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कल्पना नहीं है अखण्ड भारत

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Akand Bharat

आचार्यश्री धर्मेन्द्र महाराज जी से वृजेन्द्रसिंह झाला की बातचीत
शीर्ष हिन्दू नेता और विख्यात धर्मगुरु पंचखण्ड पीठाधीश्‍वर आचार्यश्री धर्मेन्द्र जी महाराज का मानना है कि अखण्ड भारत कोरी कल्पना नहीं है, बस इस दिशा में दृढ़ इच्छाशक्ति से प्रयास करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जब जर्मनी एक हो सकता है, तो अखण्ड भारत भी एक हकीकत बन सकता है । अपने इन्दौर प्रवास के समय दिनांक 28 सितम्बर 2009 (विजयादशमी) को दिव्ययुग कार्यालय में पधारे आचार्यश्री ने विभिन्न मुद्दों पर खुलकर बातचीत की। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य की बात यह है कि भाजपा के शीर्ष पुरुष भी मानते हैं कि अखण्ड भारत एक ख्वाव है, एक खयाल है, एक कल्पना है। लेकिन यह बिल्कुल गलत बात है। पश्‍चिम जर्मनी और पूर्व जर्मनी दो भागों में विभक्त थे और उस समय जर्मनी की आबादी डेढ़ करोड़ से ज्यादा नहीं थी। जर्मनी के लिए उस समय 60 लाख यहूदी समस्या बन गए थे, जिस प्रकार हमारे लिए मुसलमान, ईसाई और घुसपैठिए बने हुए हैं। हालाँकि उस समय यहूदियों के साथ जो हुआ वह उचित नहीं था।

आचार्यश्री ने कहा कि भारत में जो पाकिस्तानपरस्त हैं, अरबपरस्त हैं, उनको धकेला जाना पूर्ण सम्भव है। हममें आत्मसंकल्प होना चाहिए, स्वाभिमान होना चाहिए, दृढ़ निश्‍चय होना चाहिए। जब भारत की विजय वाहिनियाँ सफाई अभियान शुरू करेंगी तो जितने भी भारत विरोधी हैं, देश के शत्रु हैं, हम उन्हें हिन्दुकुश की सीमा के बाहर धकेल देंगे। उसके बाद संसार के मानवतावादी आएँ और उन्हें पाले-पोसें। अरब में बहुत जमीन है। दस-बीस करोड़ लोग और भी वहाँ बस सकते हैं। वहाँ वे खजूर खाएँ, धूल फाँकें, ऊँट की कूबड़ पर बैठें, काम करें तथा अपने होलीलैंड को और पवित्र बनाएँ।

हिन्दुत्व को परिभाषित करते हुए आचार्यश्री धर्मेन्द्र जी महाराज ने कहा कि विश्‍व वात्सल्यी करुणा हिन्दुत्व की मूल प्रकृति है, उसका स्वभाव है और अग्नि के समान तेजस्विता और दुर्दमनीयता, अजेयता और संसार को अभय देने की क्षमता ही उसका कर्म है। इससे सम्पन्न होना प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है। और इसके लिए आत्मनिर्भर होना, सशक्त होना, ऊर्जासम्पन्न होना तथा अपने राष्ट्र को सार्वभौम प्रभुतासम्पन्न बनाना एवं उसको अखण्ड बनाना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। जिस प्रकार भगवान तिलक कहते थे कि स्वतन्त्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, उसी तरह मैं कहता हूँ कि अपनी मातृभूमि हिन्दुस्थान में अखण्ड हिन्दू साम्राज्य की स्थापना करना हिन्दुओं का जन्मसिद्ध अधिकार है।

जिन्ना मामले में जसवन्तसिंह के भाजपा से निष्कासन पर आचार्यश्री ने कहा कि जसवन्त सिंह का अपराध बड़ा था। आडवाणी जी ने भी जिन्ना की मजार पर माथा टेककर बहुत बड़ी भूल की थी। जिन्ना साम्प्रदायिकता का सबसे बड़ा प्रेत था, जिसका अपराध कभी खत्म नहीं हो सकता। आचार्यश्री ने कहा कि आडवाणी जी अब अप्रासंगिक हो गए हैं। उन्हें अब राजनीति से रिटायर होकर फिल्मों पर किताबें लिखना चाहिए। उनका प्रिय विषय भी यही है। वे राजनीति पर न ही लिखें, तो उचित होगा।

भाजपा के भविष्य पर चर्चा करते उन्होंने कहा कि परींडे से उतरी हाण्डी (मटका) फिर नहीं चढ़ती। देश को चितकबरी नीति और चितकबरे झण्डे नहीं चाहिएं। सर्वकल्याणकारी और हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन की जरूरत है। यह दायित्व संघ, सन्त और समाज तीनों का है।

राम मन्दिर के मुद्दे पर आचार्यश्री ने कहा कि कोई भी पार्टी अयोध्या में राम मन्दिर बनाने को लेकर ईमानदार नहीं है। मुसलमानों की खुशामद करने में कोई भी पीछे नहीं है। उन्होंने कहा कि देश की चुनाव प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन होना चाहिए। विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होने चाहिएं तथा देशद्रोहियों को मताधिकार से वंचित किया जाना चाहिए ।

आतंकवाद, महँगाई, भ्रष्टाचार आदि समस्याओं के लिए केन्द्र की संप्रग सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए आचार्यश्री ने कहा कि इस्लाम, ईसाइयत, कम्युनिज्म, धर्मनिरपेक्षता और अंग्रेजियत भारत के पाँच बड़े शत्रु हैं। राष्ट्रवादी सरकार ही इन समस्याओं से निजात दिला सकती है। मिलावटखोरी, गलत निर्माण आदि को देशद्रोह बताते हुए उन्होंने कहा कि देशद्रोहियों को सार्वजनिक रूप से फाँसी पर लटका देना चाहिए। इससे समूचा देश सुधर जाएगा।

भारत में बढ़ती चीनी घुसपैठ पर पूर्व प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू को आड़े हाथों लेते हुए आचार्यश्री ने उन्हें इस बीमारी की जड़ बताया। उन्होंने कहा कि इस मामले में केन्द्र सरकार सीमा सुरक्षा की ओर ध्यान देने की बजाय आत्मविश्‍वासहीनता का परिचय दे रही है। हालाँकि उन्होंने कहा कि हमारी सेना संसार की सर्वश्रेष्ठ सेना है, जो चीन को करारा जवाब दे सकती है। उन्होंने कहा कि भारत को पाकिस्तान से राजनयिक सम्बन्ध तोड़ लेने चाहिएं, क्योंकि वह आतंकवादियों को संरक्षण दे रहा है। 

समलैंगिकता को विकृति बताते हुए आचार्यश्री धर्मेन्द्र जी ने कहा कि इसे सार्वजनिक रूप से बढ़ावा देना गलत है। इस अप्राकृतिक कृत्य के समर्थन में विजय जुलूस निकालना और इसे मानवाधिकार से जोड़ना बेशर्मी है। समलैंगिक विवाह का कड़े शब्दों में विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक प्राचीन सामाजिक विकृति है, इसे सभ्यता का जामा नहीं पहनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह ऐसा कृत्य है, जिसे पशु भी नहीं करते। सरकार को कानून बनाकर इस पर रोक लगानी चाहिए।

इस मुद्दे पर स्वामी रामदेव जी से सहमति जताते हुए आचार्यश्री ने कहा कि इस विकृति से पीड़ित लोगों का पुनर्वास होना चाहिए। हालाँकि उन्होंने इस बात से असहमति जताई कि प्राणायाम और योग से समलैंगिकता जैसी विकृति को दूर किया जा सकता है। उन्होंने अपनी बात के पक्ष में उदाहरण देते हुए कहा कि यदि ऐसा सम्भव होता तो फिल्म अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी (जो नियमित योग-प्राणायाम भी करती है) सार्वजनिक रूप से चुम्बन देकर उन्मुक्त यौनाचार को बढ़ावा नहीं देतीं।

आदि शंकराचार्य के वचन ’ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्या’ पर स्वामी रामदेव की टिप्पणी पर आचार्यश्री ने कहा कि किसी भी विषय पर टिप्पणी करने से पहले उसके परिणामों के बारे में सोचना चाहिए। व्यक्ति को अति आत्मविश्‍वासी नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि संसार क्षणभंगुर ही तो है। उन्होंने कहा कि हमें रामदेव जी इस टिप्पणी पर आपत्ति है कि ’’इस दर्शन से व्यक्ति निठल्ला होगा और इससे अकर्मण्यता को बढ़ावा मिलेगा, इससे लोग भाग्यवादी हो गए हैं।’’ यह बिल्कुल भी सही नहीं है। उन्होंने कहा कि राजस्थान और गुजरात जैसे धर्मनिष्ठ राज्यों से ही शीर्ष पुरुषार्थी लोग निकले हैं। बिड़ला, बाँगड़, डालमिया, धीरुभाई अम्बानी आदि शीर्ष व्यवसायी पुरुषों का सम्बन्ध इन्हीं राज्यों से है। इन्हीं दिग्गजों ने जीरो से हीरो बनने की सफल यात्रा की है। इस्पात किंग लक्ष्मीनिवास मित्तल का सम्बन्ध भी राजस्थान के शेखावाटी से है। बँटवारे के बाद पाकिस्तान से आए सभी लोग आज सम्पन्न होने के साथ धर्मनिष्ठ भी हैं। ये लोग कभी भाग्यवादी नहीं हुए। दूसरी ओर नास्तिक कम्युनिष्टों के पुरुषार्थी होने के उदाहरण कहीं नहीं मिलते।

उर्दू के विरोध सम्बन्धी प्रश्‍न पर आचार्यश्री ने कहा कि हमारा विरोध भाषा से नहीं बल्कि उसकी लिपि से है, जो कि अवैज्ञानिक तरीके से दाहिने से बाएँ तरफ कीड़े-मकोड़ों की तरह लिखी जाती है। उन्होंने कहा कि हम उस भाषा का विरोध कैसे कर सकते हैं, जिसका जन्म ही भारत में हुआ हो। फारसी भाषा भी संस्कृत की बेटी ही है। उर्दू को देवनागरी में ही लिखा जाना चाहिए।

अन्त में आचार्यश्री ने अपनी बातचीत कुछ इस अंदाज में समाप्त की-
हद-ए-गमे हस्ती से गुजर क्यों नहीं जाते,
जीना नहीं आता तो मर क्यों नहीं जाते,
मंजिल को पाना है तो तूफाँ भी मिलेंगे,
डरते हो तो कश्ती से उतर क्यों नहीं जाते।

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