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भारत में सत्ता परिवर्तन के निहितार्थ

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दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र भारत में दस बार सत्ता परिवर्तन हुआ है। अहम बात यह है कि एक लम्बे अन्तराल के बाद पूर्ण बहुमत की सरकार की केन्द्र में वापसी हुई है। साथ ही भारत के लोकतान्त्रिक इतिहास में पहली बार कोई गैर कांग्रेसी सरकार पूरे बहुमत के साथ सत्तारूढ़ हुई है। वर्षों से सत्ता में मौजूद कांग्रेस मात्र 44 सीटों पर सिमट गई और लगता नहीं कि कांग्रेस ने इस असफलता से कुछ सीख ली है।

इस चुनाव की सबसे बड़ी विशेषता यह भी रही कि मतदाताओं ने जाति और धर्म के नाम पर वोट मांगने वालों को पूरी तरह नकार दिया। केवल विकास के नाम पर नरेन्द्र मोदी और भाजपा को वोट दिया। चुनाव से पहले शाही इमाम अब्दुल्ला बुखारी से मिलने वाली सोनिया को लोगों ने नकारा तो जाति की राजनीति करने वाली मायावती और मुलायमसिंह को भी देश के लोगों ने अंगूठा दिखा दिया। लोगों ने एक अर्थशास्त्री के नेतृत्व में चलने वाली उस सरकार को भी नकार दिया, जिसने 100 दिन में महंगाई कम करने वादा किया था, लेकिन महंगाई नहीं हटी सरकार ही हट गई।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि नरेन्द्र मोदी केन्द्र में एक सशक्त नेतृत्व के रूप में उभरे हैं। उन्होंने चुनाव के दौरान लोगों से वादे भी काफी किए हैं। सपने भी दिखाए हैं। भाजपा ने महंगाई घटाने का वादा किया है, गंगा को साबरमती से भी स्वच्छ बनाने की घोषणा की है। धारा 370 हटाने के लिए तो बहस भी चल पड़ी है, तो विरोध भी शुरू हो गया है। राम मन्दिर निर्माण के लिए भी लोगों की उम्मीदें कुलांचे मार रही हैं। क्योंकि एनडीए सरकार के कार्यकाल में भाजपा ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया था कि हमारे पास पूर्ण बहुमत नहीं है। अब इस मु्द्दे पर भी बहाना बनाने का अब कोई कारण नहीं रह जाता।

हालांकि नरेन्द्र मोदी ने अपनी योजनाओं पर काम शुरू कर दिया है। साथ ही मन्त्रियों के लिए 100 दिन का एजेण्डा भी प्रस्तुत कर दिया है। अर्थात सधे हुए कदमों से काम की शुरुआत कर दी है। वे जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतरेंगे, यह तो आने वाला समय ही तय करेगा। लेकिन भारतवासियों को उनसे काफी आशाएं हैं। यदि वे लोगों की आशाओं को पूर्ण करने में सफल हुए तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि अन्य दलों को सत्ता में लौटने के लिए लम्बी प्रतीक्षा करनी होगी।• (दिव्ययुग - जुलाई 2014)