आज के दिन हजारों वर्ष हुये, एक दम्भी का दम्भ टूटा था।
और मर्यादा पुरुष चंगुल से, आपदाओं के आज छूटा था॥
आज के दिन असत्य पर साथी, सत्य ने अन्त में विजय पाई।
धर्म का आज सिर हुआ ऊँचा, और मुँह की अधर्म ने खाई॥
आओ इस वर्तमान में साथी, अपने चहुं और दृष्टिपात करें।
राम-रावण की वृत्तियों पर कुछ, आओ सोचें जरा सी बात करें॥
सच तो यह है मरा नहीं रावण, सच तो यह है कभी मरा न था।
आसुरी वृत्तियों से मानव का, दानवी मन कभी भरा न था॥
घूमते आज भी कई रावण, सिर लिये दश नहीं लिए शत-शत।
बहुधा ऐसा प्रतीत होता है, राम कर देगा अपना मस्तक नत॥
रावणों ने विनाश करने को, आज सब अस्त्र-शस्त्र जोड़े हैं।
आज प्रभुताई रावणों की है, अधिक रावण हैं, राम थोड़े हैं॥
चहुं दिशाओें में धाक है इनकी, देखकर मन निराश होता है।
सांस रोके मनुष्य गिनता है, देखिये कब विनाश होता है॥
दानवी वृत्तियाँ ही ऐसी हैं, इनका कुछ रूप ही भयंकर है।
पर फिर भी राम है साथी, आदमी-आदमी में अन्तर है॥
सच तो यह है कि हम बनाते हैं, राम भी आप और रावण भी।
अपने मन की हैं वृत्तियां दोनों, एक निर्मल, तो दूसरी दम्भी॥
हमको इच्छित हैं राम तो आओ, आज हम एक काम कर डालें।
आसुरी वृत्तियाँ जलाकर सब, आज रावण को राम कर डालें॥ - विजय ‘अरूण’ नैरोबी
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