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दिव्ययुग के सम्पादकीय न केवल सशक्त, बल्कि आज की आन्तरिक-बाह्य सुरक्षा के लिए नए खतरों की ओर आगाह करने वाले होते हैं। किन्तु ये ओर ऐसी सारी विवेकपूर्ण देशप्रेम की बातें ‘सशक्त’ हाथों तक कहाँ पहुंच पाती हैं ? प्रधानमन्त्री/राष्ट्रपति ‘नाम-मात्र’ के हैं। वित्तमन्त्री पाश्‍चात्य अर्थशास्त्र से कुप्रभावित हैं। शिक्षामन्त्री इस देश की मूल सांस्कृतिक शक्ति दुर्गा-राम-कृष्ण-शिव आदि को ही नहीं मानते। ऐतिहासिक फिल्में नहीं बनकर देश की युवापीढ़ी को पथभ्रष्ट करने वाली फिल्में बन रही हैं। अधिकांश युवक अर्द्धनग्न सुन्दरियों के साथ नाचने-गाने में या उन्हें ऐसा करते हुए देखने में मशगूल हैं। कार-बंगला-नौकर-मोबाईल-टीवी-सीडी आदि क्षुद्र वस्तुओं के पीछे सब ऐसे पागल हैं कि पुस्तकें/पत्रिकाएँ तो क्या, मुफ्त में अखबार दो तो भी नहीं पढते। पढने को देंगे राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत दिव्ययुग जैसे सम्पादकीय, और पढने बैठ जाएंगे महत्वहीन खबरें। इस युवापीढी से जब माता-पिता और गुरु ही त्रस्त हैं, तो फिर इनसे देश-धर्म-समाज के लिए कुछ अच्छी आशा करना व्यर्थ है।

नवरात्रि तो देशहित में शक्ति अर्जित करने का पर्व है। किन्तु सैकड़ों रुपयों के टिकट लगाकर लोग श्रद्धा-भावनाहीन गरबे के नाम पर मस्ती करते युवक-युवतियों को देखने लपकते हैं। बतलाइये! देश किस क्षेत्र में कमजोर नहीं किया गया है। आज तो स्थिति विभाजन पूर्व से भी बदतर है। यह कटु यथार्थ है। इस देश को बाँटने की क्या जरूरत! यह तो अपने-आप ही खण्ड होता जा रहा है। पत्रकारिता-साहित्य के क्षेत्र में पाखण्ड की अति है। यहाँ कौन किसकी सुने ओर क्यों?
आश्‍चर्य है, यह घोर अराजकता चल कैसे रही है?• कमलेश शर्मा, भोपाल (म.प्र.)

दिव्ययुग पत्रिका हिन्दू समाज एवं राष्ट्र के लिये एक मार्गदर्शक पत्रिका है। इस पत्रिका में देश की आजादी के महान् योद्धा वीर सावरकर जैसे आदि क्रान्तिकारियों के विषय में लेख पढ़ने को मिलते हैं। आचार्यश्री डॉ. संजयदेव जी के प्रवचन राष्ट्र को नई दिशा दे सकते हैं।• विनोदबिहारी भटनागर, इन्दौर (म.प्र.)

Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
Ved Katha - 33 | Explanation of Vedas | वेद सन्देश - व्रत से सुख एवं बन्धन से दुःख होता है

दिव्ययुग निर्माण न्यास द्वारा दिव्ययुग मासिक पत्रिका के माध्यम से भारतीय अध्यात्म एवं सस्कृति का सन्देश देने का सराहनीय कार्य किया जा रहा है। पत्रिका पारिवारिक-सामाजिक-नैतिक-धार्मिक-राष्ट्रीय चेतना के साथ-साथ अंधविश्‍वास तथा रूढ़िवाद के विरुद्ध भी समाज को जाग्रत करती है। पत्रिका जन-जन तक पहुँचकर राष्ट्र में सकारात्मक सोच उत्पन्न करेतथा राष्ट्र की संस्कृति-अध्यात्म-वेद-स्वास्थ्य विषयक अधिकाधिक सामग्री दे सके, इसके लिये सक्षम व्यक्तियों को इसे आर्थिक सहयोग देना चाहिए।• डॉ. रवि रस्तोगी, ऋषिकेश (उत्तराखण्ड)

नववर्ष में भारत से होगा आतंकी सर्वनाश, मानवता का संरक्षण होगा, हमको है विश्‍वास। लूट रहे जो लोग देश को, उनका सत्यनाश, सद्भावना-प्रेम बढेगा, जन-जन में विश्‍वास। दिव्ययुग के संपादकीय में राष्ट्र के विषय में जो तथ्य प्रस्तुत किये जाते हैं, उससे भी कहीं अधिक शासन/प्रशासन द्वारा दबा दिये जाते हैं। सभी राजनेता अपना लक्ष्य सत्ता प्राप्ति एवं भौतिक सुख तक ही सीमित करना चाहते हैं। राष्ट्रीय एकता उनके लिये मात्र एक नारा है। अदालत के फैसलों पर पहले भी विवाद उठ चुके हैं। दुर्भाग्य से वोटों की राजनीति ही आतंक के सिरमौर लोगों को संरक्षण प्रदान कर रही है। हम हिन्दू लोग हर खतरे से मुँह मोड़, अपने ही राग-रंग, जाति भेद, छूत-अछूत में लिप्त हैं। मजारों पर जाने वाले अधिकतर हिन्दू ही हैं। हम अपनी परिवार की बहु-बेटियों पर नियन्त्रण खो चुके हैं ।

तभी तो हिन्दुओं की लड़कियाँ निरन्तर मुसलमान लड़कों द्वारा बहलाई, फुसलाई और भगाई जा रही हैं। धर्म ग्रन्थों पर हम कुतर्क का सहारा लेते हैं। आज अनेकों हिन्दू बुद्धिजीवी यह वकालत करते हैं कि अयोध्या में मन्दिर के स्थल पर अस्पताल बनवा दो। क्या ऐसा विचार किसी मुस्लिम का भी आया है ? परमपूज्य आचार्यश्री डॉ. संजयदेव के प्रवचनांश पढे, सुखद लगे ।• ए. कीर्तिवर्द्धन, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) (दिव्ययुग- मई 2008)