अलका की सिसकियों ने शेखर का हृदय बींध दिया। उसके अन्दर एक बलहीन क्रोध कसक रहा था। उसने अलका के गालों को सहलाया। अलका के आंसू किसी ऐसे लावे की तरह बह रहे थे जो लम्बे अरसे तक शात रहने के बाद अचानक फट से पड़े हों। दो साल से अलका अपनी सास के दिए हुए दुःखों का सामना कर रही थी। सास पुराने विचारों की महिला थी। अलका की हर बात पर वह उसे खरी-खोटी सुनाती बूढ़ी सास को उसका कोई भी काम अच्छा नहीं लगता था। अलका इन सब मुसीबतों को अग्नि परीक्षा समझ बहादुरी से सहन करती रही उसे यह आशा थी कि जो व्यवहार उसके साथ किया जा रहा है वह समय के साथ-साथ खत्म हो जायेगा और एक दिन उसकी सास इस नोकझोंक को व्यर्थ समझकर चुप हो जाएगी। अलका की ये आशा व्यर्थ सिद्ध हुई उसे मानसिक तौर पर जो कष्ट थे। वे अब सीमा को पार कर चुके थे। अन्त में उसने अपने पति को बूढ़ी सास के निर्दयता पूर्ण व्यवहार के बारे में बता दिया। शेखर इस कलह के बारे में पहले से ही जानता था उसका जीवन इन दो विपरीत धारणाओं वाली औरतों के कारण भयानक उलझन में पड़ गया था दोनों ही उसे प्रिय थीं। वह अपनी माँ का आदर करता था, जिसने उसे नौ महीने अपने पेट में रखा और जब इस संसार में आया तो उसका लालन-पालन किया, शेखर का पिता उसे उसकी माँ कि जिम्मेदारी पर छोड़कर चल बसा था।
उस समय शेखर पाँच साल का और उसकी बहन रीता तीन वर्ष की थी। उसकी माँ ने इस जिम्मेदारी को बड़ी अच्छी तरह निभाया, उसने दोनों को अच्छी शिक्षा दिलवाने के लिए बहुत मुसीबतें सहीं और बड़ी से बड़ी कुरबानी दी उसने शेखर के पिता द्वारा छोड़ी गई धन-सम्पत्ति से निर्वाह किया, उसने रीता का विवाह एक बड़ी कम्पनी अफसर से किया। उसे इस बात से हर्ष हुआ था कि बेटा अच्छी तरह जीवन बिता रहा है। शेखर के पास इतना सब कुछ उसकी माँ के ही कारण था। दूसरी ओर वह अपनी पत्नी के प्रति भी जिम्मेदारी महसूस करता था। उसने अग्नि के आगे कसम खाई थी कि वह उसकी रक्षा करेगा उसे प्रसन्न रखेगा और हर प्रकार का आराम देगा। अलका ने शिखर के दिल में अपने प्रति विश्वास बनाए रखा और हर मामले में उसका अनुसरण किया शेखर की प्रसन्नता के लिए ही उसने सास का क्रोध सहन करके एक अच्छा गृहस्थ बनाने की हर संभव कोशिश की। कुछ समय पहले से ही शेखर को इस विपत्ति के चिन्ह दिखाई दे रहे थे। अलका के धैर्य को देखकर उसे यह महसूस हो गया था कि यह किसी भी दिन तूफान का रूप धारण कर लेगा। उसे यह मालूम था कि उसकी माँ घर के कलह का कारण जानकर भी अपना रास्ता नहीं बदलेगी वह एक एसे रास्ते की खोज में था जिससे उसके मन और घर में भी शान्ति बनी रहे। लेकिन जिस बात का उसे डर था वही सच हुई अलका की सास गलतियाँ निकालने में बहुत तेज थी अब अलका में भी इतनी सहनशक्ति नहीं रह गई थी कि वह सास की व्यर्थ की बातों को सहन कर सके।
अलका अपना सिर शेखर के कन्धे पर लगाकर कच्चे तरह सुबकने लगी। शेखर ने उसका सिर अपने कन्धे से उठाया और कहा ‘अलका तुम्हारी परेशानियाँ जल्दी दूर हो जाएंगी। मैंने एक योजना बनाई है। मुझे कुछ समय दो माँ को यह ता नहीं कि वह क्या कर रही है। अगर मैं उन्हें सीधा जाकर कहूं तो वह गलत समझ बैठेगी उनसे सीधे बात करने की बजाय चतुराई से काम लेना है। मुझे विश्वास है कि मेरी योजना पूरी होने के बाद तुम मेरी माँ की बंदिश से मुक्त हो जाओगी।’ ‘ओह! शेखर इन हालात से मुझे बचाने के लिए कुछ भी करो अब मैं और ज्यादा सहन नहीं कर सकती। यदि मैंने अपनी इच्छाओं को दबाया तो मैं पागल हो जाऊँगी।’ अलका मैं तुम्हें भी प्यार करता हूँ। मैं अपनी माँ का भी आदर करता हूँ। मैं चाहता हूँ कि तुम दोनों शान्ति और स्नेह से रहो। मैंने माँ को खुश करने की बेहद कोशिश की लेकिन वह मुझसे नाराज ही दिखाई देती है। अलका कुछ समय के लिए संयम रखो मैं समस्या को अवश्य सुलझा दूंगा।’ उसने अपनी बहन रीता को एक खत लिखा खत में उसने सारी घटना बता दी थी और बहन से प्रार्थना की थी कि वह योजना को पूरा करने में उसकी सहायता करे।
कुछ दिन के बाद उसकी माँ को रीता का पत्र मिला जिसमें उसने माँ को अपने यहाँ आमन्त्रित किया था। यह खत इस प्रकार था। प्यारी माँ, यदि आप एक महीने मेरे साथ आकर रहें तो मुझे बहुत खुशी होगी। घर का काम करने में बहुत कठिनाई होती है। मेरी सास बहुत कठोर है। उन्होंने मुझ पर बंदिश लगा रखी हैं। इस व्यवहार को मैं आसानी से सहन नहीं कर सकती हर समय वह मुझमें गलतियाँ निकालती रहती हैं। इससे मेरा दिमाग बहुत परेशान रहता है। अगर आप कुछ दिन के लिए आ जाएँ तो मुझे कुछ धीरज और आराम मिल जाएगा, भैया और अलका भाभी को प्यार कहना। पत्र पढ़ने के तुरन्त बाद माँ ने शेखर से कहाँ मैं कल रीता के घर जाना चाहती हूँ बेचारी रीता। उसके साथ वह डायन बुरा बरताव करती है। मैंने अपनी लड़की के लिए इतना कुछ किया। उस बुढ़िया की इतनी हिम्मत कि वह रीता की गलतियाँ निकाले मैं उसे ठीक कर दूंगी। माँ मैं तुम्हारी सीट बुक करा दूंगा शेखर ने बिना दुःख प्रकट किए ही कहा सच तो यह है कि उसके चेहरे पर हलकी मुस्कान थी। रीता आँखों में आंसू लिए अपनी माँ से मिली माँ ने कहा रीता अब तू चिन्ता मत कर मैं जो हूँ। अब वह बुढ़िया मेरी उपस्थिति में तुझे परेशान नहीं करेगी। रीता की माँ जब उसकी सास से मिली तो शांत ही रही थीं तो उन्हें स्टील के बरतनों के गिरने की आवाज आई उसी समय रीता की सास चिल्लाई ओ बेवकूफ तेरी उंगलियां इतनी नाजुक हैं क्या तू यह सोचती है कि मेरे बेटे की इतनी अधिक कमाई है कि तू रोज बरतन तोड़ती रहे तू अपनी लापरवाही से उसे एक दिन जरूर भिखाई बना देगीअगर तूने अब बरतन तोड़ा तो तेरे हाथ तोड़ दूंगी। रीता सिसकियाँ भरने लगी और बोली कि वह आगे से इस बात का ध्यान रखा करेगी। उसकी माँ का खून क्रोध से खौलने लगा लेकिन उसने यह सोच कर कि उसे उनके बीच में दखल नहीं देना चाहिए। अपने आप पर काबू पा लिया पर जब सास बहू में झगड़ा होता रहा तो वह चुप न रह सकी एक दिन रीता की माँ ने उसकी सास से कहा ‘तुम रीता में हमेशा दोष क्यों निकालती हो वह अभी बच्ची है। तुम्हें उसके साथ शान्ति से व्यवहार करना चाहिए।’
रीता की सास इस पर बोली तुम्हारे समझाने की मुझे जरूरत नहीं अपनी बहू को समझाने की जिम्मेदारी मुझ पर है। तुम्हें मुझको उपदेश देने की कोई जरूरत नहीं जरा अपने को देखो कि तुम अपनी बहू के साथ कैसा व्यवहार करती हो।’ रीता की माँ को इस बात से धक्का लगा। वह खुद अलका के साथ बुरा व्यवहार करती थी। वह अब तक अंधी ही रही उसकी आँखें तब खुलीं जब किसी दूसरे ने उसकी अपनी लड़की को डांटा। वह सोचने लगती है कि रीता को डाँट पड़ती है तो मुझे इतना क्रोध आता है। जब किसी दूसरे की प्यारी बेटी दुःखी हो तो वह भी ऐसा ही महसूस न करती होगी। उसने अब तक अलका के साथ कठोर व्यवहार किया था। कभी भी उसकी इच्छाओं की चिन्ता नहीं की थी अलका की उमर रीता के ही बराबर थी। वह इन विचारों में डूब गई और बोली तुम ठीक कहती हो मुझे तुम्हारे बीच बोलने का कोई हक नहीं मैं पापिन हूँ मैं अपना स्वभाव बदलूंगी और अलका के साथ अच्छा व्यवहार करूँगी। मैं अभी जा रही हूँ। माँ लौट कर शेखर के पास आई तो बहुत बदली हुई थी अलका के काम में गलती खोजना तो जैसे वह भूल ही गई थी बल्कि वह अलका को प्यार करने लगी थी। वह उसके रोजाना के काम में हाथ बंटाती थी। उसके अच्छे कामों की प्रशंसा करती और उसकी गलतियों पर उसे प्यार से समझाती इस तबदीली ने घर में खुशहाली पैदा कर दी। रीता अपने भाई का यह पत्र पाकर बहुत प्रसन्न हुई। प्रिय बहिन, मैं तुम्हारा और तुम्हारी सास का बहुत आभारी हूँ कि तुमने यह नाटक रचकर माँ की आंखें खोल दी मैं तुम्हारी सास से क्षमा चाहता हूँ कि उन्हें मेरे लिए एक कर्कश स्त्री का अभिनय करना पड़ा। आज हमारे गृहस्थ में जो शान्ति का दिया जल रहा है वह तुम्हारे कारण ही है। रीता तुम्हारा और तुम्हारी सास का बहुत-बहुत धन्यवाद! तुम्हें, जीजा जी व बच्चों को आशीर्वाद। अपनी सास को नमस्ते कहना। आपका भाई, शेखर - प्रीतम दास बजाज
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