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परमपिता परमात्मा की असीम अनुकम्पा से ‘दिव्ययुग’ मासिक पत्रिका का अक्टूबर 2011 अंक पढ़ने का सुअवसर मिला। दिव्य-सन्देश, वेद-सन्देश मञ्जुल मनोहर हैं। यूं तो पत्रिका का पूरा कलेवर ही धन्य है। परन्तु इन दोनों सन्देशों से अपार सन्तोष हुआ। ऐसा अनुपम आनन्द निरन्तर मिलता रहे, इसलिए सदस्यता शुल्क भेज रहे हैं। सादर ग्रहण कर हमें कृतार्थ करने की कृपा करें। - स्वामी मंगलतीर्थ, मंजेश्‍वर (केरल)

आध्यात्मिक एवं शिक्षाप्रद मासिक पत्रिका ‘दिव्ययुग’ का दिसम्बर 2011 अंक मिला। आचार्य अभयदेव विद्यालंकार का लेख ‘हे प्यारे’ मन को सान्त्वना तथा सकून देने वाला है। वेदोपदेश अच्छा लगा। सम्पादकीय ‘वर्तमान में जीना सीखें’ प्रेरणादायक है। आचार्य डॉ. संजयदेव का लेख ‘विश्‍व कल्याण की कामना’ वेदों के सन्देश से अवगत कराने वाला है। अमर बलिदानी रामप्रसाद बिस्मिल पर लेख देशभक्ति की भावना को सुदृढ़ करने वाला है। डॉ. गणेशनारायण चौहान का दिलचस्प लेख ‘अदरक एवं सोंठ के प्रयोग’ बहुत उपयोगी है। - प्रो. शामलाल कौशल, रोहतक (हरियाणा)

Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
Ved Katha Part 43 | Explanation of Gayatri Mantra | गायत्री जाप का फल न मिलने का कारण

दिव्ययुग के पहले पृष्ठ से अन्तिम पृष्ठ तक प्रकाशित विचार संग्रहणीय,मननीय तथा आचरणीय हैं। वेद के पुरातन विचार सनातन एवं आधुनिक कालखण्ड में अनुकरणीय और प्रासंगिक हैं।

आज मनुष्य अनैतिक होता जा रहा है। वेद का सन्देश है कि प्रत्येक व्यक्ति नीतिमान् बने। लेकिन कैसे? इसका उत्तर दिव्य वाणी वेद का अनुकरण करते हुए वैदिक जीवन का आचरण करने में निहित है। ‘दिव्ययुग’ एक दिव्य रत्न है। - प्रभाकर कुलकर्णी, कोल्हापुर (महाराष्ट्र)

दिव्ययुग नियमित मिल रहा है। अंक पढ़ने के वाद प्राध्यापकगण तथा छात्रों के अवलोकनार्थ स्नातकोत्तर ग्रन्थालय में रखा जाता है। प्रत्येक अंक में युवापीढ़ी के लिए पर्याप्त उपयोगी सामग्री रहती है। स्वास्थ्य सम्बन्धी समाचार से अच्छा मार्गदर्शन मिलता है। - डॉ. चन्दूलाल दुबे, सम्पादक,भारतवाणी, धारवाड़ (कर्नाटक) (दिव्ययुग - जनवरी 2012)