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बालक शिवा को छत्रपति शिवाजी बनाने वाली महारानी जीजाबाई

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jijabai maharani

वो कोई और होंगे जो कि, मर जाने से डरते हैं। वतन पर मिटने वाले मौत, को दुल्हन समझते हैं।

शेर की चाहत रखने वालों पहले शेरनिओं से निपटना होगा। यदि हमें अच्छी पैदावार चाहिए तो जमीन को उपजाऊ बनान होगा। जब हम देश को आजाद करने वालों की सूचि एकत्रित करते है तो उनमे छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम सबसे पहले आता है। अगर हम शिवाजी को याद करते है तो उनसे पहले उनकी माँ को याद करना होगा। क्योंकि शेरनी की गोद में ही शेर जन्म लेते हैं। जीजाबाई के पिता अहमदनगर के निजामशाह के दरबार में प्रभावशाली सरदार थे। निजामशाही सुल्तान द्वारा धोखे से जीजाबाई के पिता और भाई की हत्या करवा दी गई। इस बात से जीजाबाई को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने ईश्वर से एक वीर पुत्र की कामना की जो महाराष्ट्र में एक स्वतंत्र मराठा राज्य की स्थापना करें। १० अप्रैल सन् १६२७ को जीजाबाई ने एक ऐसे शेर को जन्म दिया जिन्होंने अपने जीवन काल में कभी हार नहीं मानी। एक शेर के समान अपना पूरे जीवन में राज किया और यही वीर आगे चलकर के शिवाजी के नाम से प्रख्यात हुआ।

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माता जीजाबाई ने शिवाजी को पूर्वजों के शौर्य और देश के प्राचीन वैभव की कहानियाँ सुनाती। रामायण और महाभारत की कहानियाँ शिवाजी बड़े चाव से सुनते। इस प्रकार उनकी नींव बचपन से देश प्रेम की भावना से ओत-प्रोत रही जो आगे चलकर मुगलों के विनाश का कारण बानी। जब शिवाजी बारह वर्ष के थे तो उनके पिता शाह जी उन्हें और उनकी माता जी को बीजापुर ले गये। वहाँ वे सुल्तान के मुख्यमंत्री थे। शिवाजी के ऊपर माता जीजाबाई का इतना प्रभाव पड़ चूका था कि उन्हें अपने पिताजी का सुल्तान को झुककर नमस्ते करना अच्छा नहीं लगता था। शिवाजी जीजाबाई को दरबार में होने वाली बातें बताता तथा अपने पिताजी के विचारों की आलोचना करता। जीजाबाई उनके स्वतंत्र विचारों की सराहना कराती और उन्हें अलग राज्य स्थापित करने को प्रेरित करती। शाह जी ने उनको जीजाबाई के साथ पूना भेज दिया। वहीँ उनकी माता जीजाबाई ने उन्हें जागीर के प्रबन्ध के विषय में बताया। माता जीजाबाई की प्रेरणा से शिवाजी छोटे-छोटे कीलें जीतकर स्वतंत्र महाराष्ट्र की स्थापना करने का प्रयास प्रारम्भ किया। एक बार जीजाबाई ने शिवाजी से सिंहगढ़ का दुर्ग माँगा। सिंहगढ़ का दुर्ग मुगलों के हाथों में था और वह अजय समझा जाता था। उदयभानु नामक राजपूत सरदार मुगलों की ओर से उसको संभालता था। उदयभानु के पास एक विशाल मुगल सेना थी। यह शिवाजी को भली-भाँति ज्ञात था। शिवाजी ने अपने मित्र तानाजी मालसुरे को युद्ध में मदद के लिए बुलावा भेजा। तानाजी अपने छोटे भाई सूर्याजी को लेकर एक हजार सैनिकों के साथ सिंहगढ़ को घेर लिया। भंयकर युद्ध हुआ जिसमें उदयभानु और तानाजी दोनों मारे गये। शिवाजी ने वह किला जीत लिया। एक तरफ जीत की खुशी थी तो दूसरी तरफ मित्र के शहीद होने का दर्द।

६ जून, १६७४ को शिवाजी का छत्रपति शिवाजी के रूप में राज्याभिषेक हुआ। छत्रपति शिवाजी की जय और माता जीजाबाई की जय उद्घोष मानो सारा महाराष्ट्र गूँज उठा हो।

इस शेर को जन्म देने वाली शेरनी अर्थात् शिवाजी की माता जीजाबाई की मृत्यु १८ जून ७४ में हुई। उस समय उनकी आयु अस्सी वर्ष की थी। यदि जीजाबाई नहीं होती तो क्या शिवाजी होते।

इसलिए शायद आज शिवाजी पैदा इसलिए नहीं हो रहे क्योंकि उन्हें जीजाबाई नहीं मिल रही।

क्या अभी कोई ऐसी माँ है जो अपने बेटों से पुत्रवधु की जगह कश्मीर का गुलाम हिस्सा माँग सके। - रविन्द्र गुप्ता


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