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प्रकाश के उत्सव का पर्व दीपावली

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Prakash ka parv

दीपावली का त्यौहार हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह त्यौहार दीपकों से चारों ओर प्रकाश बिखेरकर हम सबके लिये प्रसन्नता और आशा का सन्देश लेकर आता है। दूसरे त्यौहारों की तरह इसमें अनेक धार्मिक कथायें जुड़ गई हैं। होली की तरह यह त्यौहार भी मौसम बदलने की सूचना देता है तथा वर्षा के बाद घरों की सफाई और उन्हें सजाने का सन्देश देता है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश की दो मुख्य फसलों रबी और खरीफ के साथ होती और दीपावली जैसे त्यौहारों का जुड़ जाना बहुत स्वाभाविक है। फसल किसान के घर में होती है और पास में होता है उसके खाली समय! बस उसका मन गा उठता है, नाच उठता है दीपावली के प्रकाश और होली के रंग में!

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प्रेम व सहयोग का त्यौहार - दीपावली संस्कृत शब्द है जो दीप और अवली दो शब्दों के मेल से बना है। इसका अर्थ होता है दीपकों की पंक्ति। यहाँ दीपक प्रतीक है प्रकाश का, ज्ञान का और प्रेम का। इस रात के घोर अंधकार को हम दीपकों के प्रकाश से दूर करते हैं। इसका एक अर्थ यह भी है कि हम अपने मोह के अंधकार को ज्ञान के प्रकाश से दूर करना चाहते हैं। ’’दीप से दीप जले’’ जब हम यह बात कहते हैं तो इसका अर्थ यह होता है कि जिस तरह एक दीपक से दूसरा दीपक जलता है, उसी तरह हम समाज में अपने प्रेम से, अपने सहयोग से, अपनी सेवा से दुखी लोगों को, गिरे हुए इंसानों को और हारे-थके लोगों को सहयोग देकर ऊँचा उठायें और मानवता की सेवा करें। वेदों में बहुत पहले से सबके सुखी होने की भावना प्रकट की गई है। इस रूप में यह त्यौहार हमें प्रेम के साथ सहयोगपूर्ण जीवन बिताने की शिक्षा देता है। भारत से बाहर के देशों में लाखों भारतीय मूल के लोग बसते हैं, वे सब मिलकर इस त्यौहार को मनाते हैं, उन सबमें एकता स्थापित करने, भारतीय संस्कृति को समझने तथा आपस में भाईचारे के साथ रहने के लिये यह उत्सव एक आदर्श उत्सव है।

त्यौहारों की शृंखला - दीपावली से पहले धनतेरस, नरक चौदस और बाद में गोधन और भाईदूज भी मनायी जाती है। धनतेरस को धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर उपस्थित हुए थे जिसे पीकर देवता अमर हो गये। इस पौराणिक कथा से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य अपने परिश्रम से अमरता भी प्राप्त कर सकता है। कुछ पाने के रूप में इस दिन पाँच नये बर्तन खरीदने की प्रथा समाज में आज तक प्रचलित है।

नरक चौदक को घर से बाहर यम का दीपक जलाने का अभिप्राय यही है कि यम जो मृत्यु का देवता है घर से विदा कर देते हैं। इसी दिन कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था।

गोधन या गोवर्धन की पूजा इन्द्र के स्थान पर कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत पूजने की प्रथा का स्मरण कराती है। गायों के लिये गोवर्धन पर्वत से ही तिनका मिलता था और एक तरह से वही गोवर्धन में सहायक था। अतः अहीरों के लिये वही पूज्य हुआ। इस कथा से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमारे जीवन को पूर्ण करने वाला हर अस्तित्व हमारे लिये पूज्य है। इस सन्दर्भ में यह कहना अप्रासंगिक न होगा कि गोचारण हमारा प्राचीनतम व्यवसाय है और लोक जीवन की अनवरत परम्परा में जुड़ी हुई घर में गाय के गोबर से गोवर्धन की संरचना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। भैयादूज भाई-बहिन के अमर प्रेम का प्रतीक है।

लक्ष्मी की महत्ता- भारत में लक्ष्मी-पूजन दीपावली का मुख्य कार्य है। ऐसा विश्‍वास किया जाता है कि इस रात को लक्ष्मी जी सब जगह घूमती हैं और जो घर सबसे साफ-सुथरा दिखायी देता है उसमें वे निवास करती हैं। लोग उनके स्वागत में अपने घर के दरवाजे खुले रखते हैं, उनकी पूजाकर उनसे सबका कल्याण माँगा जाता है।

सागर मंथन की कथा को लेकर इसे वैदिक पर्व कहा जाता है। राक्षस और देवताओं ने मिलकर सागर का मंथन किया, उससे अनेक रत्न निकले, लक्ष्मी जी उनमें से एक थी। लक्ष्मी जी ने विष्णु का वरण किया। विष्णु के धाम में वे प्रकाश और धन की स्वामिनी बनीं। इसी घटना को प्रकाश के महान उत्सव दीपावली के रूप में मनाया जाता है। सागर-मंथन की कथा दो जातियों के आपस में मिलकर काम करने की कथा है। यदि हम आपसी भेदभाव मिटाकर एक-दूसरे के लिये काम करें तो निश्‍चय ही जीवन के हर क्षेत्र में हमें सफलता मिलेगी। अपने कल्याण से बड़ी बात इस दुनिया में समाज का कल्याण मानी गयी है।

विदेशों में दीपावली- ट्रिनिडाड, सूरीनाम, गयाना, जमेका आदि पश्‍चिमी गोलार्ध के प्रमुख देशों में दीपावली प्रायः बड़े-बड़े पार्कों में बांस की खपच्चियों पर दीपक सजाकर बहुत सोत्साह मनाया जाता है।

मारीशस में दीप जलाने के साथ-साथ मिठाई भी भारतवंशी एक-दूसरे के घरों में पहुँचाते हैं। मारीशस में अनेक धर्मावलम्बी आपस में बहुत प्रेमपूर्वक रहते हैं और वहाँ के प्रमुख नगर कात्रबोर्न के म्यूनिसपल भवन के प्रांगण में वहाँ के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा मन्त्रीमण्डल के अन्यान्य सदस्य विशाल जन समूह के मध्य दीपकों के झिलमिलाते प्रकाश और फुलझड़ियों के सतरंगी प्रकाश में जिस उल्लास से दीपावली का उत्सव मानते हैं वह वर्णनातीत है। इस अवसर पर प्रायः सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे के गले मिलते हैं।

निर्वाण दिवस- आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद को इसी दिन निर्वाण प्राप्त हुआ था। महर्षि दयानंद वेद के आधार पर समूची मानव जाति को विश्‍वधर्म देने वाले थे। वे परम आध्यात्मिकता के केन्द्र बिन्दु थे, जहाँ से असंख्य लोगों को प्रेरणा मिली, जीवन की सच्ची राह मिली, मनुष्य को मनुष्य के रूप में पहचानने की सच्ची दीक्षा मिली, नारी को शिक्षा ग्रहण करने का स्वर्णावसर प्राप्त हुआ, पुरुष के द्वारा उसे सम्मान मिला और घर को प्यार का मन्दिर बनाने का सम्बल मिला। तभी तो महर्षि दयानन्द के अनुवर्तियों ने भारत और भारत से बाहर यूरोप, दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका, अमेरिका आदि में वैदिक ज्ञान का प्रकाश ग्रहण कर आत्म विकास की महती साधना की और समाज-सुधार की परिखा में पाखण्ड का विरोध कर के एकता के बीज बोये। भारत की तरह लैटिन अमरीकी देशों में महर्षि दयानन्द का जन्म दिवस और निर्वाण-दिवस सभी आर्यसमाजी सभागारों में मनाया जाता है। इस अवसर पर यज्ञ और उपदेश का आयोजन किया जाता है। मारीशस के 427 सभागार समूचे देश में फैले हैं और इनमें महर्षि दयानन्द का जन्म-दिवस, निर्वाणोत्सव, श्रद्धानन्द का बलिदान-दिवस तथा हिन्दी दिवस मनाये जाते हैं। आर्य समाज के इन सभी सभागारों में हिन्दी की कक्षायें आयोजित की जाती हैं। कहना न होगा कि मारीशसीय हिन्दी के विकास में आर्य समाज मारीशस की महत्वपूर्ण भूमिका है।

समग्रतः दीपावली का पर्व प्रकाश के उत्सव के रूप में पारस्परिक भाईचारे का पर्व है, अनेक कथाओं के रूप में महान शिक्षा देने वाला पर्व है। घर की सफाई, रोशनी करना एवं आपस में भेंट देना इसके सामाजिक रूप को प्रकट करता है तथा लक्ष्मी-पूजन इसके धार्मिक प्रारूप को अभिव्यञ्जित करता है। नाना मूर्तियों के निर्माण में लोक शिल्पी की महती कला को अभिव्यञ्जित करने वाला यह पर्व महर्षि दयानन्द के निर्वाणोत्सव के रूप में हमें यही शिक्षा देता है कि आत्मा नित्य है, उसका नाश नहीं होता है और हम सबको आत्म-विकास में लगना चाहिये। - डॉ. हरगुलाल गुप्त (दिव्ययुग - अक्टूबर 2019)

Before Diwali, Dhanteras, Narak Chaudas and later Godhan and Bhaiduj are also celebrated. On Dhanteras, Dhanvantari was present with the nectar kalash, after drinking which the deity became immortal. This mythology teaches that a person can attain immortality through hard work. The practice of buying five new utensils on this day is prevalent in society as of getting something.


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