पण्डित महेन्द्रपाल आर्य से दिव्ययुग के सम्पादक वृजेन्द्रसिंह झाला की बातचीत
इन्दौर। आतंकवाद से मुकाबला करना है तो पहले उसकी जड़ को खोजना होगा। दरअसल, आतंकवाद मदरसों में जन्म लेता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इस्लामिक पढ़ाई ही आतंकवाद की पढ़ाई है।
यह कहना है वैदिक धर्म प्रचारक पण्डित महेन्द्र पाल आर्य का, जो किसी समय बागपत जिले के बरबाला गांव की मस्जिद के इमाम (मेहबूब अली) रह चुके हैं। कोलकाता के एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुए श्री आर्य कहते हैं कि मदरसों में ही आतंकवाद की शिक्षा दी जाती है। 1928 में रूस में भी मदरसों पर प्रतिबन्ध लगाया गया था। वे कहते हैं कि इस्लाम की मान्यता है कि जिस किसी देश में मुसलमान रहते हैं और उसका शासक यदि गैर मुस्लिम है तो उस जगह को वे दारूल हरब यानी रणक्षेत्र मानते हैं। उनका यही लक्ष्य होता है कि लड़-भिड़कर वहाँ के शासक को इस्लाम की दावत दी जाए। जिस तरह से ईरान, इराक, इण्डोनेशिया का इस्लामीकरण हुआ, उसी तरह की साजिश भारत में भी रची जा रही है।
बॉलीवुड की खान तिकड़ी पर निशाना साधते हुए पण्डित आर्य कहते हैं कि खान भाई लोग भी उसी दिशा में काम कर रहे हैं, जिससे कि भारत में एक ही दीन इस्लाम का बोलबाला हो। अन्यथा ऐसा क्या कारण था कि मुम्बई हमलों के दोषी याकूब का बचाव सलमान खान को करना पड़ा। हालांकि लाख विरोध के बावजूद याकूब को फांसी पर टांग दिया गया।
वे कहते हैं कि मैं होम्योपैथी जगत से हूँ और उपचार के लिए जरूरी है कि रोग के कारण को खोजा जाए। दूसरी ओर लोग आतंकवाद-आतंकवाद चिल्लाते तो खूब हैं मगर कारण की जड़ में कोई नहीं जाता। जब तक उसकी जड़ में नहीं जाएंगे उसका समाधान देना सम्भव ही नहीं है। फिलहाल दो तरह की बातें होती हैं, एक इस्लामी आतंकवाद और दूसरा भगवा आतंकवाद। मगर भगवा संन्यासियों का रंग है और संन्यासी कभी भी राष्ट्रद्रोही या आतंकवादी नहीं हो सकता। अत: भगवा आतंकवाद की संज्ञा देना कतई उचित नहीं है। बड़ी समस्या तो यह है कि आतंकवाद के मूल कारण को कोई नहीं ढूंढता।
क्या आतंकवाद रूपी इस समस्या का कोई हल है? पण्डित महेन्द्र पाल कहते हैं कि आतंकवाद से लड़ने का तरीका हमें इसराइल से सीखना होगा, जहाँ का हर नागरिक वहाँ की फौज है। उन्हें आतंकवाद से लड़ने का तरीका भी पता है और वे लड़ भी रहे हैं। हम सब भारतवासियों को भी सभी मत-मतान्तर से अलग हटकर आतंकवाद के खिलाफ इसराइल की तरह लड़ना होगा। जब तक हम आतंकवाद के खिलाफ कमर नहीं कसेंगे, तब तक आतंकवाद से छुटकारा नहीं पा सकते। कुरान की आयत नम्बर 65 का हवाला देते हुए महेन्द्र पाल जी कहते हैं कि इस आयत में अल्लाह ने जिक्र किया- ऐ नवी! तुम मुसलमानों को जोश दिलाओ काफिरों के खिलाफ वो लड़ें। सबर करने वाले 20 मुसलमान हो तो 100 काफिरों पर भारी पड़ोगे। 100 सबर करने वाले हैं तो 1000 पर भारी पड़ेंगे। वे कहते हैं कि जब अल्लाह ही प्रेरणा दे रहे हों तो मुसलमान पीछे क्यों रहेंगे भला। दरअसल, इस्लाम की मान्यता है कि इस्लाम को छोड़कर धरती पर कोई दीन नहीं है, धर्म नहीं है। उसी इस्लाम का विस्तार करना और गैर मुस्लिमों को इस्लाम की दावत देना इस्लाम वालों के लिए पहला काम है।
वे कहते हैं कि भारत ने पाकिस्तान का क्या बिगाड़ा है? बंटवारे के समय जमीन का हिस्सा दिया, पेट काटकर 55 करोड़ रुपए भी दिए और उन्होंने (पाक) उस पैसे से हथियार खरीदकर हमारे खिलाफ ही उनका प्रयोग किया। भारत के सहयोग से जिस बांग्लादेश को स्वतन्त्रता मिली उसी देश की बांग्लादेश राइफल्स के जवानों ने भारतीय सुरक्षाकर्मियों को बहुत ही अमानवीय तरीके से मारा। वे याकूब की फांसी रोकने की वकालत करने वालों को भी आड़े हाथों लेते हैं। वे कहते हैं कि जो लोग याकूब की फांसी के विरोध में बोल रहे थे, मुम्बई के नुकसान की भरपाई उनसे ही की जानी चाहिए। आर्य कहते हैं कि मानवता की रक्षा के लिए सभी भारतवासियों को एकजुट होना होगा। जब तक हम एकजुट नहीं होंगे, दुश्मनों से लड़ना सम्भव नहीं होगा। इसीलिए मैंने इसराइल का उदाहरण दिया।
आखिर ऐसा क्या हुआ कि महबूब अली को पण्डित महेन्द्र पाल आर्य बनना पड़ा? महेन्द्र पाल जी कहते हैं कि महर्षि दयानन्द की सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने के बाद मैंने सत्य को जाना और सत्य को जानने के बाद ही मैंने वैदिक धर्म अपनाया। इससे पहले मैं नहीं जानता था कि सत्य क्या है। सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने के बाद मैंने 25 मुस्लिम संस्थानों में सवाल लिखकर भेजे- ‘‘मैं कौन कह रहा हूँ मुझे न देखें, मैं क्या कह रहा हूँ इस पर विचार करें’‘। मगर मुझे मेरे सवालों का कोई जवाब नहीं मिला। मैंने इन्हें कयामत तक का समय दिया है। मैं नहीं जानता था कि धर्म क्या है, मजहब क्या। सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने के बाद मैंने सच्चाई को जाना। 1983 में मैं बरवाला गांव की बड़ी मस्जिद में इमाम था। तब मैंने कहा कि मैं धर्म नहीं समाज बदल रहा हूँ। धर्म बदला जाना सम्भव नहीं। मनुष्य मात्र के लिए धर्म एक ही है। धर्म कई नहीं हो सकते। धर्म तो एक ही होता है। मुस्लिम समाज अन्धविश्वासी लोगों का समाज है, जबकि आर्यसमाज पढ़े लिखे लोगों का समाज है।
धर्म क्या है? : पण्डित आर्य कहते हैं कि धर्म मनुष्य के लिए एक ही होता है। जिस तरह सूर्य प्रकाश देने में किसी से भेदभाव नहीं करता। हिन्दू, मुस्लिम, जैन, सिख सबको बराबर प्रकाश देता है। वैसे ही धर्म किसी के साथ भेदभाव नहीं करता है। धर्म का अर्थ है धारण करना अर्थात जिसको धारण किया जाए। माँ को माँ कहना-जानना-मानना धर्म है, पिता को पिता मानना धर्म है। हर इन्सान यह जानता है। धर्म अलग नहीं है। मगर इस्लाम कहता है कि एक ही दीन है और वह है इस्लाम। गैर मुस्लिमों को जीने का हक नहीं।
एक सवाल के जवाब में वे कहते हैं कि इस्लाम प्रेम कहाँ सिखाता है? दुनिया में शिया सुन्नी को मार रहा है, सुन्नी शिया को मार रहा है। क्या यह प्रेम सिखाया जा रहा है? अल्लाह ने मुसलमानों को ताकीद किया है आयत नम्बर 28, आयत नम्बर 144, आयत नम्बर 57 देखिए। मुसलमान मुसलमानों को छोड़कर काफिरों को दिल और जुबान से दोस्त मत मनाओ। यदि ऐसा करोगे तो मैं तुम्हें अपना दोस्त नहीं बनाऊंगा, जब अल्लाह कह रहा है कि गैर मुस्लिमों से दोस्ती न रखो, तब कोई भी मुसलमान अल्लाह से दोस्ती तोड़ना नहीं चाहेगा। अल्लाह और मोहम्मद से दोस्ती रखने का नाम ही इस्लाम है। बुनियाद भी वही है। मुसलमान कभी भी राष्ट्रभक्त नहीं हो सकता।
धर्मान्तरण के मुद्दे पर पण्डित महेन्द्र पाल आर्य कहते हैं कि एक राष्ट्रद्रोही को राष्ट्रभक्त बनाने का काम धर्म परिवर्तन है। वे कहते हैं कि मैं 15000 से ज्यादा ईसाई और मुसलमानों की हिन्दु धर्म में वापसी करा चुका हूँ। साथ ही लव जिहाद का शिकार बनीं 600 लड़कियों को मुक्त करवा चुका हूँ। तथाकथित हिन्दूवादियों पर निशाना साधते हुए पण्डित आर्य कहते हैं कि कुछ लोग तो सिर्फ ढफली बजा रहे हैं। सही काम नहीं कर रहे हैं।
जाकिर नाईक के मुद्दे पर पण्डित महेन्द्र पाल कहते हैं कि जाकिर की दुकानदारी मैंने तीन साल से भारत में बन्द कर दी है। जो जाकिर नाईक कलमा सही नहीं पढ़ सकता। अशहदो को अस्सदो बोलता है। शीन को सीन पढ़ता है, वह औरों को क्या मुसलमान क्या बनाएगा। वह तो मदारी है। मैं तो उसे मुन्नाभाई एमबीबीएस बोलता हूँ। उसने मुझे तीन बार डिबेट के लिए समय दिया, तीनों बार भाग गया।
वे कहते हैं कि हिन्दू कभी राष्ट्रद्रोही नहीं हो सकता। उसकी नस-नस में राष्ट्रवाद भरा हुआ है। हिन्दुओं के लिए भारत छोड़कर कहीं जगह नहीं मिल सकती। एकमात्र हिन्दू राष्ट्रनेपाल को भी साजिश कर धर्मनिरपेक्ष बना दिया गया। पाकिस्तान, अरब मुसलमानों के लिए फिक्स डिपाजिट हैं। हिन्दुओं से कहा जाए कि भारत छोड़ो, तो उसके लिए समुद्र में डूबने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। दूसरी ओर वे कहते हैं कि मुसलमान कभी राष्ट्रभक्त नहीं हो सकता। यदि वह राष्ट्रभक्त बना, तो उसके लिए इस्लाम में कोई जगह नहीं होगी। (दिव्ययुग- नवम्बर 2015)
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