादि महाकवियों के उच्चस्तरीय काव्य अथवा नाटक राम को सरलतापूर्वक विश्व साहित्य का सर्वश्रेष्ठ नायक सिद्ध कर देते हैं।
कोई भी ऐसी भारतीय भाषा नहीं, जिसमें राम पर रामायण या स्फुट काव्य की सृष्टि न हुई हो। बौद्धों में ‘दशरथ जातक’ और जैनियों में ’स्वयंभू रामायण’ का प्रभाव है, भले ही वह उनकी सुविधाओं के अनुकूल होने के कारण सार्वभौम न कहा जा सके। निर्गुणमार्गी कहे जाने वाले कबीर, नानक इत्यादि सन्तों का साहित्य भी राम नाम से आपूर्ण है। रहीम इत्यादि अनेकानेक मुसलमान कवियों ने राम पर स्फुट काव्य सृजन किया है। अतएव क्या हिन्दू और क्या मुसलमान, क्या जैन और क्या बौद्ध, क्या कबीर और क्या रहीम और क्या नानक, क्या देववाणी संस्कृत और क्या राष्ट्रवाणी हिन्दी और क्या क्षेत्र वाणियाँ, यत्र-तत्र-सर्वत्र राम का पावन प्रभाव स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है। राम भारत की आत्मा हैं पर्वों में, तीर्थों में, साहित्य में सर्वत्र।
वाल्मीकि रामायण का उत्तरकाण्ड परवर्ती और प्रक्षिप्त है इसे प्रायः सभी विद्वान् स्वीकार करते हैं। क्योंकि युद्धकाण्ड के अन्त में राम का अयोध्या आगमन, रामराज्य और काव्य समापन स्पष्टतः वर्णित है। उत्तरकाण्ड महाकाव्य का अंग न होकर स्फुट और असम्बद्ध कथाओं का संग्रह मात्र है। अतएव इसके आधार पर शम्बूक प्रकरण और सीता त्याग की कथाओं को प्रामाणिक मानना तथा राम की आलोचना करना न बुद्धिसंगत है, न न्यायसंगत। ये कथाएं उन परवर्ती युगों में गढ़ी गईं जब वर्णाश्रम व्यवस्था को अस्पृश्यता से विकृत कर दिया गया था और नारी की अवमानना की जाने लगी थी। गुह, निषाद, शबरी, वानर जाति इत्यादि के मित्र राम शूद्र विरोधी कैसे हो सकते थे? यदि राम शूद्र विरोधी होते तो स्वयं वेदों के ज्ञाता ऋषि वाल्मीकि ही उन पर महाकाव्य कैसे लिखते? रैदास और नाभादास उनके भक्त होते? जगजीवन राम रामकथा के प्रेमी होते? तुलसीदास जैसे विश्व कवि ने वाल्मीकि रामायण के उत्तर काण्ड को प्रक्षिप्त मानते हुए उसकी सम्पूर्ण उपेक्षा की है।
राम का पिता और विमाता को प्रसन्न रखने के लिए त्याग, तेरह वर्षों तक सीता के साथ रहकर भी तपश्चरण और ब्रह्मचर्य पालन, पितृ-प्रेम, भातृ-प्रेम, पत्नी-प्रेम और एक पत्नीव्रत, सेवक-प्रेम, प्रजा-प्रेम, वीरत्व, नम्रभाव इत्यादि गुण किसी भी युग में आदर्श ही माने जाएंगे। वे आदर्शों के लिए लड़े, व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं। विजित नगरों तक में वे नहीं घुसे। पराजितों के बन्धुओं को ही राज्य सौंपे। उन्होंने देशभक्ति का यह अतुलनीय आदर्श प्रस्तुत किया-
इयं स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते,
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥
गुरु गोविन्द सिंह ने स्वयं एवं गुरु नानक को रामवंशी माना है। नेपाल का राजवंश अपने को रामवंशी मानता है। मेवाड़ का प्रतापी सिसोदिया राजवंश अपने को रामवंशी मानता रहा है। और तो और पाकिस्तान (जो सांस्कृतिक दृष्टि से भारत का ही एक अंग है) के निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना की दैनन्दिनी में लिखित वे मार्मिक तथ्य भी अब स्वयं पाकिस्तानियों ने प्रकाशित कर दिए हैं, जिनके अनुसार उन्हें इस बात का गर्व था कि उनके पूर्वज कुशपुर (कसूर) के निवासी क्षत्रिय (खत्री) थे और वे राम के वंशज हैं।
यदि कोई विराट भारतीय संस्कृति की समग्रता का किसी एक व्यक्ति में ‘दर्शन’ करना चाहे तो राम में सुगमतापूर्वक कर सकता है। यदि कोई मानवता की समग्रता का किसी एक व्यक्ति में ‘दर्शन’ करना चाहे तो राम में सुगमतापूर्वक कर सकता है। - डॉ. रामप्रसाद मिश्र
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