विश्व हिन्दी सम्मान से नवाजे गए जर्मनी के प्रो. हाइंस वारनाल वेस्लर ने कहा कि हिन्दी की वजह से उन्हें नौकरी मिली, अन्यथा मुश्किल होती।
स्वीडन में इण्डोलॉजी विभाग के प्रमुख वेस्लर के अनुसार जर्मनी के एक लेखक का उपन्यास ’सिद्धार्थ’ पढ़कर उनका झुकाव बौद्ध धर्म की ओर हुआ। फिर उन्होंने हिन्दी सीखी। मूलत: जर्मनी के रहने वाले वेस्लर पिछले पांच वर्षों से स्वीडन में हिन्दी के साथ संस्कृत और दक्षिण एशिया का इतिहास भी पढ़ा रहे हैं।
संस्कृतनिष्ठ हिन्दी को वेस्लर कृत्रिम मानते हैं और प्रधानमन्त्री मोदी से सहमति जताते हुए कहते हैं कि भारत की अलग-अलग जुबानों से हिन्दी में शब्द लेने चाहिएं। हालांकि वे यह भी मानते हैं कि गलत अनुवाद से हिन्दी को बहुत नुकसान हुआ है, खासकर विदेशों में। अत: इस दिशा में और काम होना चाहिए।
विदेश मन्त्रालय के निमन्त्रण पर हिन्दी सम्मेलन में हिस्सा लेने आए वेस्लर मानते हैं कि हिन्दी को वैश्विक भाषा बनाने के लिए इस तरह के आयोजन होना चाहिए और इस पर तार्किक बहस भी होनी चाहिए। वे कहते हैं कि वाद विवाद तो भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है। -वेस्लर (दिव्ययुग- नवम्बर 2015)
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