विशेष :

होली क्या-क्यों-कैसे

User Rating: 5 / 5

Star ActiveStar ActiveStar ActiveStar ActiveStar Active
 

holi kya kyo kaise

वैदिक पद्धति का मुख्य पर्व होते हुए भी होली आजकल असभ्यता का त्यौंहार माना जाता है। यहाँ तक कि सभ्य एवं शिष्ट व्यक्ति इससे बचने लगे हैं। इसका कारण यह है कि इसका आयोजन विकृत हो गया है। वास्तव में यह आरोग्य, सौहार्द एवं उल्लास का उत्सव है। यह भारतीय पंचांग के अन्तिम मास फाल्गुन की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह नई ऋतु एवं नई फसल का उत्सव है। इसका प्रह्लाद एवं उसकी बुआ होलिका से कोई सम्बन्ध नहीं है। होलिका के जलने एवं प्रह्लाद के बचने की कथा प्रसिद्ध अवश्य है, परन्तु इस घटना के आधार पर यह उत्सव नहीं मनाया जाता है। होली का पर्व तो प्रह्लाद के पहले से ही चला आ रहा है।

होली क्या है? होली नवसस्येष्टि है । नव=नई सस्य=फसल, इष्ट=यज्ञ अर्थात् नई फसल पर किया जाने वाला यज्ञ। इस समय आषाढ़ी की फसल में गेहूँ, जौ, चना आदि का आगमन होता है। इनके अधपके दाने को संस्कृत में ‘होलक’ और हिन्दी में ‘होला’ कहते हैं। शब्दकल्पद्रुमकोश के अनुसार- तृणाग्नि भ्रष्टार्द्धपक्वशमीधान्यं होलकः। होला इति हिन्दी भाषा। भावप्रकाश के अनुसार- अर्द्धः पक्वशमी धान्यैस्तृणभ्रष्टैश्‍च होलकः। होलकोऽल्पानिलो भेदः कफदोषश्रमापहः। अर्थात् तिनकों की अग्नि में भुने हुए अधपके शमीधान्य (फली वाले) अन्न को होलक या होला कहते हैं, जो अल्पवात है और चर्बी, कफ एवं थकान के दोषों का शमन करता है। होलिका से होलिकोत्सव कहना केवल शब्दविलास है। यह पर्व का वास्तविक नामकरण नहीं है।

होली नई ऋतु का भी उत्सव है। अगले दिन चैत्र मास का प्रथम दिन है, जब बसन्त ऋतु आरम्भ होती है। बसन्त के आगमन पर हर्षोल्लास स्वाभाविक ही है। ऊनी वस्त्रों का स्थान सूती एवं रेशमी वस्त्र ले रहे हैं। शीत के कारण जो व्यक्ति बाहर निकलने में संकोच कर रहे थे, वे अब निसंकोच होकर घूम रहे हैं। वृक्षों पर नये पत्ते आ रहे हैं। पशुओं की रोमावली नई हो रही है। पक्षियों के पंख नये हो रहे हैं। कोयल की कूक तथा मलय पर्वत की वायु ने इस नवीनता में सजीवता भर दी है। इतनी सारी नवीनताओं के साथ आता नया वर्ष ही तो वास्तविक नववर्ष है, जो दो सप्ताह पश्‍चात् प्रारम्भ होने जा रहा है। इस प्रकार होलकोत्सव वा होली नई फसल एवं नई ऋतु के आगमन तथा नये वर्ष के स्वागत का उत्सव है।

होली के नाम पर लकड़ी के ढेर जलाना, कीचड़ एवं रंग फेंकना, गुलाल मलना, स्वांग रचना, हुल्लड़ मचाना, शराब पीना, भंग खाना आदि विकृत बातें हैं। सामूहिक रूप से नवसंस्येष्टि अर्थात् नई फसल के अन्न से वृहद् यज्ञ करना पूर्णतया वैज्ञानिक था। इसी बात का विकृत रूप लकड़ी के ढेर जलाना है। गुलाब जल अथवा इत्र का आदान-प्रदान करना मधुर सामाजिकता का परिचायक था। इसी का विकृत रूप गुलाल मलना है। ऋतु परिवर्तन पर रोगों एवं मौसमी बुखार से बचने के लिए टेसू के फूलों का जल छिड़कना औषधि रूप था। इसी का विकृत रूप रंग फेंकना है। प्रसन्न होकर आलिंगन करना एवं संगीत-सम्मेलन करना प्रेम तथा मनोरंजन के लिए था। इसी का विकृत रूप हुल्लड़ करना और स्वांग भरना है। कीचड़ फेंकना, वस्त्र फाड़ना, मद्य एवं भंग का सेवन करना आदि तो असभ्यता के स्पष्ट लक्षण हैं। इस महत्वपूर्ण उत्सव को इसके वास्तविक अर्थ में ही देखना एवं मानना श्रेयस्कर है। विकृतियों से बचना तथा उनका निराकरण करना भी भद्र पुरुषों का कर्त्तय है।

होली क्यों मनायें ? भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसलिए आषाढ़ी की नई फसल के आगमन पर मुदित मन एवं उल्लास से उत्सव करना उचित है। अन्य देशों में भी महत्वपूर्ण फसलों के आगमन पर उत्सवों का आयोजन किया जाता है, जो उचित है। नववर्ष के आगमन पर बधाई एवं शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करना भी स्वस्थ सामाजिकता के लिए लाभकारी है। साथ-साथ रहने पर मनोमालिन्य होना सम्भव है, जिसे मिटाने के लिए वर्ष में एक बार क्षमा-याचना तथा प्रेम-निवेदन करना स्वस्थ मानसिकता का साधन है। नई ऋतु के आगमन पर रोगों से बचने के लिए बृहद् होम करना वैज्ञानिक आवश्यकता है। इसलिए उत्सव को अवश्य तथा सोत्साह मनाना चाहिए।

होली कैसे मनाएं? होली भी दीपावली की भांति नई फसल एवं नई ऋतु का उत्सव है। अतः इसे भी स्वस्छता एवं सौम्यतापूर्वक मनाना चाहिए। फाल्गुन सुदि चतुर्दशी तक सुविधानुसार घर की सफाई-पुताई आदि कर लें। फाल्गुन पूर्णिमा को प्रातःकाल बृहद् यज्ञ करें। रात्रि को होली न जलाएं, अपितु अपरान्ह में प्रीति सम्मेलन करें। घर-घर जाकर मनोमालिन्य दूर करें । आवश्यकतानुसार इत्र आदि का आदान-प्रदान करें। संगीत-कला के आयोजन भी करें। रंग, गुलाल, कीचड़, भंग आदि का प्रयोग न करें तथा स्वांग न भरें। इनकी कुप्रथा प्रचलित हो गई है, जिसे दूर करना आवश्यक है। स्वस्थ विधिपूर्वक उत्सव मनाने पर मानसिकता, सामाजिकता एवं परम्परा स्वस्थ बनी रहती है। अतः सभ्य-शिष्ट-श्रेष्ठ पुरुषों का कर्त्तव्य है कि तदनुसार ही करें और करायें।

Holi | Vedic System | Educated and Civilized | How to Celebrate Holi? | Why Celebrate Holi ? | Noviceist | New Season | Manglik Festival Holi | Divya Yug | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Biramitrapur - Ottapparai - Dirba | Newspaper, Vedic Articles & Hindi Magazine Divya Yug in Birnagar - Pachgaon - Doraha | दिव्ययुग | दिव्य युग |


स्वागत योग्य है नागरिकता संशोधन अधिनियम
Support for CAA & NRC

राष्ट्र कभी धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता - 2

मजहब ही सिखाता है आपस में बैर करना

बलात्कारी को जिन्दा जला दो - धर्मशास्त्रों का विधान