विशेष :

स्वामी दयानन्द के अमृत वचन-19

User Rating: 0 / 5

Star InactiveStar InactiveStar InactiveStar InactiveStar Inactive
 

Swami Dayanands Saraswati Amrit Vachan 19

प्रश्‍न- जब परमेश्‍वर के श्रोत्र नेत्रादि इन्द्रियाँ नहीं है, फिर इन्द्रियों का काम कैसे कर सकता है ?
उत्तर-

अपाणिपादो जवनो ग्रहीता पश्‍चत्यचक्षु: स शृणोत्यकर्णः।
स वेत्ति विश्‍वं न च तस्यास्ति वेत्ता तमाहुरग्र्यं पुरुषं पुराणम्॥

यह उपनिषत् का वचन है। परमेश्‍वर के हाथ नहीं, परन्तु अपनी शक्तिरूप हाथ से सबकी रचना तथा ग्रहण करता है । पग नहीं परन्तु व्यापक होने से सबसे अधिक वेगवान्, चक्षु का गोलक नहीं परन्तु सबको यथावत् देखता, श्रोत्र नहीं तथापि सबकी बातें सुनता, अन्त:करण नहीं परन्तु सब जगत को जानता है और उसको अवधि सहित जानने वाला कोई भी नहीं । उसी को सनातन, सबसे श्रेष्ठ, सबमें पूर्ण होने से पुरुष कहते हैं । वह इन्द्रियों और अन्त:करण के बिना अपने सब काम अपने सामर्थ्य से करता है।

प्रश्‍न- उसको बहुत से मनुष्य निष्क्रिय और निर्गुण कहते हैं ?
उत्तर-

न तस्य कार्य करणं च विद्यते न तत्समश्‍चाभ्यधिकश्‍च दृश्यते।
परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञानबल क्रिया च॥

यह उपनिषद् का वचन है। परमात्मा से कोई तद्रूप कार्य और उसको करण अर्थात साधकतम दूसरा अपेक्षित नहीं। न कोई उसके तुल्य और न अधिक है। सर्वोत्तम शक्ति अर्थात् जिसमें अनन्त ज्ञान, अनन्त बल और अनन्त क्रिया है । वह स्वाभाविक अर्थात् सहज उसमें सुनी जाती है। जो परमेश्‍वर निष्क्रिय होता तो जगत की उत्पत्ति-प्रलय न कर सकता। इसलिये वह विभु तथापि चेतन होने से उसमें क्रिया भी है।

प्रश्‍न- जब वह क्रिया करता होगा तब अन्तवाली क्रिया होती होगी वा अनन्त ?
उत्तर- जितने देश काल में क्रिया करनी उचित समझता है, उतने ही देश काल में क्रिया करता है । न अधिक न न्यून, क्योंकि वह विद्वान है।

प्रश्‍न- परमेश्‍वर अपना अन्त जानता है वा नहीं ?
उत्तर- परमात्मा पूर्ण ज्ञानी है। क्योंकि ज्ञान उसको कहते हैं कि जिससे ज्यों का त्यों जाना जाये। अर्थात् जो पदार्थ जिस प्रकार का हो उसको उसी प्रकार जानने का नाम ज्ञान है। जब परमेश्‍वर अनन्त है तो उसको अनन्त ही जानना ज्ञान, उसके विरुद्ध अज्ञान अर्थात् अनन्त को सान्त और सान्त को अनन्त जानना भ्रम कहाता है। ‘यथार्थदर्शन ज्ञानमिति’ जिसका जैसा गुण, कर्म, स्वभाव हो उस पदार्थ को वैसा ही जानकर मानना ही ज्ञान और विज्ञान कहाता है और उससे उलटा अज्ञान। इसलिये- क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्ट: पुरुषविशेष ईश्‍वर:॥योगसूत्र॥

जो अविद्यादि क्लेश, कुशल-अकुशल, इष्ट-अनिष्ट और मिश्र फलदायक कर्मों की वासना से रहित है, वह सब जीवों से विशेष ईश्‍वर कहाता है।• - प्रस्तुति : स्वामी वैदिकानन्द (दिव्ययुग - मार्च 2008)


Swami Dayanand's Amrit Vachan-19 | Fastest | Human Beings Idle and Nirvana | Best Power | Eternal Knowledge | Eternal Force and Eternal Action | Divine Knowledge | God is Eternal | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Mahwa - Veeraganur - Gonda | News Portal - Divyayug News Paper, Current Articles & Magazine Maihar - Kayamkulam - Gorakhpur | दिव्ययुग | दिव्य युग