ओ3म् उद्यन्नद्य मित्रमह आरोहन्नुत्तरां दिवम्।
हृद्रोगं मम सूर्य हरिमाणं च नाशय॥ ऋग्वेद 1.50.11॥
शब्दार्थ- (मित्रमह:) हे मित्र के समान सत्कार योग्य ! (सूर्य) सूर्य (उद्यन्) उदय होता हुआ और (उत्तरां दिवम् आरोहन्) उत्तरोत्तर आकाश में चढता हुआ (मम) मेरे (हृद्रोगम्) हृदय के रोग को और (हरिमाणम्) पीलिया रोग को (अद्य) आज ही (नाशय) नष्ट कर दे।
भावार्थ- आज संसार में नाना प्रकार की चिकित्सा-पद्धतियाँ प्रचलित हैं- एलोपैथिक, होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक, बायोकैमिक आदि। इसी प्रकार जल-चिकित्सा, सूर्य-चिकित्सा, मिट्टी द्वारा चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा, और भी न जाने कौन-कौन-सी चिकित्साएँ हैं। इन सभी चिकित्साओं का मूल स्रोत, उद्गम-स्थान वेद है। संसार की सभी पद्धतियाँ वेद से ही निकली हैं। प्रस्तुत मन्त्र में सूर्य-चिकित्सा का स्पष्ट वर्णन है।
1. उदय होकर आकाश में चढता हुआ सूर्य हृदय-सम्बन्धी रोगों को दूर करता है।
2. सूर्य-चिकित्सा द्वारा पीलिया रोग भी नष्ट हो जाता है।
वेद में अन्यत्र अनेक मन्त्र हैं जिनमें सूर्य-चिकित्सा द्वारा अनेक रोगों के नष्ट होने का वर्णन मिलता है। अथर्ववेद 5.23.6 के अनुसार सूर्य दिखाई देने वाले और दिखाई न देने वाले रोग-कीटाणुओं को नष्ट कर देता है। अथर्ववेद 9.8.22 के अनुसार सूर्य सिर के रोगों को दूर कर देता है। - स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती (दिव्ययुग- अक्टूबर 2014)
Solar Therapy | Veda Saurabh | Like a Friend | Hospitable | Heart Diseases | Naturopathy | Clear Description | Jaundice Disease | Swami Jagadishwaranand Saraswati | News Portal - Divyayug News Paper, Current Articles & Magazine Mogra Badshahpur - Kadayanallur - Hoshiarpur | दिव्ययुग | दिव्य युग |