मस्तानिनाम्नीं दयितां गृहीत्वा रावः प्रविष्टो निज पुण्यपुर्याम्।
विलोक्य रत्नम् ह्यनवद्यमेतज् जनैः कृतं स्वागतमेव तस्य॥81॥
पुरा पुरोर्यत् पुरुहूत रूपम् संयोग-रम्या भुवि सोर्वशी च।
पुनर्हि रावेण सहात्र दिव्यं मस्तानिरूपं जनशंसितं तत् ॥82॥
संसारसारं प्रिययोगभक्तिरअध्यात्मयोगो मुरलीधरेऽपि।
किं ब्रह्मणः स्यात् सगुणं न रूपम् ? स प्रेमयोगोऽपि हि योगिगम्यः॥83॥
मस्तानि-नाम्ना ‘शनिवार-वाडा’ मध्ये हवेलीति महालयेऽस्मिन्।
श्रान्तस्य रावस्य सुखास्पदं तत् प्रियाधिवासः स्पृहणीय एव॥84॥
रावः स्वराज्यात् प्रददौ प्रियायै ‘लोणी’ तथा ‘केंटुर-पाबलाख्यान्’।
मस्तानि-वंशाय ददौ स्वराज्यात् ‘बान्दाख्य-राज्यं’ नृपछत्रसालः॥85॥
शत्रुञ्जयस्यास्य महेन्द्र-कान्तिः मस्तानि-रम्भा हृदये प्रविष्टा।
सूर्यप्रभा सर्वदिने चकास्ते रात्रौ तु सा चन्द्रगता विभाति॥86॥
मस्तानि-चित्ते प्रियवल्लभोऽयम् महान्तकोऽयं समरेऽरिभिश्च।
आप्तैश्च बन्धुः स सखेति मित्रैः एकोऽप्यनेकैर्बहुधा व्यलोकि॥87॥
जनेषु दाक्षिण्यगुणैरुदारैः सौन्दर्यमस्या द्विगुणीबभूव।
लक्ष्मीःस्थिता सौरभयुक्तपद्मे गुणादिरम्या कवितेव मान्या॥88॥
श्रीबाजिरावस्य गुणैरुदारैः सौन्दर्यमस्याः प्रगुणत्वमाप।
श्रियोऽधिवासात् शतपत्रकान्ति र्जातं तया राजगृहं च रम्यम्॥89॥
रूपं तदीयं ललना-ललाम भूतं न भूतं न भविष्यतीति।
तद्दर्शनोत्का मुदितास्तु पौरा अनर्घरत्नं प्रियमेव लोके॥90॥
हिन्दी भावार्थ
प्रिय पत्नी मस्तानी को लेकर बाजीराव ने पुणे नगर में बड़ी खुशी के साथ प्रवेश किया। पुणे की प्रजा ने भी उस महिला-रत्न को देखकर बाजीराव का स्वागत ही किया। (उन दोनों को देखकर प्रजा प्रसन्न हो गई) ॥81॥
प्राचीन समय में इन्द्र के रूप के समान रूप धारण करने वाले राजा पुरुरवा के साथ इस लोक में उर्वशी का संगम हुआ था। पुनः वही (पौरुष-स्त्री-सौन्दर्य का संगम) अर्थात् श्री बाजीराव और मस्तानी के मिलन की लोगों ने बहुत सराहना की। (दिव्य सौन्दर्य और लौकिक पौरुष का मिलन दुर्लभ होता है) ॥82॥
उस मस्तानी का बाजीराव के मिलन के रूप में संसार का सार बन रहा था और श्रीकृष्ण के प्रति उसकी दार्शनिक भक्ति थी। क्या ब्रह्म का सगुण रूप नहीं होता ? वह प्रेम का दार्शनिक भाव योगियों को ज्ञात हो सकता है। (मस्तानी की भक्ति सगुण थी। वह केवल ऐन्द्रिय आसक्ति नहीं थी) ॥83॥
‘शनिवार वाडा’ में मस्तानी के नाम की एक हवेली (मस्तानी महल नाम से) बाजीराव ने बनवाई। युद्ध आदि कार्यों से थके हुए बाजीराव के लिए वह (विश्रान्ति) का सुख देने वाला स्थान था। प्रिय व्यक्ति के साथ रहना वाञ्छनीय होता है ॥84॥
बाजीराव ने मस्तानी को अपने राज्य से लोणी, केंटूर तथा पाबल नाम के गाँव जागीर के रूप में दिये थे। और राजा छत्रसाल ने भी मस्तानी के वंशजों के लिए अपने बुन्देलखण्ड में स्थित राज्य से एक भाग बान्दा नामक राज्य प्रदान किया। (इससे स्पष्ट है कि मस्तानी राजकन्या थी) ॥85॥
टिप्पणी- आजकल राव-मस्तानी के वंशज बान्दा के नवाब हैं, जो इन्दौर में रहते हैं ।
शत्रुओं की पराजय करने वाले बाजीराव इन्द्र के समान तेजस्वी थे। मस्तानीरूपी रम्भा अप्सरा राव के हृदय में प्रविष्ट हो गई। दिन में सूर्य की प्रभा रहती है और रात्रि को वह चन्द्रमा में सुन्दर दिखाई देती है ॥86॥
मस्तानी के हृदय ने बाजीराव को प्रिय वल्लभ के रूप में, शत्रुओं ने मृत्यु के रूप में, सगे-सम्बंधियों ने भाई के रूप में तथा मित्रों ने सखा के रूप में देखा। वह एक ही अनेक लोगों को भिन्न-भिन्न रूपों में दिखाई दिये ॥87॥
मस्तानी का सौन्दर्य लोगों में दाक्षिण्य उदारता जैसे गुणों से दुगने रूप में बढ़ गया। लक्ष्मी का वास सुगंध से युक्त कमल में हुआ। गुण अलंकार आदि से जैसे कविता सुन्दर होती है, वैसे मस्तानी अपने गुणों से लोकप्रिय थी ॥88॥
श्री बाजीराव के उदार गुणों के कारण मस्तानी का सौन्दर्य द्विगुणित हुआ। जिस प्रकार लक्ष्मी के वास्तव्य से कमलपुष्प की शोभा होती है, उसी प्रकार मस्तानी के कारण श्री बाजीराव का वह महल रमणीय हो गया ॥89॥
मस्तानी जैसा सौन्दर्य न पहले हुआ और न भविष्य में होगा। उसे देखने के लिए उत्सुक पुण्यपुरी के लोग उसे देखकर प्रसन्न हुए। अमूल्य रत्न लोकप्रिय होता ही है ॥90॥ - डॉ. प्रभाकर नारायण कवठेकर (दिव्ययुग - मई 2008)
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