प्रायः आज जातिवाद की राजनीति जोरों पर है, स्वार्थी तत्व किसी न किसी तरह अपना प्रलोभन सिद्ध करना चाहते हैं। हिन्दू हितों की उन्हें कोई चिन्ता नहीं है। आपस में जातिवाद की चालों से उत्पन्न संकट हमारे ऊपर मण्डरा रहा है, जिससे हिन्दू समुदाय को गहन चोट पहुंचेगी तथा पहुंची है। संगठन की जगह विघटन हो रहा है। जहाँ एक मत अटूट संगठन होना चाहिए वहाँ अनेक मत-मतान्तर, जातिवाद, ऊंच-नीच से विघटन और घृणा-द्वेष उत्पन्न होगा। हिन्दू-हिन्दू भाई-भाई ने आपस में एक दूसरे का शोषण किया। जन्मना जातिवाद ने जाति के नाम पर हिन्दू भाइयों को हिन्दू धर्म पर नहीं चलने दिया। सार्वजनिक स्थानों, जलाशयों, मन्दिरों में दलितों का प्रवेश निषिद्ध था। यहाँ तक कि मूल जन्मसिद्ध अधिकारों से भी अपने हिन्दू भाइयों को अलग रखा गया। छुआछूत, ऊंच-नीच तो साधारण बात थी। वेद पढ़ना-सुनना तो बहुत दूर की बात है।
ईसाई-मुसलमान भाइयों को समानता/स्वतन्त्रता रही, परन्तु हिन्दू पिछड़ों पर घोर अत्याचार/यातनाएं दी गई। इससे हिन्दू संगठन को गहरी क्षति होती रही है। घर में ही बैरभाव हो तो बाहर वाला उसका फायदा उठाता है। इसके कारण बहुत से भोले-भाले पिछड़े हिन्दू ईसाई और मुस्लिम मतों में चले गये। जातीय शोषण होता गया। यह चिन्तन का विषय है। किसी समुदाय को चोट पहुंचाने की हमारी दृष्टि नहीं। यह भी चिन्तन और मनन करने वाली बात है कि उस समय कौन सा मण्डल एवं कमण्डल था जिसने हालात में सुधार ही नहीं बल्कि क्रान्ति सजग की? जेलों जैसी यातनाएँ हिन्दू-हिन्दू ने आपस में दी। दलित-पिछड़ा हिन्दू जनेऊ धारण और यज्ञ नहीं कर सकता था, वेद नहीं पढ़ सकता यह जन्म सिद्ध अधिकार भी उनसे छीन लिये गये थे। आवश्यकता एवं तुलना चिन्तन का विषय है कि एक हिन्दू भाई भाई को जलाशय से जल न लेने दे, उससे धार्मिक-आर्थिक सारी स्वतन्त्रता छीन ली गई। उसके मूल जन्मसिद्ध अधिकारों से भी वंचित रखा गया और क्या उसका मुकाबला मण्डल या आरक्षण कर सकता है? कब तक जातिवाद के ढोल से हिन्दू हितों को नुकसान पहुंचता रहेगा। जाति को समूल ही समाप्त किया जाना चाहिए।
आज जाति के नाम पर अपना प्रलोभन सिद्ध करने के लिए आरक्षण आदि से पिछड़ों पर उपकार जताया जा रहा है। असली हितैषी-उपकारक जिसने धार्मिक-सामाजिक-आर्थिक क्रान्ति जगाई उस देव दयानन्द का दर्द हम नहीं जान रहे हैं जिस देव दयानन्द ने समस्त हिन्दुओं को ही नहीं बल्कि समस्त मानव कल्याण के मूल सत्य की सजग क्रान्ति की। समाज में व्याप्त अविद्या, अनाचार, अधर्म एवं पाखण्ड को समाप्त करने के लिए वेदमत (सार्वजनिक धर्म) की पुनः प्रतिष्ठा की। सारे संसार को महान बनाओ का नारा दिया। ऋषि दयानन्द ने ज्ञान, कर्म तथा भक्ति द्वारा मानव मात्र का कल्याण किया। अछूतोद्धारक महर्षि ने प्रबल क्रान्ति की, किन्तु खेद है कि उनकी क्रान्ति को याद नहीं किया जा रहा है। राजनीतिक स्वार्थी लोग महर्षि के दिव्यज्ञान से अपरिचित बन रहे हैं और मण्डल आरक्षण के उपकार जताते हैं। महर्षि एक जातिविहीन समाज चाहते थे जिसमें ऊंच-नीच छुआछूत का कोई स्थान न हो। आरक्षण-राजनीति का आधार जाति से घोर अपवाद पैदा होंगे और हिन्दू विघटन पर चला जायेगा।
ऋषि दयानन्द सरस्वती ने वर्ण व्यवस्था जो सदियों से है उस विषय में पुनः बता दिया कि गुण-कर्म-स्वभाव से वर्ण होते हैं, जन्म से कोई वर्ण नहीं होते। यदि एक ब्राह्मण स्वभाव-गुण-कर्म से वेद विरोधी, मांसाहारी, शराबी एवं व्याभिचारी हो तो वह मनुष्य भी नहीं राक्षस है और यदि एक शूद्र परोपकारी, बुरे व्यसनों से दूर वैदिक कर्मकाण्डी है तो वह आचार्य/विद्वान है। ऋषि ने आदर्श समाज की नींव रखकर पिछड़े हिन्दुओं पर सबसे बड़ा उपकार किया। वेद पथ का डंका सजग किया। सबको बता दिया कि वेद ही सत्य विद्या है। वेद का पढ़ना-पढ़ाना, सुनना-सुनाना सबका परम कर्त्तव्य है। महर्षि ने सत्यमत की आवाज बुलन्द की और कोई नया पन्थ/मजहब नहीं चलाया। समाज में फैली कुरीतियों को जड़ से उखाड़ने में प्रबल योगदान किया। अपनी पाखण्ड-खण्डनी पताका से सन्देश दिया कि केवल वेदमत धर्म है और वेद विरुद्ध जितने तन्त्र-पुराण हैं सब असत्य हैं। वर्ण व्यवस्था की ओर समाज का ध्यान दिलाया। शूद्रों की दशा पर महत्वपूर्ण क्रान्ति करके जन्मना जातिवाद के अत्याचार/अन्याय के खिलाफ केवल देव दयानन्द ने ही आवाज उठाई। पिछड़े वर्ग के लोगों को उनके समस्त अधिकार दिलवाये। वेद पढ़ने-पढ़ाने और आर्य बनाने का जोरदार सफल कार्य किया।
महर्षि के सत्य का जादू जब क्रान्ति की तरफ चला तो पिछड़े हिन्दुओं पर उसका प्रबल प्रभाव पड़ा। उन्हें उनके मूल जन्मसिद्ध अधिकार आर्यसमाज के जरिये प्राप्त होते गये और आज स्थिति यहाँ तक पहुंच चुकी है कि पिछड़े/दलित वर्गों से निकलकर बड़े-बड़े वैदिक विद्वान और आचार्य वैदिक सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं तथा मूर्धन्य कथाकार और धर्मगुरु बने हुए हैं। ऋषि का सत्य का जादू कहाँ सफल नहीं हुआ। अत्याचार एवं शोषण के शिकार मानवों को अमृत पिलाया। सबसे पहला महत्वपूर्ण उपकार ऋषि ने ही निचले तबके लोगों पर किया जिससे समाज में बहुत बड़ा परिवर्तन आया। आर्यसमाज की नींव डालकर हिन्दुओं को ही मजबूत नहीं बनाया, बल्कि विश्व में मानव कल्याण की बात की। किन्तु खेद की बात है कि जहाँ चहुं ओर उस देव दयानन्द की चहल-पहल होनी चाहिए थी वहाँ आज भी जाति की तानाशाही हिन्दू संगठन को विघटन की ओर ले जा रही है।
ऋषि दयानन्द की क्रान्ति से दलित एवं पिछड़े शारीरिक-आत्मिक और सामाजिक उन्नति के शिखर पर पहुंचे। आज आवश्यकता है उस देवदयानन्द के आदर्शों पर चलने की, जिस देव ने सामाजिक- धार्मिक उन्नति के साथ हममें देश प्रेम, विश्वबन्धुत्व की भावना विकसित की। ऋषि के आदर्शों पर चलने से ही पुनः उन्नति का मार्ग प्रशस्त होगा। (दिव्ययुग - मार्च 2013)
Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
Explanation of Vedas | सुखी मानव जीवन के वैदिक सूत्र एवं सूर्य के गुण
The Christian-Muslim brothers had equality / freedom, but the Hindu backwardes were subjected to extreme atrocities / torture. The Hindu organization has been deeply damaged by this. If there is enmity at home, the outside takes advantage of it. Due to this many innocent people went to the backward Hindu Christian and Muslim faiths. Racial exploitation continued. This is a matter of thinking.