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सम्माननीय डॉ. संजयदेव जी, सादर हरिस्मरण। दिव्ययुग का सितम्बर 2011 अंक पढ़कर स्तब्ध रह गया। वेद-गीता के मर्मज्ञ अमूल्य रत्न प्रा. जगदीश जी जोशी का निधन पढ़कर वेदना हुई। उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजलि स्वीकारें। 20 अगस्त को बाबा रविकान्त खरे राष्ट्रीय अध्यक्ष वैचारिक क्रान्ति मंच लखनऊ के आकस्मिक निधन की जानकारी मिली। बाबा जी भी 81 वर्ष के थे। अब 84 वर्ष का मैं ही शेष हूँ। श्री जगदीश जी को पुनः-पुनः विनम्र श्रद्धांजलि। राधेश्याम योगी, जालौन (उ.प्र.)

ज्ञानवर्धक तथा शिक्षाप्रद मासिक पत्रिका ‘दिव्ययुग’ का अगस्त 2011 अंक मिला। आचार्य अभयदेव विद्यालंकार का ‘हे समर्थ परमेश्‍वर’ पढ़कर तृप्त हो गया। सम्पादकीय ‘हम कौन थे क्या हो गए’ झंझोड़ने वाला है। हमें भौतिक प्रगति के साथ-साथ सांस्कृतिक-आध्यात्मिक तथा नैतिक प्रगति की तरफ भी ध्यान देना चाहिए और महापुरुषों के दिखाए सन्मार्ग पर ही चलना चाहिए। इस लाजवाब सम्पादकीय के लिए बधाई। आचार्य अभयदेव विद्यालंकार का ही लेख ‘सुशासन के वैदिक सूत्र’ जानकारी बढ़ाने वाला है। पत्रिका के इस अंक की अन्य रचनाएं भी इसे चार चान्द लगाने वाली है। - प्रो. शामलाल कौशल, रोहतक (हरियाणा)

दिव्ययुग के प्रत्येक अंक में वेदमन्त्रों की व्याख्या, मीमांसा तथा वेदों में जनकल्याण विषयक अनेक सूक्तों का वर्णन पढ़ता हूँ। डॉ. संजयदेव के प्रवचनों से वेदसम्मत आदर्श पुत्र की व्याख्या पढ़ी। राष्ट्र सर्वोपरि का चिन्तन ऊर्जा देता है। बाल-वाटिका भी रोचकता व विविधता को बढ़ाता है। आपके प्रयासों को नमन। ए. कीर्तिवर्द्धन, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)

Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
Ved Pravachan 42 | Explanation of Gayatri Mantra | गायत्री मन्त्र की वास्तविक एवं सच्ची व्याख्या

वैदिक धर्म पर आधारित धार्मिक विचारों वाली पत्रिका दिव्ययुग का अगस्त 2011 अंक प्राप्त हुआ। आपकी पत्रिका में धार्मिक, सामाजिक, नैतिक, वैदिक एवं राष्ट्रीय चेतना के विचारों का समावेश है। इस अंक में आपका सम्पादकीय ’हम कौन थे क्या हो गए हैं’ पढ़ने को प्राप्त हुआ, जिसके लिये आप बधाई एवं धन्यवाद के पात्र हैं। वेद-वाणी स्तम्भ भी चिन्तनशील है।

आपकी पत्रिका का प्रत्येक स्तम्भ प्रेरणा से भरपूर है। दिव्ययुग की उत्तरोत्तर प्रगति के लिये मंगलकामनायें स्वीकारें। पत्रिका के सभी आलेख एवं रचनाएं उत्कृष्ट कोटि की हैं। घर-घर में पहुँचे पत्रिका, इसी कामना के साथ। - गोपालप्रसाद ‘पाठक’, मथुरा (उ.प्र.) (दिव्ययुग - अक्टूबर 2011)