महान क्रान्तिकारी तथा वैदिक विद्वान भाई परमानन्द जी उन दिनों भारत की स्वाधीनता के पक्ष में अन्तरराष्ट्रीय जन-जागृति के उद्देश्य से अमेरिका गए हुए थे। अमेरिका के एक विद्वान भारत की स्वाधीनता के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने भाई जी की विद्वत्ता से प्रभावित होकर उन्हें अपने निवास स्थान पर ठहराया। वे उनसे प्रतिदिन वैदिक ग्रन्थों का अध्ययन किया करते थे। भाई जी लिखित ‘भारत का इतिहास‘ ग्रन्थ का उन्होंने बाद में अंग्रेजी में अनुवाद किया था।
भाई जी उन अमेरिकी सज्जन के बच्चों को हिन्दी तथा संस्कृत पढाया करते थे। उनके पुत्र-पुत्रियाँ भाई जी के अथाह ज्ञान से अत्यधिक प्रभावित थे।
एक दिन भाई परमानन्द जी के नाम से भारत से आया पत्र लेकर पोस्टमैन वहाँ पहुंचा। परिवार का बच्चा वहीं बैठा हुआ था। भाई जी ने जैसे ही लिफाफा खोला कि उसमें से निकाले गए पत्र को देखकर आश्चर्य में बोला, ‘‘दादा जी, यह पत्र तो मेरी भाषा अंग्रेजी में है। क्या आपके देश भारत की अपनी कोई भाषा नहीं है।‘‘ एक बच्चे के शब्द सुनकर भाई जी स्तब्ध रह गए। उन्होंने लाहौर के अपने मित्र को उसी समय पत्र लिखा, जिसमें इस घटना की चर्चा करते हुए भविष्य में हिन्दी में ही पत्र लखने का आदेश दिया। - शिवकुमार गोयल (दिव्ययुग- अगस्त 2015)
An American scholar was a strong supporter of India's independence. He was impressed by Bhai ji's scholarship and placed him at his place of residence. He used to study Vedic texts daily from them. He later translated the book 'History of India' written by Bhai Ji into English.
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