धार्मिक-पारिवारिक-सामाजिक-नैतिक-राष्ट्रीय चेतना के मासिक पत्र ‘दिव्ययुग’ का नवम्बर 2009 का प्रेरणादायी अंक प्राप्त हुआ। हमारा मानना है कि इस अंक में प्रकाशित ‘प्रखर राष्ट्रभक्त लाला लाजपतराय’ तथा ‘बढ़ती संस्कार-हीनता का कारण विभक्त परिवार’ आदि जैसे प्रेरणादायी लेखों से हमारी बाल एवं युवापीढ़ी अत्यन्त ही लाभान्वित होगी। सर्वसमाज के शैक्षिक एवं सामाजिक उन्नयन के लिए ‘दिव्ययुग’ मासिक पत्रिका के माध्यम से समाज को शिक्षित एवं जागरूक करने का आपका प्रयास अत्यन्त सराहनीय है। इस हेतु मेरी ओर से ढेर सारी बधाइयाँ स्वीकार करने की कृपा करें।
हमारा यह भी मानना है कि भारत विश्व का एकमात्र शान्तिप्रिय देश है, जो विश्व को और अधिक विनाश से बचाते हुए पूरे विश्व को एकताबद्ध तथा सुरक्षित करेगा। अतः ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति वाले देश भारत के माननीय नेताओें के लिए यह एक स्वर्णिम अवसर है कि वे भविष्य के संस्थापक बनें। एक ऐसा भविष्य जो कि संसार के दो अरब बच्चों और आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित हो। वे कानून और न्याय के संस्थापक बन सकते हैं। यह एक ऐसा सुअवसर है, जो फिर कभी नहीं आयेगा, जिसमें वे अपना राजनीतिक आदर्श प्रस्तुत कर सकते हैं। यह कार्य है विश्व में एक नया समाज और प्रजातांत्रिक विश्व सरकार बनाने का, जो कि बिलकुल भी मुश्किल नहीं है। लेकिन बहुत महत्वपूर्ण है और हमें इस दिशा में अभी से कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिए।
दिव्ययुग द्वारा आपके कुशल सम्पादकीय में सकारात्मक पत्रकारिता के माध्यम से समाज के बौद्धिक-सामाजिक-चारित्रिक तथा आध्यात्मिक गुणों के विकास के लिए उल्लेखनीय ही नहीं, वरन् सराहनीय प्रयास किए जा रहे हैं। आज के निपट भौतिकतावादी युग में भी आप जैसी सेवामयी एवं आदर्श प्रस्तुत करने वाली महान आत्माएं संसार में हैं। आप जैसी महान आत्माओं के चरणों में सदैव नतमस्तक हूँ। - जगदीश गाँधी, लखनऊ (उ.प्र.)
Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
ved katha_36 | Explanation of Vedas | शुभ गुणों के लिये दुर्गणोँ का त्याग आवश्यक, यजुर्वेद 30.3
तम का पहरा हो चाहे जितना भी गहरा
मुझे मेरे पथ से डिगा ना सकेगा।
भाग्य कोरा जो अमावस के आंगन यहाँ,
साहस के आगे टिक ना सकेगा।
मैं जलूँगा दीप बन हर राह में
तम का वजूद एक पल में मिटेगा।
जब तक भारतभूमि पर श्रीमन्महात्मा रामचन्द्र वीर महाराज जैसे धर्म एवं राष्ट्रप्रेमी सन्तों का आगमन होता रहेगा तथा आचार्य डॉ. संजयदेव जैसे विद्वान मनीषियों का प्राकट्य होता रहेगा, भारतभूमि पर धर्म की पताका फहराती ही रहेगी। सनातन धर्म का अर्थ ही यह है कि जिसका न आदि है न अन्त, जो सदैव था, है और रहेगा। आज आवश्यकता इस बात की है कि जैन, बौद्ध, सिक्ख तथा छोटे-बड़े अन्य पन्थ-सम्प्रदाय जो सनातन धर्म की ही मूल कड़ी हैं, उनमें समन्वय स्थापित किया जाए। जैन, बौद्ध अथवा सिक्ख मत की स्थापना के समय जो हालात थे, आज फिर वही हालात समाज में पैदा हो चुके हैं। वही पीड़ा आपके सम्पादकीय की भी है कि आखिर हम किसे मानें? हमारी इस बेबसी के दौर में कहीं और कोई सम्प्रदाय न पैदा हो जाये! अगर ऐसा हुआ तो यह विखण्डन ही होगा। - ए. कीर्तिवर्द्धन, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)
आपको तथा आपकी टीम को हार्दिक बधाई, जो ’दिव्ययुग’ को निरन्तर न केवल प्रवाहमान बनाए हुए हैं प्रत्युत पारिवारिक-सामाजिक व राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान की दिशा में व्यावहारिक भूमिका का निर्वहन भी कर रहे हैं। हार्दिक शुभकामनाओं एवं सम्मान सहित। - देवनारायण भारद्वाज, अलीगढ़ (उ.प्र.)
दिव्ययुग के सम्पादकीय तथा दिव्य-सन्देश अत्यन्त प्रेरणादायी होते हैं। ’दिव्ययुग’ समाज के लिए उपयोगी साबित होगा, ऐसा विश्वास है। - हेमन्त कुमार शर्मा, आगर-मालवा (म.प्र.) (दिव्ययुग- दिसंबर 2009)