विशेष :

जीवन का आधार वायु

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तृतीय खण्ड : जीवन दर्शन

jivan ka adhar vayuप्रत्येक व्यक्ति सबसे अधिक जीवन की चाहना करता है और इसीलिए सभी सबसे बढकर जीवन से प्यार करते हैं। अतः इसको अच्छा बनाने के लिए ही सभी तरह के प्रयास किए जाते हैं। इसलिए आइए! सर्वप्रथम अपने मान्यास्पद धर्मग्रन्थ वेद के आधार पर जीवन के रहस्य, प्रक्रिया को समझने का प्रयास करें।

‘जीवन‘ शब्द जीव प्राणने = साँस लेना अर्थ वाली धातु से बनता है। जीवन की पहचान भी साँस लेना ही है। इसीलिए कहा जाता है- जब तक साँस तक तक आस। तभी तो नाड़ी और हृदय की धड़कन देखकर जीवित की पहचान होती है। अतः जीवन की अनिवार्य बातों में वायु-साँस का प्रथम स्थान है। क्योंकि इसके बिना एक क्षण भी जीवन बीतता नहीं है और तब एकदम सबका दम घुटता है। ह प्राणन क्रिया वायु से जुड़ी हुई है। बाह्य जगत में चलने, बहने वाले को वायु, वात, पवन आदि नामों से पुकारते हैं। शरीर के अन्दर संचरण करने वाले को प्राण, श्‍वास, साँस कहा जाता है। तभी तो वायु देवता वाले सूक्त में आया है-
ओ3म् वात आ वातु भेषजं शम्भु मयोभु नो हृदे।
प्रण आयूंषि तारिषत्॥ ऋग्वेद 10.186.1॥

शब्दार्थ- नः= हम साँस लेने वालों के, हृदे = हृदय में वातः = जगत तथा जीवन का आधार बनकर चलने वाला, वायु-प्राण शम्भु = शान्तिकर, मयोभु = सुखप्रद, भेषजम् = औषध जैसा, आ वातु = अच्छे रूप में चले, अनुकूल बहे। जिससे वह णः = नः = हम सब जीवन चाहने वालों के आयूंषि = सांसों के अर्थात सांसों पर निर्भर जीवन को प्र तारिषत् - आगे से आगे बढाए। जिससे यह जीवन आगे से आगे जीवित रहे, अवसर का अधिक लाभ ले सके।

व्याख्या- भेषजम् - जैसे दवा रोग को दूर करके तज्जन्य कष्ट-क्लेश, दुःख को दूर कर देती है, इससे तब स्वतः शान्ति, सन्तुष्टि, सुख की अनुभूति होती है। मन्त्र में शम्भु-मयोभु भेषज के विशेषण बनकर आए हैं। वैसे शम्भु मन की शान्ति, सन्तुष्टि और मयोभु शारीरिक भौतिक सुख की ओर संकेत करता है। यह प्राण मन व तन दोनों पर प्रभाव डालता है। स्वच्छ वायु रोगनाशक होने से औषध की तरह सांस लेने वालों के लिए स्वास्थ्य रूपी शान्ति, सन्तुष्टि सुख देने वाली होती है। जहाँ आरोग्य के अनुकूल वायु चलती है, वहाँ फेफ़ड़े शुद्ध प्राणवायु से भर जाने पर अपना कार्य सरलता से करने में सक्षम होते हैं। हृदय शरीर का एक विशेष अंग है, जो शुद्ध प्राण वायु होने पर रक्त शोधन, शरीर संचालन में सहजता से सफल होता है। हृदय भावनाओं का उद्गम तथा आश्रम स्थल भी है। स्वास्थ्यप्रद वायु से सम्प्रेरित होने पर हृदय हल्का-फुल्का रहता है। जैसे किसी स्वच्छ बाग में हम अनुकूलता अनुभव करते हैं। हमारी देह में अनेक अनोखे अंग हैं। उनमें से हृदय अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग है, जिसका प्राणवायु से सीधा सम्बन्ध है।

मन्त्र के अन्तिम में अंश में शुद्ध प्राणवायु के लाभ दर्शाते हुए कहा गया है कि जहाँ ऐसा होता है, वहाँ आगे से आगे आयु बढ़ती है, स्थिर रहती है। इससे यह भी अभिव्यक्त होता है कि आयु बढ़ाने वाले तत्वों में शुद्ध वायु का प्रथम स्थान है। शुद्ध वायु प्राकृतिक तत्व है। हम ही अपने दुव्यर्वहारों से उसको प्रदूषित करते हैं। अतः हमें उसको प्रदूषित करने से बचना चाहिए। यथासम्भव प्रदूषण निवारण के उपाय भी करने का यत्न करना चाहिए।

मन्त्र के भावार्थ को हम इस प्रकार से कह सकते हैं- जैसे कोई अनुभवी अपने अनुभव के आधार पर प्रार्थना कर रहा रहा हो कि हे प्रभो! आपकी व्यवस्था से श्‍वास की यह प्रक्रिया चलती है । अतः ऐसी व्यवस्था करो कि वायु शुद्ध होकर बहे।

इस मन्त्र के माध्यम से वेद लम्बी उम्र चाहने वालों को सन्देश दे रहा है कि वे सदा ऐसा यत्न करें, जिससे वायु शुद्ध रहे। वेद मंथन, लेखक - प्रा. भद्रसेन वेदाचार्य एवं संपादक - आचार्य डॉ. संजय देव (Ved Manthan, Writer- Professor Bhadrasen Vedacharya & Editor - Acharya Dr. Sanjay Dev)

Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev | वेद कथा - 100 | वेद मार्ग कल्याणकारी | क्रन्तिकारी प्रवचन | Introduction to the Vedas | Ved Katha