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आप लिखते हैं (4)

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परमश्रद्धेय आदरणीय आचार्य डॉ. संजयदेवजी को मैं तहदिल से प्रणाम करते हुए यह निवेदन करूँगा कि विश्‍व में प्रथम बार मध्यप्रदेश के इन्दौर शहर से आपके द्वारा वेद कथा का शुभारंभ हुआ, जो बहुत ही सफल और सराहनीय रहा। तदर्थ बहुत बहुत साधुवाद। आचार्यश्री द्वारा वेदकथा का प्रवाह दिन-प्रतिदिन उत्तरोत्तर बढता रहेऔर अधिक से अधिक लोग इस अमृत रस का रसास्वादन करते रहें, ऐसी शुभकामनाएँ करता हूँ।

आचार्यश्री के मार्गदर्शन में दिव्ययुग पत्रिका बहुत ही अच्छी निकलती है। इसमें बहुत सम सामयिक लेख रहते हैं। मेरा एक विनम्र सुझाव है कि दिव्ययुग के प्रत्येक पृष्ठ में नीचे की पक्तियों में वेदमन्त्र छाँट-छाँटकर उद्धृत करके उनका हिन्दी अनुवाद भी दिया जायेऔर यह शृंखला हर महीने चालू रखकर दिव्ययुग में प्रकाशित करते रहें, तो यह वेद भगवान की परमश्रेष्ठ सेवा होगी और इससे अधिक से अधिक पाठकगण तथा जनसाधारण जो वेदों के बारे में कुछ जानते ही नहीं हैं, उनको भी ज्ञान प्राप्त हो सकेगा।• गिरधारीलाल गुप्ता, इन्दौर (म.प्र.)

दिव्ययुग मासिक का अक्टूबर 2007 अंक मिला। वैदिक साहित्याकाश पर एक और नक्षत्रोदय हुआ, स्वागत है। स्तम्भ वेद-सन्देश के अन्तर्गत ‘वेद की मधुर वार्त्ता-मन्दयन’ लेख जीवन में माधुर्य, मोद की अपरिहार्यता को सशक्त दृष्टान्तों द्वारा पुष्ट करता है। लेखक पं.देवनारायण भारद्वाज का साधुवाद। पढते ही बोलने को विवश मैं भी हुआ-
ऐ शमा तेरी उमे्र तबी है एक रात। रोकर गुजार इसे या हँसकर गुजार दे।

Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
Ved_Katha_Pravachan Part_31 | यज्ञ में एक ही मन्त्र से पांच आहुतियाँ क्यों

दिव्ययुग के आगामी अंक भी ऐसी ही स्वस्थ सामग्री से सम्पन्न हों, यही अभीष्ट है।• ईश्‍वर दयाल माथुर, जयपुर (राजस्थान)

दिव्ययुग के अगस्त तथा सितम्बर 2007 के अंक प्राप्त हुए। दिव्ययुग विशुद्ध वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार करने वाली दिव्य पत्रिका है। लेख पठनीय एवं मनन करने योग्य हैं। दिव्ययुग निर्माण न्यास एवं दिव्य मानव मिशन की इस पत्रिका प्राय सभी लेख उत्तम हैं। सभी भारतीयों को दिव्ययुग का तन-मन-धन से सहयोग करना चाहिए। उज्ज्वल भविष्य की कामना सहित।• राजपालसिंह शास्त्री, दिल्ली

दिव्ययुग का अक्टूबर 2007 अंक प्राप्त हुआ। दिव्य मानव मिशन द्वारा संचालित यह पत्र वास्तव में मानव हितेषी, भारतीय संस्कृति का प्रहरी, वेदशिक्षा के स्तम्भ रूप में तथा स्वास्थ्य के प्रति जागरूक है।

सम्पादकीय तथा दिव्ययुग सन्देश सहित सभी लेख बहुत मार्मिक और उपादेय हैं। यह पत्र प्रशंसनीय श्रेणी का मासिक है।• डॉ. मनोहरदास अग्रावत, नीमच (म.प्र.)

दिव्ययुग का अक्टूबर 2007 अंक पढा। अच्छा लगा। विषय के चयन से ही पत्रिका के चयन का पता चलता है। पत्रिका का बाह्य अंग सुन्दर है, अन्तरंग भी एक स्तर का रहा है। सम्पादकीय ‘नहीं चेते तो देश छिन्न भिन्न हो जायेगा’ समसामयिक विषय है जो वर्तमान समाज को न केवल आगाह करता है, अपितु नागरिकों को भविष्य की सूचना भी देता है।

पण्डित देवनारायण भारद्वाज का लेख ‘वेद की मधुरवार्ता मन्दयन्’ बहुत भाया। लेखक की चिंतन प्रक्रिया उनके अध्येता को व्यक्त करती है। जीवन में आनन्द का महत्वपूर्ण स्थान है। इसे वेद मन्त्रों के माध्यम से व्यक्त किया गया है। अन्य लेख भी अपने आप में बहुत अच्छे हैं। दिव्ययुग के लिए शुभकामनाएँ। अभियान चलता ही रहे।• डॉ. चन्द्रकान्त गर्जे, पुणे (महाराष्ट्र) (दिव्ययुग- दिसंबर 2007)