२७ सितम्बर १९०७ में जन्म हुआ भारत के आजादी की क्रांति के अग्रदूत का। जिन्होंने अपने एक कार्य से सम्पूर्ण ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी। वह महान व्यक्तित्व था शहीदे आजम भगत सिंह।
अक्टूबर, १९२८ में भारत में साइमन कमीशन आया। समूचे देश में उसका घोर विरोध एवं बहिष्कार किया गया। स्थान-स्थान पर सभाएं और जुलूस निकाले गए। जुलूसों पर लाठियों से प्रहार किए गए। भीड़ पर गोलियां दागी गई। गिरफ्तारियां की गई। १८ अक्टूबर को लाहौर में भी जुलूस निकाला गया। उस जुलूस का नेतृत्व कर रहें थे वीर केसरी लाला लाजपतराय। सान्डर्स (असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट पुलिस) ने जुलूस पर बेरहमी से लाठीचार्ज करवाया। सैकड़ों के सिर फटे, चश्मे टूटे और हाथ-पैर जख्मी हुए। अन्त में लाला लाजपतराय पर भी लाठियां बरसाई गई। उन्ही लाठियों के प्रहार से उनका कुछ सप्ताह बाद देहान्त हो गया। इस पर माता बसन्ती देवी ने कलकत्ते के मैदान में खड़े होकर देश के नौजवानों को ललकारा-
''लाला जी की चिता की राख ठंड़ी होने से पहले देश इस महान राष्ट्रीय अपमान का जवाब चाहता है।''
इस अपमान का जवाब १७ दिसम्बर १९२८ को उस समय दिया गया, जब साण्डर्स मोटर साईकिल पर सवार बाहर निकला। भगतसिंह और उसके साथी साण्डर्स का काम तमाम कारक भाग खड़े हुए। पुलिस ने उनका जोरों से पीछा किया। चारों ओर से पुलिस दौड़ पड़ी। भगत सिंह वहाँ से भागकर डी.ए.वी, कॉलेज में घुसे। वहाँ उन्हें एक दुकान के सामने एक साइकिल मिल गई। वे उसी साईकिल पर बैठे और भाग कर अदृश्य हो गये। पुलिस ने चारों ओर से डी.ए.वी. कॉलेज छात्रावास को घेर लिया। पर भगत सिंह कही न मिले।
Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
Ved Katha Pravachan - 71 | Explanation of Vedas | सविता का सच्चा स्वरूप।
८ अप्रेल, १९२९ को केन्द्रीय असेम्बली का हाल एक जोर के धमाके से गूँज उठा। धमाके के साथ ही साथ ऊपर की दर्शक गैलरी से कई पर्चे भी हाल में नीचें गिरते हुए देखे गए। पर्चों में लिखा था- 'यह धमाका बहरों को सुनाने के लिए किया गया है।'' हाल में चारों और धुँआ ही धुआँ भर गया। लोग इधर से उधर भागने लगे। पर ऊपर महिलों की गैलरी के पास दो युवक यूरोपियन वेश भूषा में स्थिर भाव से खड़े थे। उन युवकों में एक तो भगतसिंह थे, और दूसरे थे बटुकेशर दत्त। दोनों के पास भरी हुई पिस्तौलें थी। यदि वे चाहते तो सरलता के साथ भाग सकते थे,क्योंकि हाल में बम विस्फोट के पश्चात् कुछ क्षणों के लिए पुलिस की प्रबंध व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो चुकी थी।
पर भगतसिंह और दत्त दोनों वीर युवक दर्शक दीर्घा में अविचलित भाव में खड़े थे। आखिर, सशस्त्र सार्जेट उनके पास पहुँचे। भगत सिंह और दत्त ने सर्जेंटों को इशारा किया कि वे उन्हें गिरफ्तार कर सकते हैं। दोनों ने अपने आपको पुलिस के हवाले कर दिया। उनकी गिरफ्तारी के समय सारा असेम्बली हाल गूँज उठा-'इन्कलाब जिन्दाबाद', 'इन्कलाब जिन्दाबाद' ।
भगत सिंह और दत्त को गिरफ्तार करके जेल की कोठरियों में अलग अलग बन्द कर दिया गया। उन पर दो मुकदमें चलाए गए-एक दिल्ली केन्द्रीय असेम्बली भवन में बम फेंकने के सम्बन्ध में, और दूसरा लाहौर में साण्डर्स की हत्या के सम्बन्ध में। पहला मुकदमा दिल्ली के सोशन जज, मिडलटन की अदालत में चलाया गया। मुकदमा १८२९ की ४ जून को अदालत में प्रस्तुत किया गया। दूसरा मुकदमा 'लाहौर षड्यंत्र केस' के नाम से चला।
लाहौर षड़यन्त्र में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई। १९३१ ई० २३ मार्च को तीनों वीर युवक फांसी पर चढ़ा दिए गए। उन तीनों शहीदों के शव रातो-रात सतलज दरिया के किनारे ले जाकर मिट्टी का तेल डालकर जला दिये गए। यह खबर सुनकर सारे देश में शोक की लहर दौड़ गई। भगतसिंह सदा के लिए मृत्यु की गोद में सो गए, पर उनके बलिदान और त्याग की वीर गाथाओं ने उन्हें सदा-सदा के लिए अमर बना दिया।
भगतसिंह न तो अतिवादी थे, न आंतकवादी। वे एक पढ़े-लिखे सुसंस्कृत नौजवान थे। उनका पारिवारिक जीवपन धार्मिक एवं सांस्कृतिक उच्च संस्कारों से परिपूर्ण था। वे गम्भीर चिंतक, प्रबुद्ध लेखक एवं तेजस्वर वक्त था। वे समज को अपने वलिदान के माध्यम से एक नई राह दिखाना चाहते थे। वे सोए समाज स्वतंत्रता एवं स्वराज्य की दिव्य चेतना द्वारा जागृति लाना चाहते थे। ओम प्रकाश पत्रकार जी के शब्दों में ''वह दादा अर्जुन सिंह द्वारा बनाई हुई बलिवेदी और चाचा अजीत सिंह द्वारा लिप-पोत कर तैयार किए हुए हवन कुण्ड में समिधा बनकर अपने जीवन की आहुति देना चाहते थे, ताकि क्रान्ति के हवन कुण्ड से उठी लपटें अन्यकारी साम्राज्यवाद का नाश कर सकें'' ।
उन्होंने देश को इंकलाब जिन्दाबाद का नारा दिया। उनका इन्कलाब से अभिप्राय था- देश को स्वराज्य दिलाना और देश में शोषण-मुक्त समाज की स्थापना कारण जिसमें प्रत्येक पूर्ण शान्ति और स्वतंत्रता का उपभोग कर सके। उन्होंने कहा था ''हम मनुष्य जीवन को पवित्र समझते हैं। हम ऐसे उज्जवल भविष्य में विश्वास रखते हैं जब भारत में हर व्यक्ति को पूर्ण शान्ति और स्वतंत्रता का अवसर मिल सके। हम इन्सान का खून बहाने की विवशता पर दुःखी हैं, पर क्रान्ति द्वारा सबको समान स्वतंत्रता देने और मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण समाप्त कर देने के लिए क्रान्ति में कुछ कर देने के लिए क्रान्ति में कुछ न कुछ रक्तपात अनिवार्य है।''
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले। वतन पर मिटने वालों का यही बाकि निशां होगा।