भारत की आज़ादी का संघर्ष मेरठ में सिपाहियों की बग़ावत के साथ 1857 में प्रारम्भ हुआ। 20वीं शताब्दी में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य राजनैतिक संगठनों ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में एक देशव्यापी आन्दोलन चलाया। महात्मा गांधी ने हिंसापूर्ण संघर्ष के विपरीत अहिंसात्मक ’सविनय अवज्ञा आंदोलन’ का सशक्त नेतृत्त्व किया। उनके द्वारा विरोध प्रदर्शन के लिए जुलूस, प्रार्थना सभाएं, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और भारतीय वस्तुओं को प्रोत्साहन देना आदि अचूक हथियार थे।
इन रास्तों को भारतीय जनता ने समर्थन दिया और स्थानीय अभियान ’राष्ट्रीय आन्दोलन’ में बदल गए। इनमें से कुछ मुख्य आयोजन ’असहयोग आन्दोलन’, ’दाण्डी मार्च’, ’नागरिक अवज्ञा अभियान’ और ’भारत छोड़ो आन्दोलन’ थे। शीघ्र ही यह स्पष्ट हो गया कि भारत अब उपनिवेशवादी शक्तियों के नियन्त्रण में नहीं रहेगा और ब्रिटिश शासकों ने भारतीय नेताओं की मांग को मान लिया। यह निर्णय लिया गया कि यह अधिकार भारत को सौंप दिया जाए और 15 अगस्त 1947 को भारत को यह अधिकार सौंप दिया गया।
स्वतन्त्र भारत की घोषणा- 14 अगस्त 1947 को रात को 11.00 बजे संघटक सभा द्वारा भारत की स्वतन्त्रता को मनाने की एक बैठक आरम्भ हुई, जिसमें अधिकार प्रदान किए जा रहे थे। जैसे ही घड़ी में रात के 12.00 बजे भारत को आज़ादी मिल गई और भारत एक स्वतन्त्र देश बन गया। स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने अपना प्रसिद्ध भाषण ’नियति के साथ भेंट’ दिया-
’’जैसे ही मध्य रात्रि हुई और जब दुनिया सो रही थी, भारत जाग रहा होगा और अपनी आजादी की ओर बढ़ेगा। एक ऐसा पल आता है जो इतिहास में दुर्लभ है, जब हम पुराने युग से नए युग की ओर जाते हैं..........। क्या हम इस अवसर का लाभ उठाने के लिए पर्याप्त बहादुर और बुद्धिमान हैं और हम भविष्य की चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं?’’ -जवाहरलाल नेहरू
इसके बाद तिरंगा झण्डा फहराया गया और लाल क़िले की प्राचीर से राष्ट्रीय गान गाया गया।
स्वतन्त्रता दिवस पर आयोजन- स्वतन्त्रता दिवस समीप आते ही चारों ओर खुशियाँ फैल जाती है। सभी प्रमुख शासकीय भवनों को रोशनी से सजाया जाता है। तिरंगा झण्डा कार्यालयों तथा अन्य भवनों पर फहराया जाता है। स्वतन्त्रता दिवस 15 अगस्त एक राष्ट्रीय अवकाश है। इस दिन का अवकाश प्रत्येक नागरिक को बहादुर स्वतन्त्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदान को याद करके मनाना चाहिए।
स्वतन्त्रता दिवस के एक सप्ताह पहले से ही विशेष प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों के आयोजन द्वारा देश भक्ति की भावना को प्रोत्साहन दिया जाता है। रेडियो स्टेशनों और टेलीविज़न चैनलों पर इस विषय से सम्बन्धित कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। शहीदों की कहानियों के बारे में फिल्में दिखाई जाती है और राष्ट्रीय भावना से सम्बन्धित कहानियां और रिपोर्ट प्रकाशित की जाती हैं।
स्वतन्त्रता की पूर्व सन्ध्या- राष्ट्रपति द्वारा स्वतन्त्रता दिवस की पूर्व सन्ध्या पर राष्ट्र के नाम सन्देश प्रसारित किया जाता है। इसके बाद अगले दिन लाल क़िले से तिरंगा झण्डा फहराया जाता है। राज्य स्तर पर भी विशेष स्वतन्त्रता दिवस कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें झण्डा फहराने के आयोजन और सांस्कृ तिक आयोजन शामिल हैं। इन आयोजनों को राज्यों की राजधानियों में आयोजित किया जाता है और मुख्यमन्त्री इन कार्यक्रमों की अध्यक्षता करते हैं। छोटे पैमानों पर शैक्षिक संस्थानों, आवास संघों, सांस्कृतिक केन्द्रों और सामाजिक राजनैतिक संगठनों द्वारा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
प्रभातफेरी- स्कूलों और संस्थाओं द्वारा प्रात: ही प्रभातफेरी निकाली जाती हैं, जिनमें बच्चे, युवक और बूढ़े देशभक्ति के गाने गाते हैं और उन वीरों की याद में नुक्कड़ नाटक और प्रशस्ति गान करते हैं।
स्वतन्त्रता दिवस का प्रतीक पतंग- स्वतन्त्रता दिवस का एक और प्रतीक पतंग उड़ाने का खेल है। आकाश में ढेर सारी पतंगें दिखाई देती हैं जो लोग अपनी-अपनी छतों से उड़ा कर भारत की स्वतन्त्रता का समारोह मनाते हैं। अलग अलग प्रकार, आकार और रंगों की पतंगों तथा तिरंगे बाज़ार में उपलब्ध हैं। इस दिन पतंग उड़ाकर अपने संघर्ष के कौशलों का प्रदर्शन किया जाता है।
देशभक्ति का प्रदर्शन- स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल क़िले पर तिरंगा झण्डा लहराया जाता है।
भारत एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत वाला देश है और यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है। यहाँ के नागरिक देश को और अधिक ऊंचाइयों तक ले जाने का प्रयास करना चाहिए, जहाँ तक इसके स्वाधीनता संग्रामी नेताओं ने इसे पहुंचाने की कल्पना की थी। जैसे ही आसमान में तिरंगा लहराए, प्रत्येक नागरिक देश की शान को बढ़ाने के लिए कठिन परिश्रम करने का संकल्प करे और भारत को एक ऐसा राष्ट्र बनाने का लक्ष्य पूरा करने का प्रण ले, जो मानवीय मूल्यों के लिए सदैव अटल रहे ।
ये दिन हमारे इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया वो दिन है, जिसकी स्याही हमारे देश के अमर शहीदों ने अपने खून से गढ़ी थी! माटी के उन सपूतों ने जो कभी अपने घर ना लौट सके, उन माँ के लाड़लों ने जिन्होंने अपनी माँ के आँचल को छोड़ स्वतन्त्रता संग्राम में वीरगति के स्वर्णिम कफ़न को अपनाना मंज़ूर किया। उन रणबांकुरों ने कभी ये ना सोचा कि क्या वे आज़ादी की इस खुली हवा में साँस ले भी पाएँगे या नहीं। वो भारत माता के लाड़ले तो हमेशा अपनी माँ को आज़ादी के उच्चशिखर पर देखना चाहते थे और इसी चाहना में ना जाने कितने वीरों ने अपनी आँखें बन्द कर ली। ताकि यहाँ पैदा होने वाला हर बच्चा आज़ाद भारत के आज़ाद आकाश के नीचे अपनी आँखें खोल सके । ना जाने कैसे लोग थे वे जो अपने स्वार्थों को छोड़ चल पड़े स्वतन्त्रता की उस डगर पर, जिसका अन्त तो पता था परन्तु रास्ते की दूरी का अन्दाज़ा लगाना मुश्किल था। परन्तु उन वीरों ने इस बात की परवाह ना करते हुए सिर पर कफ़न बाँध निकलना पसन्द किया और इस तरह कारवाँ बढ़ता रहा और मंज़िल एक दिन 15 अगस्त 1947 के रूप मे आ गयी ! आओ ! हम सब भारतीय मिलकर उन अमर जवानों को श्रद्धांजलि दे। जय हिन्द ! जय भारत !! प्रस्तुति- कु. भावना पहल (दिव्ययुग - अगस्त 2014)
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