विशेष :

उस पर श्रद्धा करो

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Reverence Him

ओ3म् यं स्मा पृच्छन्ति कुह सेति घोरमुतेमाहुर्नैषो अस्तीत्येनम् ।
सो अर्य: पुष्टीर्विज इवामिनाति श्रदस्मै धत्त स जनास इन्द्र: ॥ ऋग्वेद 2.12.5॥
ऋषि: गृत्समद:॥ देवता इन्द्र:॥ छन्द: त्रिष्टुप्॥

विनय- मनुष्य जब गम्भीरतापूर्वक उस परमेश्‍वर की सत्ता पर विचार करने लगते हैं तो उनमें से कोई पूछते हैं ‘वह ईश्‍वर कहाँ है‘ जिसने इस बड़े भोगदायक संसार में दु:ख, दर्द, मृत्यु आदि पैदा करके लोगों का रस भङ्ग कर रखा है। जो बड़े-बड़े दुष्टों का दलन करने वाला तथा अपने वज्र से पापों का संहार करने वाला कहा जाता है, उस घोर भयङ्कर ईश्‍वर के विषय में वे पूछते हैं कि ‘वह कहाँ है?‘ ‘हमें बताओ वह कहाँ है?‘ दूसरे कुछ भाई निश्‍चय ही कर लेते हैं कि ‘ईश्‍वर-वीश्‍वर कोई नहीं हैं।‘ ‘ईश्‍वर तो अब 20वीं शताब्दी में मर गया है‘-‘ईश्‍वर केवल अज्ञानियों के लिए है‘। परन्तु हे मनुष्यो ! जरा सावधानी से देखो ! सत्य को खोजो और इसे धारण करो ! देखो कि वे पुरुष जो अपनी समझ में प्रकृतिमय ईश्‍वरविहीन संसार में रहते हैं तथा जो इस जगत् में जिस किसी प्रकार सुखभोग करना ही अपना ध्येय समझते हैं और स्वभावत: विपरीतगामी होकर धर्म, दया आदि के सत्यमार्ग को तिरस्कृत कर निरन्तर अपनी पुष्टि की ही धुन में लगे रहते हैं अर्थात् धनसंग्रह, स्त्री, पुत्र, प्रतिष्ठा, प्रभाव आदि से अपने को समृद्ध और पुष्ट करते जाते हैं, उन ‘अरि‘ नामक स्वार्थी लोगों के सामने भी एक समय आता है जबकि उनका यह सांसारिक भोग का खड़ा किया हुआ सब महल एकदम न जाने कैसे गिर पड़ता है ! उनके जीवन में एक भूकम्प सा आता है, उन्हें एक जोर का धक्का लगता है। उनकी वह सब भौतिक-तुष्टि क्षण में मिट्टी हो जाती है, सब ठाठ गिर पड़ता है। उस समय बहुत बार उनका अभिमान नष्ट होता है और वे नम्र होते हैं। कल्याणकारी है वह धक्का, कल्याणकारी है उनका वह सर्वनाश, यदि वह उन्हें नम्र बनाता है और धन्य हैं वे पुरुष जिन्हें यह कल्याणकारी धक्का लगता है, क्योंकि वहीं पर प्रभु के दर्शन हो जाया करते हैं। हे मनुष्यो ! वह ईश्‍वर आँख से दीखने की वस्तु नहीं है, उसे तो श्रद्धा की आँख से देखो। जो मनुष्यों की बड़ी-बड़ी योजनाओं को पलक झपकने में बदल देता है, कुछ-का-कुछ कर देता है, जिसके आगे अल्पज्ञ मनुष्य का कुछ बस नहीं चलता, जरा उसे देखो, नम्र होकर उसे देखो, वही परमेश्‍वर है।

शब्दार्थ- यम्= जिस घोरम्=अद्भुत भयङ्कर वस्तु के विषय में पृच्छन्ति स्म=लोग प्रश्‍न किया करते हैं कि कुह: स: इति= ‘वह कहाँ है‘ उत ईं एनम्=और जिस इसके विषय में आहु:= बहुत-से कहा करते हैं कि न एष अस्ति इति= ‘वह है ही नहीं‘ स:=वही अर्य:=अरि के, विपरीतगामी स्वार्थी पुरुष के पुष्टी:=सब संसारिक समृद्धि, पुष्टि को विज: इव=भूकम्प की भाँति आमिनाति=विनष्ट कर देता है जनास:=हे मनुष्यो ! अस्मै श्रत् धत्त=इस परमेश्‍वर पर श्रद्धा करो स: इन्द्र:= वही परमैश्‍वर्यवान् परमेश्‍वर है। - आचार्य अभयदेव विद्यालंकार (दिव्ययुग - अक्टूबर 2014)

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