विशेष :

क्रान्तिकारियों के प्रेरणास्रोत - श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा

User Rating: 0 / 5

Star InactiveStar InactiveStar InactiveStar InactiveStar Inactive
 

The inspiration of revolutionaries

उन्नीसवीं शताब्दी में राष्ट्रीय जागरण के अग्रदूत युगद्रष्टा महर्षि दयानन्द ने अपने प्रखर, तेजस्वी एवं क्रान्तिकारी विचारों के लिये वेदों से प्रेरणा ग्रहण की। जिन वेदों ने ‘अदीना स्याम शरदः शतं’ कहकर सौ वर्ष पर्यन्त मनुष्य को अदीन एवं स्वाधीन होकर जीवन धारण करने का आदेश किया, उनका अनुयायी भला देश के स्वातन्त्र्य संग्राम से किस प्रकार विमुख रह सकता था। स्वातन्त्र्य की अर्चना के मन्त्रद्रष्टा युग प्रवर्तक महर्षि दयानन्द के अनुयायियों ने स्वतन्त्रता संग्राम में अहिंसात्मक ढंग से सत्याग्रह व सशस्त्र क्रान्ति के माध्यम से बढ़-चढ़कर भाग लिया। यही कारण है कि योगी अरविन्द ने महर्षि दयानन्द के राष्ट्रीय भावों का मूल्यांकन करते हुए लिखा- “उनमें राष्ट्रीय भावना थी और उन्होंने उस भावना को एक आत्मानुभूति का रूप देकर उसे ज्योर्तिमय बना दिया।’’

वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द के परम शिष्य श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा क्रान्तिकारी गतिविधियों के जनक माने गए हैं। श्यामजी की विलक्षण प्रतिभा तथा संस्कृत साहित्य में उनकी अपूर्व गति को लक्ष्य में रखकर महर्षि दयानन्द ने उन्हें इंग्लैण्ड जाकर आक्सफोर्ड विश्‍वविद्यालय में संस्कृत का प्राध्यापक पद स्वीकार कर लेने की प्रेरणा दी थी। कालान्तर में वे पुनः भारत आए, परन्तु राजनैतिक गतिविधियों के अनुकूल वातावरण न देखकर पुनः ब्रिटेन चले गए। श्यामजीकृष्ण वर्मा ने क्रान्तिकारी संगठन का जो बीजारोपण किया वह हजारों युवकों के त्याग और बलिदान से पल्लवित और पुष्पित होने लगा।

क्रान्तिकारी विचारधारा के पुरोधा श्यामजीकृष्ण वर्मा का जन्म 4 अक्टूबर 1857 को माण्डवी (गुजरात) में हुआ। 1857 का वर्ष इतिहास में भारत के प्रथम स्वातन्त्र्य समर के नाम से अविस्मरणीय है। वर्मा जी की शिक्षा-दीक्षा मुम्बई में हुई। उन्होंने उच्च आधुनिक शिक्षा एवं संस्कृत का असाधारण ज्ञान व मेधावी छात्र होने के कारण मुम्बई में लोकप्रिय समाज सुधारक के रूप में ख्याति अर्जित की थी। 1875 ई. में युगद्रष्टा महर्षि दयानन्द सरस्वती मुम्बई पधारे तब उनके चिन्तन से अत्यधिक प्रभावित होकर श्यामजी कृष्ण वर्मा उनके परम शिष्य बन गए। 1879 में महर्षि दयानन्द के कथन पर ही आप इंग्लैण्ड पहुंचे। वहाँ संस्कृत एवं अन्य प्राच्य भाषाओं के प्रकाण्ड विद्वान के रूप में आप माने जाने लगे। वहाँ बुद्धिजीवियों-राजनीतिज्ञों में आप बुद्धिचातुर्य व असाधारण सूझबूझ के कारण काफी लोकप्रिय हो गए। आपने वहाँ के राजनीतिक वातावरण का गहनता से अध्ययन किया। भारत के सन्दर्भ में आपने ये निष्कर्ष निकाले-

1. स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिये अंग्रेजी साम्राज्य से संघर्ष अनिवार्य है।
2. सांस्कृतिक पुनरुत्थान के द्वारा राष्ट्रवाद के चिन्तन को जागृत किया जा सकता है।
3. रजवाड़ों के विचारों में परिवर्तन लाना आवश्यक है।

सांस्कृतिक पुनरुत्थान का कार्य महर्षि दयानन्द सरस्वती ने आरम्भ किया था। बड़ौदा, कोल्हापुर व राजस्थान के रजवाड़े स्वामी जी के सुधार कार्यों में सहयोग दे रहे थे। ये शुभ संकेत थे। 1879 से 1885 तक इंग्लैण्ड के प्रवास के दौरान क्रान्तिपुत्र श्यामजी कृष्ण वर्मा ने अपने आपको राष्ट्रहित में पूरी तरह समर्पित रखा और कानून की भी पढ़ाई पूरी कर बैरिस्टर बने। 1885 ई. में आप भारत लौटे। उन दिनों सांस्कृतिक जागरण के माध्यम से राष्ट्रवाद की भावना भारतीय जनमानस में उभरने लगी थी। इण्डियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना हो चुकी थी। आप 1885 से 1897 तक भारत में रहे। इस अवधि में आप रतलाम (मध्यप्रदेश), मेवाड़ (राजस्थान), जूनागढ (गुजरात) में दीवान बने। अजमेर नगर पालिका के गैरसरकारी अध्यक्ष भी बने। भारत में औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करने के विचार से राजस्थान काटन मिल, प्रताप काटन मिल आदि कारखानों की स्थापना की। दीवान के रूप में श्यामजीकृष्ण वर्मा ने राष्ट्रवादी समाचार पत्रों ऐर प्रचारकों को भारी अनुदान दिया। भारतीय रजवाड़ों की स्थिति का जायजा लेकर ‘स्वाधीनता संग्राम’ की रूपरेखा तैयार की। इन्हीं कार्यकलापों की भनक अंग्रेज अधिकारियों तक भी पहुँची।

1897 में आप पुनः विदेश गए, लन्दन में रहकर श्यामजी कृष्ण वर्मा ने भारतीय स्नातकों को संगठित किया। इन्हीं के प्रयत्नों से स्वातन्त्र्यवीर सावरकर, लाला हरदयाल, मैडम कामा, क्रान्तिवीर मदनलाल ढींगरा, वीरेन्द्र चट्टोपाध्याय सरीखे महान देशभक्त पारस्परिक सम्पर्क में आए। आपने लन्दन में इण्डिया हाउस की स्थापना भी की। 1897 से 1907 में आपकी गतिविधियों में बड़ी सक्रियता रही। शेर की मान्द में घुसकर अदम्य साहस का परिचय देने में पूरे इतिहास में आपका कोई सानी नहीं मिलता। देश में चल रहे स्वराज्य आन्दोलन और क्रान्ति के प्रति उनका भावनात्मक लगाव अन्तहीन था। वे अपनी मातृभूमि के सेवा के लिए सदैव सर्वस्व होम करने के लिए तैयार रहते थे। 1905 में लन्दन में भारतीय गृह नियम सोसायटी (इण्डियन होम रूल सोसायटी) गठित की। अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए आपने प्रचार सभाओं के माध्यम से लोगों को एकसूत्र में पिरोना आरम्भ किया। वर्मा जी ने बहुत जल्द ही छह छात्रवृत्तियों की घोषणा की। इनमें एक छात्रवृत्ति देने के जिम्मेदारी विनायक दामोदर सावरकर ने उठाई।

इण्डिया हाउस में एकत्र हुए भारतीय युवकों में सावरकर सबसे अधिक प्रभावी व सक्रिय थे। उन्होंने बहुत जल्दी ही अभिनव भारत समाज के नाम से भारत में एक गोपनीय सोसायटी का भी गठन किया। वीर सावरकर से प्रभावित होने वाले युवकों में मदनलाल ढींगरा भी थे। उन्होंने भारत के सेक्रेटरी सर विलियम कर्नल वायली के ए.डी.सी. की अपनी नौकरी छोड़ देने का निश्‍चय किया। उन्होंने लन्दन में भारतीय छात्रों की गतिविधियों का पता लगाना शुरू किया। भारत में उस द्वारा किए गए अत्याचारों का पुरस्कार देने के लिए हो रही एक जुलाई 1909 को नेशनल इण्डियन एसोसिएशन की एक बैठक में मदनलाल ढींगरा ने उसे गोली से उड़ा दिया। विदेशी भूमि पर शहादत को प्राप्त करने वाला भारत माता का यह पहला सपूत था। श्यामजी कृष्ण वर्मा भी सरकारी दमन का मुंहतोड़ जवाब देने वाले मदनलाल ढींगरा सरीखे युवकों की प्रशंसा करते थे।

राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम चल ही रहा था कि प्रथम विश्‍वयुद्ध (1914-18 ई. में) शुरू हो गया। श्यामजी कृष्ण वर्मा भी अंग्रेजी के शत्रु जर्मनी से इस आजादी की लड़ाई में सहयोग लेने के इच्छुक थे। गदर पार्टी ने थाईलैण्ड और बर्मा के मार्ग से भारत पर आक्रमण का प्रयत्न किया। थोड़ी बहुत सफलता मिली भी। परन्तु जर्मनी के पराजित होने पर ये सब प्रयत्न भी असफल हो गए। 1914 ई. में लोकमान्य तिलक जेल से रिहा हुए। उन्होंने होमरूल आन्दोलन फिर से संगठित किया और दस वर्षों में अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ों को उखाड़ फेंकने की योजना बनाई। मगर 1 अगस्त 1920 को लोकमान्य तिलक इस संसार से विदा हो गए। अदम्य साहस के धनी श्यामजीकृष्ण वर्मा भारत को मुक्त कराने के संकल्प से विचलित नहीं हुए। एक ओर उन्होंने महात्मा गान्धी के असहयोग आन्दोलन का समर्थन किया तो दूसरी ओर अमेरिका के राष्ट्रपति विलसन और विश्‍व लीग से भारत की स्वतन्त्रता के लिए अनुरोध किया। मातृभूमि से दूर, रोम-रोम राष्ट्रहित को समर्पित, राष्ट्रभक्ति के धधकते ज्वालामुखी श्यामजीकृष्ण वर्मा 31 मार्च 1930 को गोवा में अपने प्राण त्याग गये। सच तो यह है कि महर्षि दयानन्द के परम भक्त श्यामजीकृष्ण वर्मा के व्यक्तित्व व कृतित्व का और राष्ट्रीय आन्दोलन में इनके भारी सहयोग का मूल्यांकन शब्दों से नहीं किया जा सकता। शायद ऐसे ही परम देशभक्तों के लिए राष्ट्रकवि दिनकर की लेखनी पुकार उठी थीः- कलम तू उनकी जय बोल। - नरेन्द्र अवस्थी

The Inspiration of Revolutionaries | Forerunner of National Awakening | Yug Seceptor Maharishi Dayanand | Shri Shyamji Krishna Verma | Radiant and Revolutionary Ideas | Swarajya Movement and Revolution | Cooperation in the Fight for Independence | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Mahona - Vellore - Etawah | News Portal - Divyayug News Paper, Current Articles & Magazine Mahrajganj - Keezhapavur - Faizabad | दिव्ययुग | दिव्य युग