वायु प्रदूषण तथा जल प्रदूषण के साथ-साथ वैचारिक प्रदूषण भी आज हमारे लिए समस्या बना हुआ है। साहित्य, कला और संस्कृति के नाम पर ऐसे विचारों व कला का प्रस्तुतिकरण किया जा रहा है, जिससे युवा पीढ़ी संस्कारहीन तथा उच्छृंखल होती जा रही है। स्वाधीनता से पूर्व पाठ्य पुस्तको में बच्चों को नैतिक व धार्मिक संस्कार देने वाले महापुरुषों, ऋषि-मुनियों, वीर-वीरांगनाओं के जीवन चरित्र, पावन प्रसंगों का समावेश रहा करता था। बालक इनसे राष्ट्रभक्ति, समाजसेवा, नैतिकता की प्रेरणा लेकर संस्कारित होते थे। किन्तु स्वाधीनता के बाद सेक्युलरिज्म के नाम पर राम, कृष्ण, महाराणा प्रताप, शिवाजी, गुरु गोविन्दसिंह के जीवन के प्रसंग, राष्ट्र की प्रेरणा देने वाली कविताएं आदि पाठ्य पुस्तकों से हटा दिए गए। इसी कारण धर्मप्राण भारत की युवा पीढ़ी संस्कारहीन होने लगी। इसका परिणाम आज नैतिक मूल्यों के संकट रूप में भुगतना पड़ रहा है।
जो भारत कभी ‘जगदगुरु’ के रूप में पूरे संसार का मार्गदर्शन करता था, आज वह स्वयं तेजी से अधःपतन के गर्त में गिरता दिखाई दे रहा है। साहित्य के नाम पर अश्लील कहानियाँ एवं युवकों को उच्छृंखल बनने की प्रेरणा देने वाली सामग्री परोसी जा रही है। मीडिया ऐसे-ऐस सीरियल प्रसारित कर रहा है,जिन्हें देखकर युवा पीढ़ी मर्यादाहीन होती जा रही है।
ऐसी विषम परिस्थिति में कुछ बुद्धिजीवी आज भी भारतीय संस्कृति, धर्म और नैतिक मूल्यों का महत्व प्रदर्शित करने वाले लेख, निबंध व कविताएँ लिखने में सक्रिय हैं। इसी शृंखला में डॉ. मधु पोद्दार का नाम भी शामिल है। उनके लेखन का एकमात्र उद्देश्य दिग्भ्रमित युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति, धर्म व राष्ट्र के महत्व से अवगत कराना है।
मधु जी जहाँ देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में ‘संपादक के नाम पत्र’ स्तंभ में सामयिक समस्याओं पर सटीक टिप्पणियाँ प्रकाशित कराकर पूरे देश में ख्याति अर्जित की चुकी हैं, वहीं विभिन्न विषयों पर लिखे उनके लेख तथ्यपरक, नई-नई जानकारी देने वाले तथा संस्कारित करने वाले होते हैं।
‘जागो-भारत’ पुस्तक में विभिन्न विषयों पर प्रकाशित उनके महत्वपूर्ण लेखों को संकलित किया गया है। निश्चय ही इनसे पाठकों को प्रेरणा मिलेगी तथा जानकारी प्राप्त होगी। पुस्तक का कागज व छपाई उत्तम है। - शिवकुमार गोयल
The India which once guided the whole world in the form of 'Jagadguru', today itself is increasingly seen falling into the pit of degeneration. In the name of literature, pornographic stories and materials encouraging youths to become disorderly are being served. The media is broadcasting such serials, seeing that the younger generation is becoming disrespectful.
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