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हमारे अस्त्र-शस्त्र

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ओ3म् स्थिरा वः सन्त्वायुधा पराणुदे वीळू उत प्रतिष्कभे।
युष्माकमस्तु तविषी पनीयसी मा मर्त्यस्य मायिनः ॥ ऋगवेद 1.39.2॥

शब्दार्थ- हे वीर सैनिको ! (प्रतिष्कभे पराणुदे) युद्ध में शत्रुओं को रोकने और उन्हें मार भगाने के लिए (वः) आप लोगों के (आयुधा) युद्ध करने के हथियार, अस्त्र-शस्त्र (स्थिराः उत वीळू सन्तु) स्थिर और दृढ हों। हे वीर पुरुषो ! (युष्माकम्) तुम लोगों की (तविषी) बलवती सेना (पनीयसी) अत्यन्त व्यवहार-कुशल एवं प्रशंसनीय हो। परन्तु (मायिनः मर्त्यस्य मा) जो मायावी शत्रु हैं, छल-कपट से युद्ध करनेवाले हैं उनके अस्त्र-शस्त्र वैसे दृढ और उनकी सेना वैसी प्रशंसनीय न हो।

भावार्थ- देश की रक्षा का भार सैनिकों पर होता है। परन्तु सैनिक देश की रक्षा उसी दशा में कर सकते हैं जब उनके अस्त्र-शस्त्र दृढ और तीक्ष्ण हों। कोई भी देश किसी भी समय किसी भी देश पर आक्रमण कर सकता है। अतः राष्ट्र-रक्षा के लिए सैनिक सदैव उद्यत रहने चाहिएँ। उनके पास तीक्ष्ण, दृढ अस्त्र-शस्त्रों की कमी नहीं होनी चाहिए।

सेना भी अत्यन्त बलवान्, व्यवहारकुशल और प्रशंसनीय होनी चाहिए। जो मायावी हैं, छल-कपट से युद्ध करनेवाले हैं, शत्रु हैं, उनके अस्त्र-शस्त्र स्थिर और दृढ नहीं होने चाहिएँ। उनकी सेना भी बलवान् नहीं होनी चाहिए- देश के सैनिकों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए।

तीक्ष्ण, दृढ एवं स्थिर अस्त्र-शस्त्रों से संग्राम में विजय प्राप्त की जा सकती है। अतः इस सम्बन्ध में सदा सावधान रहना चाहिए। - स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती (दिव्ययुग- अगस्त 2015)

Our Weapons | Veda Saurabh | Well Behaved | Elusive Enemy | Country Invasion | Treachery | Protect the Country | Victory in Battle | Always Careful | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Maurawan - Kamalapuram - Anandpur Sahib | दिव्ययुग | दिव्य युग |