शिवरात्रि का सीधा सरलार्थ कल्याण रात्रि है। पौराणिक परिभाषा में यह शिव की रात है। जो भी कोई शिवभक्त इस रात्रि में शिव मूर्ति का पूजन करेगा शिवजी के प्रसाद से कृतकत्य होकर शिवलोक प्राप्त करने का अधिकारी बन जाएगा। ऐसा पौराणिक प्रचार है। मुसलमानों में भी शबरात की बड़ी महिमा है। शबरात परिणत हुआ प्रतीत होता है। क्योंकि उर्दू, अरबी तथा फारसी लिपि में इकार उकारादि मात्रायें प्रायः लिखी नहीं जाती तथा व में मध्य रेखा खेंचकर व का ब बन जाना सम्भव है। अतः शिव का शब बन जाना और रात्रि का रात लिखा जाना सरलता से समझा जा सकता है।
शबरात का महात्म्य भी कुरान शरीफ में लिखा हुआ मिलता है कि- ‘‘हमने उतारा शब कदर में, और तू क्या समझा क्या है शब कदर? शबकदर श्रेष्ठ है सहस्त्र मासों से। उतरते हैं फरिश्ते और रूह इसमें अपने रब्ब की आज्ञा से हरकाम पर। सलामती है वह रात प्रातः के होने तक।’’ (यह आयत सुरा कदर की है)
एक और आयत में लिखा है कि हमने इसको (कुरान को) उतारा एक बरकत की रात में।
इस आयत गर टिप्पणी दी गई है कि सदा से चल रहा है कि रात बरकत की शबकदर है।
भारत में शबकदर को ही मुसलमान शबरात के नाम से पुकारते हैं। जिसकी अपार महिमा कुरान शरीफ में लिखी है।
वेद में शिव नाम परमात्मा का है जिसके अर्थ कल्याणकारी के हैं। उसकी आराधना उपासना सायं प्रातः होती है।
पौराणिकों ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश या शिव तीन देवता माने हैं। पुराणों में इनकी कथाएं में बहुत लिखी हैं, जिसके आधार पर पिताजी ने अपने बालक मूलशंकर को शिवरात्रि के व्रत द्वारा रात्रि जागरण का महात्म्य बताकर शिवदर्शन की बात कही, जिससे आत्मा का कल्याण होकर मोक्ष की प्राप्ति हो।
किन्तु जागरण के मध्य ऋषि की आत्मा में सच्चाई का प्रमाण उदित हो गया कि यह जड़ पाषाण मूर्ति सच्चा कल्याणकारी शिव नहीं है। वह सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान्, अजर-अमर-नित्य-पवित्र-सृष्टिकर्ता परमात्मा घट-घट वासी है। उस निराकार परमात्मा की पूजा निराकार आत्मा में शुभ गुणों के विकास के साथ-साथ ध्यान द्वारा होती है जिसके लिये योग साधना की आवश्यकता है।
अतः योग युक्तात्मा के सान्निध्य की आवश्यकता हुई जिसके लिये वर्षों के कठोर परिश्रम के पश्चात् सिद्धि प्राप्त हुई। तब योग युक्तात्मा महर्षि दयानन्द ने गुरु विरजानन्द जी से वेदों के रहस्यों को समझकर गुरु दक्षिणा में वेदों के प्रचार में जीवन की आहुति देकर संसार के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया।
वास्तव में जिस भी क्षण में मनुष्य को सन्मार्ग की प्रेरणा मिले वही शिव अर्थात् कल्याणकारी है। योग समाधि का पर्याय ही योग निद्रा है। कल्याण की सच्ची प्राप्ति योग निद्रा से विभूषित होती और योग रात्रि भी कही जा सकती है।
संसार जागते हुए भी शुभ प्राप्ति से विमुख होकर वास्तव में मोहान्ध होकर एक प्रकार से गफलत की नीन्द सोए रहता है। किन्तु योगी समाधि निद्रा में प्रभु दर्शन से आनन्द विभोर हो रहा है। यह योग निद्रा है। यह योग समाधि ही योग रात्रि या कल्याणकारिणी शिवरात्रि है। हिन्दू-मुसलमान तथा अन्य सभी लोग इस रहस्य को समझ जाएं तो किसी भी जागरूक क्षण को शबरात या शिवरात्रि कहा जा सकेगा। यही रहस्य दयानन्द ने समझा और ऋषि-महर्षि की पदवी प्राप्त की। - शान्तिप्रकाश शास्त्रार्थ महारथी (दिव्ययुग - मार्च 2013)
Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
सुख-शान्ति एवं सुखी जीवन के वैदिक सूत्र | Introduction to the Vedas
Mythologists have considered Brahma, Vishnu, Mahesh or Shiva as the three gods. There is a lot written in their stories in the Puranas, on the basis of which the father spoke to Shivdarshan by telling his child Mool Shankar the great significance of night awakening by fasting of Shivaratri, so that soul can be benefited and attain salvation.