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दिव्ययुग का प्रत्येक अंक अपनी श्रेष्ठ सामग्री की दिव्यता के साथ मिलता है । आजकल तथाकथित नवीनता और सेक्यूलरिज्म में भारतीय अध्यात्म, संस्कृति व गौरव का प्रचार-प्रसार तथा पुन: स्थापन दिव्ययुग जैसी पत्रिकायें ही कर रही हैं । धर्म, साहित्य, समाज, सत्संग, घर-परिवार, स्वास्थ्य, इतिहास, शिक्षा पर अच्छी सामग्री दिव्ययुग में चयन होती है । संपादकीय ऐसे कर्मवीरों का स्मरण कराता है, जो लाख बाधायें आने पर हिम्मत नहीं हारते । हार्दिक शुभकामनाएं ।•
शशांक मिश्र भारती,पिथौरागढ (उत्तराखण्ड)

दिव्ययुग का अगस्त 07 अंक प्राप्त हुआ। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के परिप्रेक्ष्य में अगस्त माह का विशेष महत्व रहा है । अत: इस अंक की सामग्री राष्ट्र की दशा, दिशा और चिन्तन पर केन्द्रित है, जो राष्ट्रीय दायित्व है । राष्ट्रीय चरित्र के अवमूल्यन को रोकने की दिशा में आपके प्रयास फलीभूत हों, ऐसी अपेक्षा ही नहीं, विश्‍वास है।• ईश्‍वर दयाल माथुर, जयपुर(राजस्थान)

दिव्ययुग अगस्त 2007 का ‘स्वाधीनता दिवस विशेषांक’ पढा । अंक में प्रकाशित प्रत्येक लेख समयोचित, सटीक, प्रभावपूर्ण तथा व्यक्ति निर्माण एवं राष्ट्र निर्माण की दिशा में एक प्रशंसनीय प्रयास है । इस अंक में भारतमाता की अत्यन्त पीड़ादायक समस्याओं तथा उनके कारणों का उल्लेख है। साथ ही बेबाक तरीके से उन समस्याओं के समाधान भी सुझाये गए हैं । वीर छत्रसाल, महाराणा प्रताप, लोकमान्य तिलक, सावरकर एवं बाजीराव के प्रेरक प्रसंगों के द्वारा इसमें भारत के गौरवशाली अतीत का वर्णन है। स्वामी विवेकानन्द जी ने यही कहा था “जितनी बार मुड़-मुड़कर तुम अपने गौरवशाली अतीत को देखोगे, भविष्य का, उज्ज्वल भविष्य का रास्ता तुम्हारे लिए उतना ही सुगम होता चला जाएगा ।’’ ‘राष्ट्र शक्तिशाली कब बनता है’ तथा ‘जब स्वतन्त्रता देवी भारत भूमि पर उतरी’ दोनों लेख विशेष प्रभावोत्पादक लगे । ‘भारत क्या इण्डिया देट इज भारत ही रहेगा’ तथा ‘यौन शिक्षा बनाम नैतिक शिक्षा’ सामयिक लेख भी अच्छे लगे । ‘सती का साहस’ और ‘सम्पादकीय’ भी बहुत प्रेरणादायी लगा । दिव्ययुग का यह यशस्वी अंक सरल-सुबोध भाषा से युक्त तथा आकर्षक है । अत: संग्रह योग्य है ।• वेणु मालव, कोटा(राजस्थान)

Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
Ved_Katha_Pravachan_30 | सम्पूर्ण दुःखों की समाप्ति की कामना, यजुर्वेद मन्त्र 30.3

दिव्ययुग का अगस्त 2007 अंक प्राप्त हुआ। इसे पूरा पढकर बहुत प्रसन्नता हुई । इसमें सभी लेख अत्यन्त उपयोगी एवं सामयिक हैं । शुभकामनाएं।• डॉ.वेदप्रकाश, मेरठ (उ.प्र.)

दिव्ययुग का मैं प्रारम्भ से ही पाठक हूँ । पत्रिका शिक्षापद है तथा राष्ट्र धर्म की सही अलम्बरदार है। पत्रिका की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।• प्राचार्य प्रभुदयाल, चन्दाबास (हरियाणा)

दिव्ययुग पत्रिका का मैं आजीवन सदस्य हूँ । इस पत्रिका में जीवन के हर पहलू का समावेश किया जाता है । मैंने अपने पुत्र के विवाह के संबध में कई वेबसाइट में पंजीकरण कराया हुआ था । परंतु वैदिक धर्मी परिवार खोजना एक टेढी खीर था । तभी एक दिन मेरी नजर दिव्ययुग पत्रिका के ‘वर/वधु चाहिए’ स्तंभ पर गई और मैने तुरंत पंजीकरण कर पुत्र के विवाह हेतु विज्ञापन दिया । मेरा सौभाग्य था कि इस पत्रिका की मदद से मुझे राजकोट (गुजरात) स्थित एक पंजाबी वैदिक धर्मी परिवार मिला और अंत में यहीं विवाह संपन्न हुआ ।

मैं इससे भी ज्यादा आचार्य श्री डा. संजयदेव जी का आभारी हूँ, जो मेरे यहाँ वेद प्रचार अभियान के तहत पधारे थे । उनके आग्रह पर ही मैं इस पत्रिका का आजीवन सदस्य बना । तभी किसी ने सच कहा है कि सज्जनों का सत्संग कभी व्यर्थ नहीं जाता । - रवि आर्य, भिलाई (छत्तीसगढ) (दिव्ययुग- नवंबर 2007)