विशेष :

गुणवान नागरिकों द्वारा राष्ट्र की रक्षा

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Protecting the nation by quality citizens

ओ3म् सत्यं बृहदृतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्मयज्ञः पृथिवीं धारयन्ति ।
सा नो भूतस्य भव्यस्य पत्न्युरुं लोकं पृथिवी नः कृणोतु् ॥ अथर्ववेद 12.1.1॥
सत्य पथ पर चलने की प्रवृत्ति, हृदय का विशाल भाव, सहज व्यवहार, साहस, कार्यदक्षता तथा प्रत्येक मौसम को सहने की शक्ति, ज्ञान के साथ विज्ञान में समृद्धि तथा विद्वानों का सम्मान करने के गुणों से ही राष्ट्र और मातृभूमि की रक्षा की जा सकती है।

राष्ट्र और मातृभूमि की रक्षा के लिये सतत और गम्भीर प्रयास करने होते हैं। अपने नागरिकों को ज्ञान और विज्ञान से परिपूर्ण करना होता है। उनका नेतृत्त्व करने वालों को न केवल शारीरिक रूप से सक्षम होना चाहिए, बल्कि उनमें साहस भी होना चाहिए। समाज के नागरिक आर्थिक रूप से उत्पादक, भेदभाव से रहित तथा सत्यमार्गी होने चाहिएं । हम देख रहे हैं कि अभी तक विकसित कहलाने वाले पश्‍चिमी राष्ट्र अब लड़खड़ाने लगे हैं। क्योंकि उनके यहाँ अनुत्पादक नागरिकों का वर्ग बढ़ रहा है। इसके विपरीत हमारे देश की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है। पर जिस तरह हमने पश्‍चिमी के विचारों को स्थान दिया है, उसके चलते हमारे यहाँ भी अनुत्पादक नागरिक वर्ग बढ़ने की सम्भावना हो सकती है। कहने का अभिप्राय यह है कि राष्ट्र या मातृभूमि की रक्षा का नारा लगाना अलग बात है, पर उसके लिये सतत और गंभीर प्रयास करते रहना अलग बात है। इस बात को समझना चाहिए।

हमारे यहाँ स्वतन्त्रता संग्राम में दौरान आज़ादी तथा देशभक्ति का नारा इस तरह लगा कि हमारे यहाँ लोगों की भीड़ को एकत्रित करने के लिये पेशेवर अभियान संचालक ये नारे आज भी लगाते हैं। लोगों में राष्ट्रप्रेम की धारा इस तरह बह रही है कि आज भी स्वतन्त्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस तथा गान्धी जयन्ती पर भावविभोर करने वाले गीत लोगों को लुभाते हैं। जब कोई आन्दोलन या प्रदर्शन होता है तो उस समय मातृभूमि का नारा देकर लोगों को अपनी तरफ आकृष्ट करने के प्रयास होते हैं जिनसे प्रभावित होकर लोगों की भीड़ जुटती भी है।

देश को स्वतन्त्रता हुए 67 वर्ष हो गये हैं और इस समय देश की स्थिति इतनी विचित्र है कि धनपतियों की संख्या बढ़ने के साथ गरीबी के नीचे रहने वालों की संख्या उनसे कई गुना बढ़ी है। आर्थिक उदारीकरण होने के बाद तो यह स्थिति हो गयी है कि उच्च मध्यम वर्ग अमीरों में आ गया तो गरीब लोग अब गरीबी की रेखा के नीचे पहुंच गये हैं। आंकड़े बताते हैं कि देश में करोड़पतियों की संख्या में बढ़ोतरी हो गयी है तो समाज के हालत बता रहे हैं कि रोड़पति उससे कई गुना बढ़े हैं। इसी कारण विकास दर के साथ अपराध दर भी तेजी से बढ़ी है। आधुनिक तकनीकी जहाँ विकास में योगदान दे रही है तो उसके सहारे अपराध के नये नये तरीके भी इजाद हो गये हैं। आज हमारा देश आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विरोधाभासों के बीच सांसें ले रहा है। स्थिति यह है कि अनेक लोग तो 67 वर्ष पूर्व मिली आजादी पर ही सवाल उठा रहे हैं। अनेक लोग तो अब दूसरा स्वतन्त्रता संग्राम प्रारम्भ करने की आवश्यकता बता रहे हैं। मातृभूमि की रक्षा के नारे की गूंज इतनी तेज हो उठती है कि सारा देश खड़ा हो जाता है। तब ऐसा लगता है कि देश में बदलाव की बयार बहने वाली है, पर बाद में ऐसा होता कुछ नहीं है। वजह साफ है कि राष्ट्र या मातृभूमि की रक्षा नारों से नहीं होती, न ही तलवारें लहराने या हवा में गोलियाँ चलाने से शत्रु परास्त होते हैं ।• - आचार्य डॉ. संजयदेव (दिव्ययुग - अगस्त 2014)

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