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दिव्ययुग नियमित प्राप्त हो रहा है। ‘राम-रामायण और रामसेतु कल्पना नहीं’ आलेख बड़ा प्रामाणिक है तथा मुझे बहुत पसन्द आया है।
अन्य लेख भी बड़े महत्वपूर्ण तथा मनन करने योग्य रहते हैं। छपाई-सफाई प्रशंसनीय है। छपाई में हिन्दी अंक- 1,2,3,4,5 देखकर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता है। ‘दिव्ययुग’ गागर में सागर को चरितार्थ करता है।- डॉ. मनोहरदास अग्रावत, नीमच (म.प्र.)
सर्वप्रथम राष्ट्र के सजग प्रहरी, भारत माता के सच्चे सपूत वेदों के ज्ञाता व पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, स्वतन्त्रता के सच्चे पुरोधा नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को नमन! और इस पवित्र भूमि पर महर्षि दयानन्द तथा स्वामी विवेकानन्द की तरह पुनः वेदों के प्रचार एवं संस्कृति के उत्थान में सजग आचार्यश्री संजयदेव जी को सादर प्रणाम! जहाँ रूखी रोटी खाकर भी हँसता बचपन है, परिवारजनों की सेवा कर, स्त्री का गौरव बढ़ता है।
जहाँ सबके सुख-दुःख, एक दूजे के होते हैं, और भूखे रहकर भी, संस्कृति को ढोते हैं॥
जहाँ दाम्पत्य जीवन एक दुजे को समर्पित होता है, और बेटी को देवी सा मान मिला करता है।
मात-पिता की सेवा से बेटा गौरवान्वित होता है, नदियों को भी माता सा, सम्मान मिला करता है॥
जहाँ मानवता जीवन का आधार बना करती है, कष्टों में भी धैर्य, साहस का संचार किया करती है।
पशु-पक्षी-वृक्ष-पर्वत सभी जहाँ पर पूजनीय हैं, वह भारत-भूमि युगों-युगों से वन्दनीय है॥

दिव्ययुग नियमित प्राप्त हो रहा हैतथा प्रकाशित सामग्री से अनेक वास्तविकताओं से साक्षात्कार एवं ज्ञानवर्द्धन भी होता है। आपके राष्ट्रीय सरोकार स्तुत्य हैं। वेदों के द्वारा भारतीय संस्कृति का पुनः जागरण और संस्कारों का संरक्षण आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
Ved Katha Pravachan _34 | Explanation of Vedas | वेद मन्त्र व्याख्या - यजुर्वेद मन्त्र 25.15

दिव्ययुग के फरवरी अंक में प्रकाशित सम्पादकीय से एक बात याद आयी “सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं,परन्तु सारे आतंकवादी मुसलमान हैं।“ और यही कारण है कि आज विश्‍व जनमानस की निगाह में मुसलमान आतंक का पर्याय बन गया है। महर्षि दयानन्द सरस्वती के सत्यार्थ प्रकाश एवं अन्य ग्रन्थों की मीमांसा पढ़ने की सर्वाधिक आवश्यकता आज के पाखण्डी, सत्तालौलुप आर्यसमाजियों को ही है, जिन्होंने महर्षि दयानन्द की विचारधारा को उसी तरह तोड़-मरोड़कर पेश करने का बीड़ा उठाया है, जिस प्रकार अंग्रेजों ने हमारी संस्कृति एवं साहित्य को तथा कम्युनिष्टों ने साहित्य के द्वारा इतिहास को वीभत्स करने का प्रयास किया।

‘वैदिक शिव, शिवतर और शिवतम’ आलेख में शिव की सुन्दर व्याख्या की गई है। ‘राम-रामायण और रामसेतु कल्पना नहीं’ को लघु पुस्तिका के रूप में प्रकाशित कर जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास होना चाहिए, ताकि वास्तविकताओं से जनता अवगत हो सके। ए. कीर्तिवर्द्धन, मुजफ्फर नगर (उ.प्र.)

आपके कुशल सम्पादन में सकारात्मक पत्रकारिता के माध्यम से समाज के नवनिर्माण का सराहनीय कार्य हो रहा है। दिव्ययुग में प्रकाशित समस्त सामग्री बहुत ही ज्ञानवर्धक, सामाजिक तथा सारगर्भित होती है। आपके इस सद्प्रयास के लिए समाज सदैव आपका ऋणी रहेगा।

हमारा मानना है कि अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद केवल अन्तरराष्ट्रीय कानून द्वारा ही नियन्त्रित किया जा सकता है, युद्धों के द्वारा नहीं। यह युद्ध दो या अधिक देशों के बीच भी हो सकता है या फिर विश्‍वयुद्ध के रूप में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकता है। यदि पूरा विश्‍व परमाणु बमों से कुछ मिनटों में नष्ट किया जा सकता है, तो समझदारी भरा विकल्प यह है कि विश्‍व के राष्ट्राध्यक्षों एवं प्रधानमंत्रियों की मीटिंग तुरन्त आयोजित की जाये और एक प्रस्ताव पास करके तुरन्त संयुक्त राष्ट्र संघ से पांचों वीटो पावरों को समाप्त करके यू.एन.ओ. को विश्‍व संसद में तथा अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय (इण्टरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस) को विश्‍व न्यायालय (वर्ल्ड कोर्ट ऑफ जस्टिस) के रूप में बदल दिया जाये और सम्पूर्ण विश्‍व में कानून का राज्य स्थापित किया जाये। जगदीश गांधी, लखनऊ (उ.प्र.) (दिव्ययुग- जुलाई 2009)