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सदाचार की महत्ता

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Sadachar Shiksha

मानव-जीवन में सदाचार की क्या महत्ता है ? इस प्रश्‍न के बारे में विचार-विमर्श करने से पूर्व यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम सदाचार को परिभाषित कर दिया जाए ।

आचरण की उज्ज्वलता को ही ‘सदाचार’ (सच्चरित्रता) कहते हैं। इस आचरण का ज्ञान हमारे व्यावहारिक जीवन से ही होने लगता है। भारतीय मनीषी महर्षि मनु ने मनुस्मृति में लिखा है कि-

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥
अर्थात् धर्म के दस लक्षण हैं- (1) धीरज (2) क्षमा (3) मन-नियन्त्रण (4) चोरी न करना (5) पवित्रता (6) इन्द्रिय-संयम (7) बुद्धि (8) विद्या (9) सत्य तथा (1) अक्रोध।
जिस व्यक्ति में ये विशेषताएँ होंगी, उसे ही सच्चे अर्थों में ‘सदाचारी’ (या सुजन) माना जाता है। इस प्रकार सज्जनता ‘सच्चिरित्रता’ का ही पर्याय है। जिस व्यक्ति में ये गुण नहीं होते, उसे चरित्रहीन तथा नीच कहा जाता है। चरित्रहीन का समाज में कोई स्थान नहीं होता। ‘सदाचार’ ही किसी व्यक्ति को आदर, यश तथा सुख प्रदान करने वाली एकमात्र ‘कुंजी’ है। भोगवादी कभी भी भारतीय संस्कृति को नहीं समझ सकता। विचारक श्री प्रेमस्वरूप गुप्त ने माना है कि- ’‘हर व्यक्ति का अलग-अलग गुण, स्वभाव और सोचने का ढंग होता है। इसे ही उसका चरित्र कहते हैं।’’ किसी व्यक्ति का चिन्तन उसकी सच्चरित्रता (या चरित्रहीनता) का परिचय देता है।

आज भारत समस्या-प्रधान देश है। आज हमारे देश में भाग्यवादियों एवं कर्महीनों की अधिकता है। मानसिक अपंगता किसी भी व्यक्ति को समस्या-प्रधान बना देती है। समस्या-प्रधान अपने जीवन में आगे नहीं बढ़ पाता। वह अपना विकास नहीं कर सकता। आज हमारे देश में नाना राष्ट्रीय (सामाजिक) समस्याएं पैदा कर दी गयी हैं। जैसे- जातिवाद, नारी-शोषण (भोगवाद), पुत्र की अभिलाषा (कोरा अन्धविश्‍वास), दहेज-प्रथा, मद्यपान, भ्रष्टाचार, अशिक्षा, गरीबी, जनसंख्या-विस्फोट तथा भक्ति सम्बम्धी अन्धविश्‍वास आदि। जो व्यक्ति भारत की राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान नहीं दे सकते, वे ‘सदाचारी’ नहीं हैं। जो व्यक्ति ‘राष्ट्र की अस्मिता’ से खेल रहे हैं तथा नाना समस्याएँ पैदा कर रहे हैं, वे ‘देशद्रोही’ (चरित्रहीन एवं संस्कारविहीन) माने जायेंगे। इस सन्दर्भ में भारत के पूर्व महामहिम राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा की यह मान्यता निरापद है कि- “ओछे चरित्र के लोग महान् राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकते।’’

आज भारत में राष्ट्रीय चरित्र के संकट की समस्या पैदा हो चुकी है। राष्ट्र के हर व्यक्ति का चरित्र राष्ट्रीय चरित्र का मूलाधार है। हर व्यक्ति को अपने आपको ‘सदाचारी’ बनाना चाहिए। सदाचारी का प्रभाव उसके सम्पर्क में आने वाले लोगों पर ही नहीं, वरन् समाज के बहुत बड़े भाग पर पड़ता है और उससे नैतिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय उत्थान सम्भव होता है। ऐसे सदाचारी पर कोई भी जाति या राष्ट्र गर्व के साथ अपना मस्तक ऊँचा कर सकता है।

आज शिक्षार्थियों को संस्कारवान बनाने की परम आवश्यकता है। संस्कार युक्त शिक्षा ही जीवन है। शिक्षार्थियों को ऐसी शिक्षा मिलनी चाहिए, जिसमें जीवन मूल्यों का समावेश हो। ये भारतीय जीवन मूल्य हैं- (1) सत्य (2) अहिंसा (3) समता (4) संयम (5) कर्मशीलता (6) अनुशासन (7) संयम (8) सदाचार (9) सहनशीलता (10) विनयशीलता (11) सादगी (12) ईमानदारी (13) धीरज तथा (14) सन्तोष।

आज जीवन के हर क्षेत्र में नैतिक शिक्षा की परम आवश्यकता है। नैतिकता से हमारा अभिप्राय है- मानवीय मूल्यों का सम्मान। नैतिक शिक्षा के बिना व्यक्ति अपना मानसिक विकास नहीं कर सकता, यह अटल सत्य है। गांधी जी की यह मान्यता निरापद है कि “सदाचार और निर्मल जीवन सच्ची शिक्षा के आधार हैं।’’ भारतीय मनीषी आचार्य चाणक्य ने सदाचार की वकालत करते हुए यह सही लिखा है कि- शीलं भूषयते कुलम्। इसका अभिप्राय यह है कि सदाचार कुल का अलंकरण है। जिस कुल के सदस्य सदाचारी होते हैं, वह कुल समाज में सुशोभित होता है और जिस कुल के सदस्य सदाचारी नहीं होते (संस्कारविहीन होते हैं), वह कुल समाज में कलंकित होता है। आइए! हम सब भारतीय मनीषी भर्तृहरि की इस मान्यता को ‘आचरण का विषय’ बनाएं- शीलं परं भूषणम्। - डॉ. महेशचन्द्र शर्मा, साहिबाबाद

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