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क्या अनुच्छेद 370 का समर्थन देशद्रोह नही!

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Article 370

रास्ते को भी दोष दे, आंख भी कर लाल। चप्पल में जो कीलें हैं, पहले उन्हें निकाल। इन दो पंक्तियों में इतनी बड़ी सीख है, जिसकी ये तथाकथित राजनीतिज्ञ कल्पना भी नहीं कर सकते । कश्मीर के रास्ते को हम भले दोष दें, आंखें कितनी भी लाल करके गुस्से का इजहार करें । परन्तु इस सत्य से कैसे विमुख हुआ जा सकता है कि कश्मीर की समस्या पंडित जवाहर लाल नेहरू की देन है । भाजपा ने बात धारा 370 की चलाई तो जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने धमकी भरे लहजे में कहा कि भाजपा में हिम्मत है तो वह धारा 370 को हटाकर दिखाए । ऐसा कोई भी प्रयास पहले हमारी लाशों से गुजरकर ही पूरा होगा । भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी ने उमर अब्दुल्ला के इस बयान पर कड़ी नाराजगी जताते हुए उन्हें सलाह दी है कि वह धोखे और छल से शब्दों का प्रयोग न करें । उन्होंने स्पष्ट किया है कि भाजपा शुरू से ही धारा 370 के खिलाफ थी । उन्होंने उमर को सलाह दी कि भाजपा के विचारों से असहमति का उन्हें पूरा अधिकार है, परन्तु वे आक्रामक भाषा का प्रयोग न करें ।

जहाँ तक इस मुद्दे पर कांग्रेस का सवाल है वह बोलेगी नहीं, क्योंकि वह पंडित नेहरू जी की गलती को गलती कह नहीं सकती । नरेन्द्र मोदी ने ठीक ही कहा है कि सरदार पटेल ने पूरे देश को एक कर दिया, लेकिन पंडित नेहरू के पास जम्मू-कश्मीर का मसला था, जिन्होंने आधा कश्मीर यानी 2/5 कश्मीर पाकिस्तान को दे डाला और धारा 370 लागू कर भारत के जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दे डाला ।

एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान बना दिए गए । आखिर यह अनुच्छेद-370 क्या बला है? भारतीय संविधान में अनुच्छेद-370 को शामिल करने के क्या दुष्परिणाम निकले? इस अनुच्छेद से हमने क्या खोया और उन्होंने क्या पाया?

सम्पूर्ण भारतवर्ष में एक ही नागरिकता है, जिसे हम भारतीय नागरिकता कहते हैं । जम्मू और कश्मीर में एक ’राज्य नागरिकता’ की भी व्यवस्था है । यहाँ के नागरिक को भारत के अन्य नागरिकों जैसी सारी सुविधाएं हैं, परन्तु अन्य प्रदेशों के नागरिकों को यहाँ ’प्रदेशी नागरिकता’ प्राप्त लोगों जैसी सुविधा प्राप्त नहीं है। इसके परिणामस्वरूप इस प्रदेश का नागरिक हो सम्पूर्ण भारत में जहाँ भी चाहे किसी भी सम्पत्ति को खरीद और बेच सकता है परन्तु यहाँ (जम्मू-कश्मीर में) जमीन खरीदने-बेचने के लिए प्रदेश की नागरिकता चाहिए। दूसरे प्रदेश का व्यक्ति यहाँ जमीन नहीं ले सकता।

यहाँ के प्रदेश की नौकरियों का जहाँ तक सम्बन्ध है, जहाँ केवल इसी राज्य के नागरिकों का उन पर अधिकार है, अन्य लोग तो यहाँ आवेदन तक नहीं दे सकते।

यहाँ रह रहे या नियुक्त अन्य प्रदेशों के नागरिक, यहाँ तक कि बाहर से आए राज्यपाल भी यहां विधानसभा में मतदान नहीं कर सकते, जबकि लोकसभा में वह मतदान कर सकते हैं। थोड़ी विडम्बनाएं और देखें -
इस प्रदेश की महिला का यदि भारत के किसी अन्य प्रदेश में विवाह होता है तो उसे अपनी पैतृक सम्पत्ति और प्रदेश की नागरिकता से हाथ धोना पड़ सकता है परन्तु अगर वह किसी पाकिस्तानी (POK) से विवाह करती है तो वह यहाँ की नागरिकता प्राप्त कर सकता है ।

भारत के संविधान के केवल अनुच्छेद-1 और अनुच्छेद-370 की ही यहाँ प्रासंगिकता है । अत: भले आप इसे अपना अभिन्न अंग कहते रहिये, इस पूरे भारत में जम्मू-कश्मीर ही ऐसा राज्य है जिसका अलग संविधान है । भारत के संविधान से इसे कुछ लेना-देना नहीं ।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित सारे फैसले भी यहाँ लागू नहीं होते और संसद द्वारा पारित वही कानून यहाँ लागू हो सकता है जिसकी जम्मू-कश्मीर की विधानसभा पुष्टि कर दे ।

आपने देखा होगा संसद द्वारा पारित कानूनों में यह स्पष्ट लिखा रहता है- "Applicable in whole Indian Union, Excepting J&K" सचमुच यह कितने शर्म की बात है !

यहाँ ध्वज भी एक नहीं दो हैं । एक ध्वज इस प्रदेश का है, जो तिरंगे के साथ-साथ ही फहराया जाता है । अति संक्षेप में इस अनुच्छेद-370 को लेकर पंडित नेहरू बाबा साहब के पास पहुंचे और तर्क-कुतर्क देकर उनकी राय जाननी चाही । बाबा साहब बोले-‘‘ऐसा प्रावधान घातक सिद्ध होगा और इसके फलस्वरूप बड़ी अलगाववादी धारणा पनपेगी, आप इसका जिक्र ही न करें ।‘‘ बाबा साहब प्रखर राष्ट्रवादी थे । पंडित नेहरू की इस बात से वे अत्यन्त व्यथित हुए ।

तीसरे दिन अनुच्छेद-370 के उसी मसौदे को लेकर उनके घर के सामने शेख अब्दुल्ला खडे थे । पंडित नेहरू ने उन्हें कहा था कि बाबा साहब को इस विषय में मनाना बड़ा जरूरी है । शेख को देखते ही बाबा साहब बिफर पडे थे । उन्होंने क्रोधित होकर कहा था-’’तुम यह चाहते हो कि भारत पर कश्मीर की रक्षा की सारी जिम्मेदारी रहे परन्तु भारतीय संसद का उस पर कोई अधिकार न हो । मैं इस देश का विधि मन्त्री हूँ और मुझे भारत के हितों की रक्षा करनी है । तुम वापस चले जाओ और फिर मेरे पास न आना ।’’

शेख ने जब सारी स्थिति पंडित नेहरू को बताई तो वह चिन्ता में पड़ गए, उसी रात पंडित नेहरू ने देश के रियासती राज्यमन्त्री गोपाल स्वामी आयंगर को बुलवाया और धमकी भरे शब्दों में उनसे कुछ ऐसी बातें कहीं, जिनके कारण वह इस प्रस्ताव को संविधान सभा के समक्ष रखने को तैयार हो गए ।

संविधान सभा में इसका बडा भारी विरोध हुआ । यहाँ तक कि हसरत मोहानी ने चेतावनी भरी भाषा में कहा-’’अब इस सभा को यह समझ लेना चाहिए कि पंडित नेहरू की वास्तविक मंशा क्या है?’’

उस समय इसे पूर्णत: अस्थायी बताया गया था, परन्तु यह अब तक चला आ रहा है । इसने अलगाववाद को ही बढावा दिया है । आखिर इसे बनाए रखने का औचित्य क्या है? यदि सर्वोच्च न्यायालय इसके परिप्रेक्ष्य में अस्थायी शब्द की व्याख्या कर दे तो यह स्वत: ही निरस्त हो जाएगा।

मैंने इतना लम्बा आलेख लिखा है और मैं इसकी पृष्ठभूमि में भारत की जनता से यह पूछना चाहता हूँ कि अनुच्छेद-370 का जम्मू-कश्मीर में लागू रखे रहना राष्ट्रद्रोह है कि नहीं? अगर यह राष्ट्रद्रोह है तो उसके हटाए जाने के मार्ग में जो भी अड़चनें डालता है वह राष्ट्रद्रोही है कि नहीं?• - अश्‍विनी कुमार (सम्पादक-पंजाब केसरी) (दिव्ययुग - अगस्त 2013)

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