रामायण और महाभारत ये दोनों ऐसे विश्वकोश हैं, जिनमें पुरातन आर्य जीवन और मनीषा को चित्रित करने वाली उस आदर्श सभ्यता का वर्णन है, जिसकी मनुष्य जाति केवल आकांक्षा ही कर सकती है। राम और सीता भारतीय राष्ट्र के आदर्श हैं। सीता में भारत का आदर्श बोलता है। प्रश्न यह नहीं है कि सीता कभी जीवित रही या नहीं, उसकी कथा इतिहास-सम्मत है या नहीं, हम यह जानते हैं कि भारतीय नारी का आदर्श वही है। ऐसी कोई पुराण-कथा नहीं है जिसने समग्र जाति को इस प्रकार प्रभावित किया हो, जो इस प्रकार उसके जीवन में घर कर गई हो, जो जाति के रुधिर (खून) के कण-कण में घुल-मिल गई हो, जैसा कि सीता का आदर्श है। भारत में जो भी कुछ पवित्र है, शुभ है, उदात्त है, उस सबका प्रतीक है सीता ! नारी के नारीत्व का आदर्श है सीता!
मैं जानता हूँ कि जो जाति सीता को जन्म दे सकती है, यदि वह उसका स्वप्न भी ले सके, तो उस जाति के मन में नारी के प्रति इतना आदर होगा जिसकी तुलना संसार में कहीं नहीं हो सकती। और सीता के बारे में क्या कहा जाए? सारे संसार का जितना प्राचीन साहित्य है उसे उथल डालो और मैं कहूंगा कि सारे संसार में लिखे जाने वाले साहित्य को भी टटोल लेना, तुम्हें सीता जैसा चरित्र नहीं मिलेगा। वह अनुपम है, अद्वितीय है। यह चरित्र एक बार ही सदा के लिए चित्रित कर दिया गया। वह असली भारतीय नारी का सही प्रतीक है। सीता के एक जीवन से जितने आदर्शों की सृष्टि हुई है, वही परिपूर्ण नारीत्व का भारतीय आदर्श है। इसीलिए सारे आर्यावर्त में एक छोटे से दूसरे छोर तक आवाल वृद्ध नर-नारी उसकी हजारों वर्षों से पूजा करते आए हैं।
साक्षात् पवित्रता से भी अधिक पवित्र, धैर्य की निधि और सब प्रकार के कष्टों से प्रताड़ित इस गरिमामयी सीता को भारत के जन-जन के मन के सिंहासन से कोई अपदस्थ नहीं कर सकता। जिसने मुख से एक शब्द निकाले बिना इतने कष्ट सहे, सतीत्व की प्रतिमा और पतिव्रता नारी, शुभ आचरण की आदर्श, यह महिमामयी सीता सदा हमारे राष्ट्र के लिए पूजित रहेगी। हमारा सारा इतिहास और सारे पुराण नष्ट हो सकते हैं, हमारे वेद तक भी हमसे छिन सकते हैं और संस्कृत भाषा भी सदा के लिए लुप्त हो सकती है, परन्तु जब तक पांच हिन्दु भी जीवित रहेंगे, भले ही वे वार्तालाप में कितने ही अशिष्ट क्यों न हो जाएं, भगवती सीता की कथा विद्यमान रहेगी। मेरे शब्दों पर ध्यान दीजिए! सीता हमारी जाति की नस-नस में रम गई है। वह प्रत्येक हिन्दु नर और नारी के रक्त में विद्यमान है। हम सब माता सीता की ही सन्तान हैं। - स्वामी विवेकानन्द
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