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दिव्ययुग के जुलाई 2009 अंक में आचार्य डॉ. संजयदेव के प्रवचनों पर आधारित ‘दिव्य-सन्देश’ नाम्नी रचना सभी के लिए ‘दिशाबोधक’ सिद्ध होगी, इसमें सन्देह नहीं। यशस्वी विचारक डॉ. नगेन्द्र की यह मान्यता निरापद है कि “फूलों का मार्ग विलासियों के लिए होता है। काँटों के मार्ग पर संकल्पधनी वीर पुरुष चलते हैं।“ डॉ. हरिसिंह पाल कृत ‘लोकमान्य बालगंगाधर तिलक’ तथा वचनेश त्रिपाठी ‘साहित्येन्द्रु’ कृत ‘महान् क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आजाद’ नाम्नी रचनाएँ सन्देश प्रधान रचनाएँ हैं। ये दोनों ही रचनाएँ पाठकगण को ‘देशभक्ति’ की शिक्षा देंगी। इसीलिए ये प्रभाव छोड़ रही हैं। ललितनारायण उपाध्याय की रचनाओें की राह से होकर गुजरना सुखदायक रहा। सद्भावनाओें के साथ। - डॉ. महेशचन्द्र शर्मा, साहिबाबाद (उ.प्र.)
मैं आग के दरिया को पार कर सकता हूँ। भँवर में फंसी जर्जर कश्ती निकाल सकता हूँ॥
है हवाओं का रुख बदलने का साहस मुझमें। मैं इन्सां और इन्सानियत से प्यार करता हूँ॥
मैं नहीं डरता तीर खंजर और तलवारों से। मैं नहीं डरता शीर्ष पर बैठे देश के गद्दारों से॥
डरता हूँ फकत दोस्तों से, रहबर हैं जो मेरे। छोड़ देते हैं तन्हां, सुनकर आवाज राजदरबारों से
अपनी रचना की उपरोक्त पंक्तियाँ लिखने का आशय यह है कि आज भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म का नाम बदलकर हिन्दु धर्म हो गया। हमारे ही मनीषियों द्वारा धर्मग्रन्थों पर प्रश्‍न चिन्ह लगाये जाते हैं। संस्कृति से खिलवाड़ फैशन बन गया है और यह सब धर्म के ठेकेदारों द्वारा किया जा रहा है। भारतीय संस्कृति और वेद विश्‍व में सर्वाधिक प्राचीन हैं। ज्ञान, विज्ञान, सृष्टि, ब्रह्माण्ड सब कुछ इनमें समाहित है। अगर कहीं कमी है तो मात्र चेतना की है। इसका दायित्व भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक आचार्य, सन्त, मुनि तथा धर्मप्रचारक ले लें, तो निश्‍चित ही मात्र 10 वर्ष के अल्पकाल में चमत्कारी परिवर्तन सम्भव है। परन्तु विडम्बना यह है कि अधिकतर सन्त जन अपने मत-सम्प्रदाय एवं मठ के प्रचार-प्रसार में लगे हैं। राष्ट्रीय चेतना एवं चिन्तन, धर्म तथा संस्कृति, मातृभूमि एवं मातृभाषा के स्थान पर उनके व्याख्यानों के केन्द्र में मात्र भोग-विलास एवं अर्थ ने स्थान ले लिया है।

Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
वेद कथा_35 | Explanation of Vedas | वेद सन्देश - विद्या एवं ज्ञान प्राप्ति के चार चरण

यदि हमारे सन्त, विचारक एवं अन्य धर्मगुरु अपने अनुयायियों को भौतिकवाद की चकाचौंध में रहते हुये भी एक वृक्ष लगाने का संकल्प दिला सकें, माता-पिता के प्रति पुत्र एवं परिवार का दायित्व समझा सकें, जनता से प्राप्त अकूत धन-सम्पदा से ग्रामीण-पिछड़े क्षेत्रों में शिक्षा एवं संस्कार के दीप जला सकें तो निश्‍चित रूप से भारत फिर विश्‍व का सिरमौर होगा।
महाराष्ट्र से बाल ठाकरे जी धर्म के रक्षक बनकर उभरे तथा राजनीति में फंसकर बस महाराष्ट्रीयन बनकर रह गये। भाजपा राष्ट्रीयता का प्रतीक थी, अब मात्र कुर्सी भोगी बनती जा रही है। ऐसा नहीं कि सब कुछ नकारात्मक है। कुछ चीजें सकारात्मक भी हैं। गुजरात में मोदी द्वारा उठाये गये कदम गुजरात की संस्कृति, सनातन धर्म की रक्षा एवं सन्देशों के प्रचार-प्रसार में सहयोगी बने। आज आवश्यकता है वेदों के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ उन पर क्रियान्वयन की। दिव्ययुग के माध्यम से मेरा सन्त समुदाय से विनम्र निवेदन है कि अपने अनुयायियों को संस्कार एवं संस्कृति के पालन तथा वृक्षारोपण के लिये संकल्पबद्ध करने की कृपा करें, मात्र प्रवचन नहीं। - ए. कीर्तिवर्द्धन, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) (दिव्ययुग- अगस्त 2009)